दरअसल एनपीएक्स टावर के बायर्स का आरोप है कि बिल्डर बिल्डिंग में पूरा काम किए बिना ही पजेशन दे रहा है। जबकि वह हम लोगों से हर चीज का पैसा ले चुका है। वहीं बिल्डर लगातार पजेशन लेने के लिए दबाव बना रहा था और बायर्स के आवंटन को रद्द करने की धमकी दे रहा है। बता दें कि बायर्स ने इसकी शिकायत एनसीडीआरी में की थी। लेकिन वहां बायर्स को उपभोक्ता न मानते हुए अपील को खारिज कर दिया गया। जिसके बाद वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण ने बायर्स की ओर से एक याचिका सुप्रीम कोर्ट में दायर की। जिस पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने बायर्स के हित में फैसला सुनाते हुए एनसीडीआरसी को उचित निर्देश दिए और प्राधिकरण के अधिकारियों द्बारा साइट पर जाकर निरीक्षण करने व बिल्डर को 15 दिन में जवाब दायर करने को कहा गया।
उल्लेखनीय है कि प्राधिकरण द्बारा इस प्रोजेक्ट को 2014 में कंपलीशन सर्टिफिकेट दे दिया गया था। लेकिन 2015 में प्राधिकरण ने इसकी कंपलीशन को निरस्त कर दिया था। इसका कारण था प्लॉट के आवंटन के समय उक्त कंपनी का पंजीकृत न होना। वहीं तब तक ज्यादातर बायर्स 90 फिसदी तक पैसा बिल्डर को दे चुके थे। जिसके चलते सीसी निरस्त किए जाने के बाद कंस्ट्रक्शन कंपनी ने इलाहाबाद हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया और बायर्स के हित में एक याचिका दायर की। जिस पर सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट ने 2016 में प्राधिकरण द्बारा सीसी निरस्त किए जाने के फैसले पर रोक लगा दी थी। हालांकि सितंबर माह में सुप्रीम कोर्ट ने एनसीडीआरसी को फटकार लगाते हुए बायर्स की याचिका पर सुनवाई पर करने को कहा है। ऐसे में अब दोबारा से बायर्स एनसीडीआरसी का दरवाजा खटखटाएगी।