राज्यसभा चुनाव: सपा के ये विधायक नहीं डाल सकेंगे वोट, कोर्ट के आदेश पर डीएम ने विधायक को लखनऊ जाने से रोका… पहले बसपा से बने थे विधायक हम बात कर रहे हैं बाहुबली विधायक रह चुके गुड्डू पंडित और उनके सगे भाई मुकेश शर्मा की। किसी समय इनकी गिनती बाहुबली विधायकों में होती थी। बाकायदा इनको वाई श्रेणी की सुरक्षा तक मिली हुई थी। बुलंदशहर ही नहीं बल्कि आसपास के इलाकों में उनकी तूती बोलती थी। बसपा और सपा सरकार में तो उनकर दबंगई सुर्खियों में थी। श्रीभगवान शर्मा उर्फ गुड्डू पंडित 2007 में बसपा के टिकट पर डिबाई से विधायक चुने गए थे। बसपा सुप्रीमो अध्यक्ष मायावती ने 2011 में कई गंभीर शिकायतों के बाद उनको पार्टी से बाहर कर दिया था।
राज्यसभा चुनाव: खत्म होगा इस दिग्गज भाजपा नेता का वनवास, 23 मार्च को बन जाएंगे सांसद 2012 में सपा के टिकट पर लड़ा था चुनाव इसके बाद बाहुबली विधायक ने सपा का दामन थामा। 2012 के विधानसभा चुनाव भी वह समाजवादी पार्टी के टिकट पर लड़े। उस चुनाव में उन्होंने चुनाव लड़कर जीत हासिल की थी। उन्होंने चुनाव में पूर्व मुख्यमंत्री और राजस्थान के राज्यपाल कल्याण सिंह के बेटे राजबीर सिंह को हराया था। वहीं उनके भाई मुकेश शर्मा शिकारपुर सीट से विधायक बने थे। वहीं, राजबीर सिंह के हारने के बाद कल्याण सिंह गुड्डू पंडित से खुश नहीं थे।
यूपी के इस शहर की खुली किस्मत, अब देश मे होगी अनोखी पहचान भाजपा में नहीं मिली एंट्री इसके बाद 2016 में राज्यसभा और विधान परिषद के चुनावों में सपा व्हिप के विरोध में क्रॉस वोटिंग करने पर गुड्डू पंडित और मुकेश शर्मा को पार्टी से निकाल दिया गया था। दोनों ने भाजपा के लिए वोटिंग की थी। उस समय वी भाजपा विधायक संगीत सोम के साथ देखे गए थे। इतना ही नहीं केंद्रीय मंत्री डॉ. महेश शर्मा के साथ भी उनकी नजदीकियां बढ़ी थीं। शासन द्वारा उनकी सुरक्षा वापस लेने के बाद केंद्र सरकार ने दोनों भाइयों को वाई श्रेणी की सुरक्षा दी थी। हालांकि, भाजपा के लिए वोटिंग करने वाले दोनों भाइयों को पार्टी में एंट्री नहीं मिली। सपा से निकाले जाने के बाद दोनों भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़ना चाहते थे लेकिन पार्टी ने उन्हें एंट्री तक नहीं करने दी। इतना ही नहीं उनकी वाई श्रेणी की सुरक्षा भी वापस ले ली गई।
राज्यसभा चुनाव: पश्चिमी UP से मोदी-योगी की खास इस दलित नेता का राज्यसभा जाना तय रालोद के टिकट पर लड़े थे चुनाव उधर, 2017 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में भाजपा की तरफ से मौका न दिए जाने पर दोनों भाई राष्ट्रीय लोक दल (रालोद) के पाले में चले गए और पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़ा। उन्होंने बुलंदशहर और शिकारपुर सीट से किस्मत आजमाई लेकिन दोनों भाई चुनाव हार गए।