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पत्रिका अभियान: शिक्षा विभाग की लापरवाही, ठंड में ठिठुरते-कांपते पढ़ने को मजबूर हैं नौनिहाल

locationनोएडाPublished: Nov 21, 2019 02:01:29 pm

Submitted by:

Ashutosh Pathak

Highlights:
– नवंबर आधे से अधिक खत्म, ठंड शुरू हो चुकी है, कई स्कूलों में बच्चों को स्वेटर नहीं मिले
– सभी प्राथमिक और माध्यमिक विद्यालय के बच्चोंं को स्वेेटर शिक्षा विभाग की ओर से मिलने थे
– वेस्ट यूपी के कई जिलों में पत्रिका टीम ने की पड़ताल, स्कूलों में ठंड से कांपते दिखे बच्चे

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आशुतोष पाठक/शिवमणि त्यागी

नोएडा। उत्तर प्रदेश में शिक्षा विभाग इस वर्ष भी ठंड में बच्चों को समय से स्वेटर उपलब्ध नहीं करा सका। नवंबर का महीना आधे से अधिक बीत गया, ठंड शुरू हो चुकी हैै, लेकिन पश्चिमी उत्तर प्रदेश के कई जिलों के सरकारी स्कूलों में बच्चे अब भी बिना स्वेटर स्कूल जाने को मजबूर हैं। कारण, शिक्षा विभाग उन्हें इस वर्षं भी समय से स्वेटर नहीं दे सका, जिससे बच्चों को ठंड में ठिठुरते-कांपते स्कूल जाना पड़ रहा है। शिक्षा विभाग की इस लापरवाही पर पत्रिका टीम ने पड़ताल की और कई स्कूलोंं में जाकर बच्चों और स्कूल प्रशासन से इस बारे में बात की। पेश है गाजियाबाद, सहारनपुर और रामपुर से ग्राउंड रिपोर्ट-
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11 में सिर्फ 6 ब्लॉक में स्वेटर दिए

सहारनपुर के 11 में से 5 ब्लॉक ऐसे हैं, जहां के स्कूलों में बच्चों को स्वेटर 20 नवंबर तक नहीं बंटे। पत्रिका टीम रामनगर गांव के प्राथमिका विद्यालय में पहुंची, तो वहां बच्चे ठंड से कांपते दिखे। पूछने पर बताया कि उन्हें स्वेटर नहीं मिला है, जिसकी वजह से उन्हें बिना स्वेटर स्कूल आना पड़ रहा है। विद्यालय की प्रधानाचार्य शिमला देवी ने बताया कि उन्हें विभाग की ओर से स्वेटर नहीं मिले हैं, जिन्हें बच्चों में वितरित नहीं किया जा सका है। शिक्षा विभाग के अधिकारी इस बारे में कोई सटीक जवाब नहीं दे सके कि बच्चों को समय से स्वेटर क्यों नहीं दिया जा सका। पत्रिका टीम ने जब स्थानीय विधायक संजय गर्ग से बात की तो उन्होंने कहा कि सर्दी शुरू होने से पहले ही बच्चों को स्वेटर बांट दिए जाने चाहिए थे, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। इससे स्पष्ट है कि सरकारी योजनाओं के क्रियान्वयन में अफसर लापरवाही बरत रहे हैं। साथ ही योजनाओं के प्रचार पर भी ध्यान नहीं दिया जा रहा, जो दुर्भाग्यपूर्ण है।
50 फीसदी सरकारी स्कूलों को दिए ही नहीं

गाजियाबाद जैसे हाइटेक शहर में भी यही हाल है। यहां पत्रिका टीम ने विजय नगर जोन के कई प्राथमिक स्कूलों की पड़ताल की, तो पता चला बच्चे अब भी ठंड में ठिठुरते हुए स्कूल आ रहे हैं। पिछले वर्ष भी यहां बच्चों को समय से स्वेटर नहीं बंटे थे और इस बार भी शिक्षा विभाग के अधिकारियों ने कोई सबक नहीं सीखा। अभिभावकों का कहना है कि स्कूल से स्वेटर मिले नहीं और बिना ड्रेस वाले स्वेटर बच्चों को पहना नहीं सकते। ऐसे में वह बच्चों को बिना स्वेटर स्कूल भेजने को मजबूर हैं और बच्चों को ठंड से कांपते देखकर दुख होता है। स्कूल प्रशासन से इस बारे में जब भी पूछते हैं, तो वह जवाब नहीं देते।
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दो बार बढ़ी तारीख फिर भी नहीं बांट सके

रामपुर के भी कई स्कूलों में बच्चे बिना स्वेटर स्कूल जाते दिखे। जब बच्चों से पूछा गया तो उन्होंने बताया कि अभी तक स्वेटर नहीं मिले हैं। बच्चों के मुताबिक, पिछले साल भी समय से स्वेटर नहीं मिले थे। इस बार भी यही हाल है। विभागीय सूत्रों की मानें तो जिले में स्वेटर बांटने की तारीख पहले 15 अक्टूबर तय की गई थी। बाद में इसे बढ़ाकर 31 अक्टूबर किया गया। दो बार तारीख तय हुई, फिर भी स्वेटर समय से क्यों नहीं स्कूलों को भेजे गए। इसका जवाब किसी के पास नहीं है। स्कूल प्रशासन का कहना है कि अभी स्वेटर कब तक आएंगे, इसकी भी उन्हें कोई स्पष्ट सूचना नहीं मिली है, जिससे कि वह छात्रों को या उनके अभिभावकों को निश्चित समय बता सकें।
स्वेटर अब तक नहीं बंटे तो इसका जिम्मेदार कौन

उत्तर प्रदेश सरकार ने तय किया है कि हर साल प्राथमिक व माध्यमिक (सिर्फ सरकारी) स्कूलों के बच्चों को किताबें, ड्रेस, जूता-मोजा और स्वेटर वह खुद उपलब्ध कराएगी। इसके लिए वार्षिक बजट भी हर बार वित्तीय वर्ष में जारी हो जाता है। इसके बाद समय से टेंडर, इसकी खरीदी और स्कूलों में वितरण की जिम्मेदारी शिक्षा विभाग के अफसरों की है। लेकिन इस काम में लापरवाही हो ही जाती है, जिसका खामियाजा मासूम बच्चों को भुगतना पड़ता है। सवाल यह है कि सब कुछ समय से हो और बच्चे ठंड में स्वेटर पहनकर आ सकें, यह कैसे और कौन निर्धारित करेगा। ठंड में ठिठुरते बच्चों की इस दशा का असल जिम्मेदार कौन है।
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पिछले वर्ष भी पत्रिका ने उठाया था मुद्दा, तब बंटे स्वेटर

ऐसा नहीं है कि नौनिहालों को स्वेटर पहली बार समय से नहीं मिला। इससे पहले, वर्ष 2018 में भी यही स्थिति थी। पिछले वर्ष भी नवंबर बीत चुका था और बच्चों को स्वेटर नहीं मिले थेे। तब पत्रिका ने इसका मुद्दा उठाया और स्कूलों में जाकर बच्चों की पीड़ा सबको बताई। इसके बाद शिक्षा विभाग के अधिकारियों की नींद खुली और स्वेटर बांटने की प्रक्रिया शुरू हुई। कमोबेश यही स्थिति हर बार किताबों, स्कूल ड्रेस और जूता-मोजा के साथ भी है। बड़ा सवाल यह है कि शिक्षा विभाग के अधिकारियों को जब पता है कि यह सरकार ने खुद तय किया है। इसके लिए वार्षिक बजट जारी हो रहे हैं और यह उन्हें करना ही है, तो फिर इसे समय से पूरा करने में उन्हें क्या दिक्कत आती है। क्यों नहीं ये अधिकारी हर काम को समय से पूरा करते हुए स्कूलों के अनुशासन को बनाए रखने में बच्चों की मदद कर सकते हैं।
अफसरों के जवाब भी मनमाने

– अभी हमें स्वेटर की पहली खेप मिली है, जिसे कुछ स्कूलों में बंटवा दिया गया है। जैसे ही अगली खेप आएगी, बाकि स्कूलों में भी बच्चों को बांट दिए जाएंगे।
– राजेश कुमार, बीएसए, गाजियाबाद
– हम तेजी से स्वेटर बांटने की प्रक्रिया में लगे हैं। जिन ब्लॉक के स्कूलों में बच्चों को स्वेटर नहीं बंटे हैं, वहां कोशिश कर रहे हैं कि 30 नवंबर से पहले इसे बंटवा दिया जाए।
– रमेंद्र कुमार सिंह, बीएसए, सहारनपुर
– स्कूलों में बांटने के लिए करीब 50 हजार स्वेटर की खेप आ गई है। हम कोशिश कर रहे हैं कि 30 नवंबर तक इसे सभी बच्चों में बंटवा दिए जाएं।
– ऐश्वर्य लक्ष्मी, बीएसए, रामपुर

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