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दुर्लभ किस्म की बीमारी से ग्रस्त नवजात शिशु का सफलतापूर्वक इलाज, डॉक्टरों ने ऐसे दिया जीवनदान

locationनोएडाPublished: Jan 30, 2021 10:35:02 am

Submitted by:

Rahul Chauhan

Highlights:
-जन्म के समय शिशु को सांस लेने में काफी परेशानी हो रही थी
-उसके ऊपरी हिस्से की दायीं ओर त्वचा का रंग भी जा रहा था
-जल्दी से बीमारी का पता लगने से इसका उपचार सही तरीके से हो सका

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पत्रिका न्यूज नेटवर्क

नोएडा। शहर के एक निजी अस्पताल ने अत्यंत दुर्लभ स्थिति का सामना कर रहे नवजात शिशु का सफलतापूर्वक उपचार किया। इस स्थिति को ‘रेनॉड फिनॉमिना’ के नाम से जाना जाता है। इस स्थिति में उंगलियों और अंगूठों में खून की आपूर्ति सीमित हो जाती है, जिससे वे पीले, ठंडे और सुन्न पड़ सकते हैं। इसकी वजह से प्रभावित अंगों में दर्द भी हो सकता है। डॉक्टरों के मुताबिक जन्म के समय शिशु को सांस लेने में काफी परेशानी हो रही थी और ऊपरी हिस्से की दायीं ओर त्वचा का रंग भी जा रहा था। जल्दी से बीमारी का पता लगने से इसका उपचार सही तरीके से हो सका। इसे शिशु को जीवनभर के लिए कोई परेशानी पैदा होने से बचाया जा सका और उसकी तबियत पूरी तरह ठीक हो सकी।
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डॉक्टरों के अनुसार जब नवजात में इस स्थिति का पता चला तो उसे पॉज़िटिव एयरवे प्रेशर थेरेपी (सीपीएपी) पर रख दिया गया। जांच से साइनॉसिस होने का भी पता चला (ऊपरी हिस्से की त्वचा का सफेद पड़ना)। इससे संकेत मिला कि यह नवजात शिशुओं में होने वाली दुर्लभ स्थिति का मामला हो सकता है, जिसे रेनॉड फिनॉमिना कहा जाता है। इसकी पुष्टि के लिए ब्लड कोग्युलेशन प्रोफाइल की जांच की गई। इसकी पुष्टि होने के बाद बच्चे का तुरंत ही एफएफपी (फ्रेश फ्रोज़ेन प्लाज़्मा) का उपचार किया गया। इसके साथ ही प्रोटीन सी और एस की कमी की भरपाई के लिए विटामिन के इंजेक्शन दिए गए। बाद में एक हफ्ते के भीतर धीरे-धीरे श्शिु का सीपीएपी का उपचार और दवाएं कम की गईं।
रेनॉड फिनॉमिना आम तौर पर उंगलियों या अंगूठों में देखने को मिलता है जो ठंडे तापमान या तनाव की वजह से सुन्न और ठंडे पड़ जाते हैं। सामान्य तौर पर ये ठंडी जलवायु में देखने को मिलती है और उत्तरी भारत में ऐसे मामले का पाया जाना बहुत ही असामान्य है। इस स्थिति में आपकी त्वचा को रक्त की आपूर्ति करने वाली छोटी धमनियां संकरी हो जाती है और प्रभावित अंगों तक रक्त का प्रवाह सीमित हो जाता है। इसे वैसोसपाज़्म के तौर पर जाना जाता है। इस स्थिति के दौरान, शरीर के प्रभावित हिस्से सफेद और सुन्न हो जाते हैं।
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डॉ. लतिका साहनी उप्पल, सलाहकार, नियोनैटोलॉजी फोर्टिस अस्पताल नोएडा ने कहा कि प्राइमरी रेनॉड फिनॉमिना नवजात बच्चों में बहुत ही कम मामलों में देखने को मिलता है और इसका पता लगाना भी बहुत ही चुनौतीपूर्ण है। अगर इसका उपचार समय से न किया जाए तो इसकी वजह से क्लॉटिंग हो सकती है और यह मौत की वजह भी बन सकती है। हम बहुत ही जल्दी इस स्थिति का पता लगा सके, इसलिए बच्चे को ज़रूरी उपचार दे सके। बच्चा अब पूरी तरह स्वस्थ्य है और हम समय-समय पर उसकी जांच कर रहे हैं। डॉ. आशुतोष सिन्हा, अतिरिक्त निदेशक एवं प्रमुख- पीडियाट्रिक्स के नेतृत्व में टीम ने बच्चे को सेहतमंद बनाए रखने के लिए हर ज़रूरी कदम उठाए। डॉक्टरों की कोशिशें रंग लाईं और बच्चे की सेहत में सुधार हुआ व अब उसमें बीमारी के कोई भी लक्षण नहीं हैं।
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