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इस्लाम धर्म में युवक-युवतियों में प्यार होने पर क्या है व्यवस्था, ऐसी जानकारी जो शायद आपने पहले कभी नहीं पढ़ी होगी

locationनोएडाPublished: Oct 13, 2019 08:52:24 pm

Submitted by:

Iftekhar

इस्लाम धर्म में है प्रेम विवाह (Love marriage in Islam) की इजाज
पैगम्बर मुहम्मद साहब ने प्रेम को विवाह तक पहुंचाने का आदेश दिया है
युवक-युवतियों के पसंद से हुई शादी को ज्यादा स्थितर रहने की संभावना जताई

 

नोएडा. शादी जिसे विवाह भी कहा जाता है। यह स्त्री-पुरुष के बीच एक सामाजिक या धार्मिक मान्यता प्राप्त मिलन का नाम है, जो पति-पत्नी के बीच अधिकारों और दायित्वों को स्थापित करता है। दुनियाभर में शादी के कई प्रकार है और अलग-अलग संस्कृति में शादी की प्रक्रिया भी अलग-अलग होती है। भारत में शादी की दो प्रचलित विधी है। एक ऐरेंज (घर वालों की पसंद से) और दूसरा तरीका है प्रेम विवाह (यानी खुद के पसंद से)। आज हम बात करते है इस्लाम धर्म में प्रेम विवाह की। इस्लाम धर्म में युवक-युवतियों के प्रेम का नाम सामने आते ही पत्थर से मार-मारकर मार देने या फिर कोड़े मारने की सजा का चित्र सामने आता है। इसी संबंध में जब हमने नोएडा सेक्टर 168 स्थित नूर मस्जिद के इमाम और खतीब मौलाना जियाउद्दीन हुसैनी से बात की तो उन्होंने जो बताया, वह बिल्कुल ही इससे अलग है।

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उन्होंने बताया कि इस्लाम धर्म में प्रेम विवाह को सही या गलत ठहराने का आधार यह है कि युवक-युवतियों के बीच शादी से पहले कैसा संबंध था। शादी से पहले युवकत-युवतियों के बीच प्यार था और उसने अल्लाह तआला की शरीअत (बताए नियम) का उल्लंघन नहीं किया। यानी दोनों ने किसी प्रकार के शारीरिक संबंध नहीं बनाए, सिर्फ एक दूसरे की खूबियों और अच्छाइयों से प्रभावित होकर एक दूसरे को चाहते थे और इसके बाद अगर दोनों ने शादी की है तो इस प्रकार के प्रेम को लेकर इस्लाम में कोई मनाही नहीं है और इस तरह के प्यार के बाद होने वाली शादी ज्यादा स्थायी और स्थिर होने की संभाना रहती है, क्योंकि यह उन दोनों के एक दूसरे में दिलचस्पीरखने के नतीजे में की है।

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उन्होंने बताया कि इस्लाम धर्म में प्रेम विवाह की इजाजत है। अगर किसी शख्त का दिल किसी औरत पर आ जाये तो इस्लाम धर्म में प्रेम के बाद शादी करना उसके लिए जायज़ है। यानी प्रमियों के लिए शादी के अलावा कोई अन्य समाधान नहीं है। इस संबंध में पैगंबर हजरत मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का फरमान है। “प्रेमियों के लिए शादी के समान हमने कोई चीज़ नहीं देखी।” इसे हदीस की किताब इब्ने माजा (हदीस संख्या: 1847) ने वर्णित किया गया है। वहीं, बोसीरी ने इसे सहीह कहा है। इसी तरह अल्बानी ने भी “अस्सिलसिला अस्सहीहा” (हदीस संख्या: 624) में इसे सहीह कहा है।

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उन्होंने बताया कि अगर कोई प्रेम विवाह अवैध प्रेम संबंध के परिणाम में हुई है, जैसे कि उस प्रेम में मुलाक़ातें, एकांत (खल्वत), चुंबन और इसके समान अन्य चीज़ें होती थीं, तो वह शादी स्थिर होने की संभावना कम होती है। इसकी वजह ये है कि इन लोगों ने शरीअत का उल्लंघन यानी गुनाह किया है और उस पर अपने जीवन का आधार रखा है, जिसके परिणामस्वरूप बर्कत (ईश्वरीय आशीर्वाद) और तौफीक़ में कमी हो सकती है, क्योंकि पाप इस का सबसे बड़ा कारण है। दरअसल, जब किसी दो प्रेमी के बीच शादी से पहले अवैध संबंध बनते हैं तो उन दोनों में से हर एक के दूसरे के बारे में संदेह करने का कारण बन सकता है। ऐसी स्तिति में पति सोचेगा कि हो सकता है कि उसकी पत्नी इस तरह के (अवैध) संबंध किसी और से साथ रखती रही हो। यदि वह इसे असंभव समझता है तब भी वह अपने बारे में सोचेगा कि उसके साथ ऐसा हुआ है। बिल्कुल यही मामला पत्नी के साथ भी हो सकता है। वह अपने पति के बारे में सोच सकती है कि संभव है कि उसका पति किसी अन्य महिला के साथ संबंध रखता रहा हो, यदि वह इसे असंभव समझती है तो वह अपने बारे में सोचे गी कि उसके साथ ऐसा हुआ है। यानी पति-पत्नी में से प्रत्येक संदेह, शक और बदगुमानी (अविश्वास) में जीवन व्यतीत करेंगे और इसके परिणाम स्वरूप एक दूसरे पर थोड़ा सा भी शक होने पर दोनों के बीच का रिश्ता जल्दी ही या बाद में टूट हो सकता है। संभव है कि पति अपनी पत्नी की निंदा करे कि उसने अपने लिए इस बात को स्वीकार कर लिया कि उसके साथ शादी से पहले संबंध बनाये, जिसके कारण उसे चोट और पीड़ा पहुंचेगी और उनके बीच का संबंध दुष्ट हो जायेगा।

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वहीं, उन्होंने बताया कि जहाँ तक ऐरेंज मैरिज यानी परिवार के लोगों (माता-पिता या किसी अन्य गार्जियन) के चयन करने का प्रश्न है, तो वह न तो सब के सब अच्छी होती है और न ही सब के सब बुरी होती है। यदि माता पिता का चुनाव मूल्यों के आधार पर सही है और महिला धार्मिक और सुंदर है और यह पति की पसंद के अनुकूल है और वह उस से शादी की इच्छा रखता है तो उम्मीद की जा सकती है कि उन दोनों की शादी स्थिर और सफल होगी। इसीलिए नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने शादी का प्रस्ताव देने वाले को वसीयत की है कि वह उस महिला को देख ले, जिसे शादी का पैगाम दे रहा है। मुग़ीरा बिन शोअबा रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत है कि उन्हों ने एक औरत को शादी का पैगाम दिया तो इस पर पैगम्बर हजरत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया: “तुम उसे देख लो, क्योंकि यह इस बात के अधिक योग्य है कि तुम दोनों के बीच प्यार स्थायी बन जाये।’’इस हदीस को तिर्मिज़ी (हदीस संख्या: 1087) ने रिवायत किया है और उसे हसन कहा है तथा नसाई (हदीस संख्या: 3235) ने रिवायत किया है। इमाम तिर्मिज़ी ने फरमाया: नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के कथन “तुम्हारे बीच महब्बत पैदा होने के अधिक योग्य है।” का अर्थ यह है कि तुम दोनों के बीच महब्बत और प्यार के स्थायी होने के अधिक संभावित है।

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वहीं, उन्होंने बताया कि अगर मां-बाप ने अच्छा चुनाव नहीं किया है, अगर उन्होंने मूल्यों के आदार के बजाय पैसे की लालच में यह चयन किया है या फिर उन्हों ने जो चुनाव किया है अगर वह सही भी है, लेकिन पति उस पर सहमत नहीं है तो आम तौर पर इस तरह की शादी को असफलता और अस्थिरता का सामना करना पड़ सकता है, क्योंकि जो चीज़ अरूचि और गैरदिल्चस्पी पर आधारित हो, वह अक्सर स्थिर नहीं रहती है।

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