कैप्टन शशिकांत (Capt. Shashikant Sharma) के भाई नरेश शर्मा बताते हैं कि भाई की जहां शहादत हुई थी वह दुनिया का सबसे ऊंचा, सबसे कठिन और सबसे ठंडा रणक्षेत्र है। जिसे सियाचिन ग्लेशियर (siachen glacier) कहते हैं। जहां उनकी शहादत (martyr) हुई थी उसकी ऊंचाई 22 हज़ार फीट है। चीफ ऑफ आर्मी स्टाफ बिपिन रावत (Army Chief Bipin Rawat) से उन्हें अपने भाई को श्रद्धांजलि देने का अवसर मिला। लेह से होते हुए खलसर, परतापुर होते हुए जब मैं वहां पहुंचा, तो इस दौरान कई बार ऐसा हुआ कि मेरी सांसें उखड़ने लगी। धड़कन भी बहुत बढ़ गईं।
उन्होंने बताया कि जब वह दिल्ली से निकले तो यहां का तापमान 38 से 40 डिग्री था। वहां पहुंचने पर तापमान माइंस 38 था। जिसमें स्वयं को ढाल लेना इतना आसान नहीं था। लेकिन इन विषम परिस्थितियों में भी दृढ़ इच्छाशक्ति से वहां जाकर उन्होंने अपने भाई को श्रद्धांजलि अर्पित की। वहां बनाए गए नए वॉर मेमोरियल के बारे में बताते हुए नरेश शर्मा ने कहा कि पहले वार मेमोरियल के रूप में सीमेंट की एक दीवार होती थी और उस पर काले अक्षरों से देश पर प्राण निछावर करने वालों के नाम लिखे जाते थे।
नया वार मेमोरियल दुनिया के सबसे ऊंची बेस कैंप पर बना एक मात्र वार मेमोरियल है (siachen glacier war memorial)। वहां पर दो मूर्तियां बनाई गई हैं। पहली मूर्ति में दिखाया गया है कि सइचिन के जो लोग भी शहीद होते हैं वह सारे वीर योद्धा सीधे स्वर्ग की ओर जाते हैं और आगे में दो परिवारों की फोटो लगाई हुई है। जिसमें से फौजी मिसिंग है। लेकिन उसका परिवार पूरा उसके साथ है, देश उसके साथ है। पीछे बैकड्राप में भारत का झंडा है जो हमेशा लहराता रहता है। शहीदों के नाम दीवाल पर सुनहरे अक्षरों से लिखे हुए दिखाई देते हैं।
उन्होंने बताया कि इस जगह पर फूल और पुष्प चक्र की व्यवस्था करना आसान नहीं है। हम यहां पर जो फूल दो में खरीदते हैं वहां उसकी कीमत 2000 की हो जाती है। एक पुष्पचक्र की कीमत 20 हज़ार से 25 हज़ार और एक रोटी जो यहाँ 5 रुपए मिलती है वहां पर उसकी कीमत 2000 पड़ती है। जो फौजी वहां हैं और जो शहादत पा चुके हैं, उनकी कुर्बानी की कोई तुलना नहीं की जा सकती है। वहां वे दुश्मन से लड़ते हैं, मौसम से लड़ते हैं और परिवार से दूर रहकर देश के लिए जान निछावर करने के लिए तत्पर रहते हैं। यह अदम साहस का उदाहरण है।