डॉक्टरों के अनुसार जब नवजात में इस स्थिति का पता चला तो उसे पॉज़िटिव एयरवे प्रेशर थेरेपी (सीपीएपी) पर रख दिया गया। जांच से साइनॉसिस होने का भी पता चला (ऊपरी हिस्से की त्वचा का सफेद पड़ना)। इससे संकेत मिला कि यह नवजात शिशुओं में होने वाली दुर्लभ स्थिति का मामला हो सकता है, जिसे रेनॉड फिनॉमिना कहा जाता है। इसकी पुष्टि के लिए ब्लड कोग्युलेशन प्रोफाइल की जांच की गई। इसकी पुष्टि होने के बाद बच्चे का तुरंत ही एफएफपी (फ्रेश फ्रोज़ेन प्लाज़्मा) का उपचार किया गया। इसके साथ ही प्रोटीन सी और एस की कमी की भरपाई के लिए विटामिन के इंजेक्शन दिए गए। बाद में एक हफ्ते के भीतर धीरे-धीरे श्शिु का सीपीएपी का उपचार और दवाएं कम की गईं।
रेनॉड फिनॉमिना आम तौर पर उंगलियों या अंगूठों में देखने को मिलता है जो ठंडे तापमान या तनाव की वजह से सुन्न और ठंडे पड़ जाते हैं। सामान्य तौर पर ये ठंडी जलवायु में देखने को मिलती है और उत्तरी भारत में ऐसे मामले का पाया जाना बहुत ही असामान्य है। इस स्थिति में आपकी त्वचा को रक्त की आपूर्ति करने वाली छोटी धमनियां संकरी हो जाती है और प्रभावित अंगों तक रक्त का प्रवाह सीमित हो जाता है। इसे वैसोसपाज़्म के तौर पर जाना जाता है। इस स्थिति के दौरान, शरीर के प्रभावित हिस्से सफेद और सुन्न हो जाते हैं।
यह भी देखें: किसान आंदोलन समर्थन में वकीलों का प्रदर्शन डॉ. लतिका साहनी उप्पल, सलाहकार, नियोनैटोलॉजी फोर्टिस अस्पताल नोएडा ने कहा कि प्राइमरी रेनॉड फिनॉमिना नवजात बच्चों में बहुत ही कम मामलों में देखने को मिलता है और इसका पता लगाना भी बहुत ही चुनौतीपूर्ण है। अगर इसका उपचार समय से न किया जाए तो इसकी वजह से क्लॉटिंग हो सकती है और यह मौत की वजह भी बन सकती है। हम बहुत ही जल्दी इस स्थिति का पता लगा सके, इसलिए बच्चे को ज़रूरी उपचार दे सके। बच्चा अब पूरी तरह स्वस्थ्य है और हम समय-समय पर उसकी जांच कर रहे हैं। डॉ. आशुतोष सिन्हा, अतिरिक्त निदेशक एवं प्रमुख- पीडियाट्रिक्स के नेतृत्व में टीम ने बच्चे को सेहतमंद बनाए रखने के लिए हर ज़रूरी कदम उठाए। डॉक्टरों की कोशिशें रंग लाईं और बच्चे की सेहत में सुधार हुआ व अब उसमें बीमारी के कोई भी लक्षण नहीं हैं।