लेकिन हेरानी की बात है कि कमिश्नर साहब महीने में कुछ दिन ही आॅफिस पहुंचते है। ऐसे में दिव्यांग व्यक्ति बिना न्याय के ही लौटने को मजबूर हो रहे है। यदि पूरे प्रदेश पर नजर डाले तो लगभग 17 लाख दिव्यांग है जिनकी समस्या के समाधान के लिए अलग से विशेष योग्यजन कार्यालय बनाया गया है। इसका मकसद है कि विकलांगता से जूझ रहे दिव्यांगों की समस्या तत्काल सुनी जाए और उन्हें भटके बिना ही न्याय मिल सके लेकिन यहां इनकी सुनवाई नहीं हो रही है ऐसे में ये बेबस दिव्यांग अपनी पीड़ा किसे सुनाएं।
जबकि राज्य सरकार लगातार इनके लिए सुगम्य माहौल देने के बड़े-बड़े दावे पेश कर रही है। दिव्यांगों का आरोप है कि सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता विभाग मंत्री अरुण चतुर्वेदी ने दिव्यांगोें के एक बड़े आंदोलन के बाद उच्च कमेटी का गठन किया था इसके बाद स्पष्ट कहा गया था कि दिव्यांगों द्वारा किसी भी तरह की यदि सूचना व दस्तावेज मांगे जाए तो संबंधित अधिकारी उसे उपलब्ध कराएगा।
इसके अलावा वो अपनी परेशानी लेकर यदि दूरदराज या अन्य जिलों से जयपुर आते है तो उसी दिन हाथों हाथ उनकी परेशानी का समाधान किया जाएगा लेकिन विडंबना है कि सुनवाई करना तो दूर कमिश्नर साहब से मिलना तक नसीब नहीं होता।
ऐसे में दिव्यांगों को अपनी परेशानी के साथ ही लौटना पड़ रहा है। इनका कहना है –दिव्यांग व्यक्ति जो सौ प्रतिशत विकलांगता से जूझ रहा है उसके सामने दोहरी चुनौती है। एक तो उसे बड़ी तकलीफ उठाकर यहां आने को मजबूर होना पड़ रहा है उस पर बिना समाधान पाए ही लौटना पड़ रहा है।
कई बार चेतावनी दी गई इस बारे में सरकार को कई बार चेतावनी दी गई बावजूद इसके दिव्यांगों की परेशानी ना तो सुनने वाला कोई है और ना ही कोई गाइड करने वाला। इतना ही नहीं यदि दिव्यांगों से जुड़ी कोई भी जानकारी लेने के लिए विशेष योग्यजन कार्यालय से संपर्क किया जाता है तो यहां से एक भी दस्तावेज नहीं दिया जाता।
रतनलाल बैरवा, प्रदेशाध्यक्ष विकलांग आंदोलन संघर्ष समिति