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11 में सिर्फ 6 ब्लॉक में स्वेटर दिए सहारनपुर के 11 में से 5 ब्लॉक ऐसे हैं, जहां के स्कूलों में बच्चों को स्वेटर 20 नवंबर तक नहीं बंटे। पत्रिका टीम रामनगर गांव के प्राथमिका विद्यालय में पहुंची, तो वहां बच्चे ठंड से कांपते दिखे। पूछने पर बताया कि उन्हें स्वेटर नहीं मिला है, जिसकी वजह से उन्हें बिना स्वेटर स्कूल आना पड़ रहा है। विद्यालय की प्रधानाचार्य शिमला देवी ने बताया कि उन्हें विभाग की ओर से स्वेटर नहीं मिले हैं, जिन्हें बच्चों में वितरित नहीं किया जा सका है। शिक्षा विभाग के अधिकारी इस बारे में कोई सटीक जवाब नहीं दे सके कि बच्चों को समय से स्वेटर क्यों नहीं दिया जा सका। पत्रिका टीम ने जब स्थानीय विधायक संजय गर्ग से बात की तो उन्होंने कहा कि सर्दी शुरू होने से पहले ही बच्चों को स्वेटर बांट दिए जाने चाहिए थे, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। इससे स्पष्ट है कि सरकारी योजनाओं के क्रियान्वयन में अफसर लापरवाही बरत रहे हैं। साथ ही योजनाओं के प्रचार पर भी ध्यान नहीं दिया जा रहा, जो दुर्भाग्यपूर्ण है।SBI को हाईकोर्ट की फटकार, 11 महीने से निलंबित कर्मचारी को तुरंत बहाल करने का आदेश
दो बार बढ़ी तारीख फिर भी नहीं बांट सके रामपुर के भी कई स्कूलों में बच्चे बिना स्वेटर स्कूल जाते दिखे। जब बच्चों से पूछा गया तो उन्होंने बताया कि अभी तक स्वेटर नहीं मिले हैं। बच्चों के मुताबिक, पिछले साल भी समय से स्वेटर नहीं मिले थे। इस बार भी यही हाल है। विभागीय सूत्रों की मानें तो जिले में स्वेटर बांटने की तारीख पहले 15 अक्टूबर तय की गई थी। बाद में इसे बढ़ाकर 31 अक्टूबर किया गया। दो बार तारीख तय हुई, फिर भी स्वेटर समय से क्यों नहीं स्कूलों को भेजे गए। इसका जवाब किसी के पास नहीं है। स्कूल प्रशासन का कहना है कि अभी स्वेटर कब तक आएंगे, इसकी भी उन्हें कोई स्पष्ट सूचना नहीं मिली है, जिससे कि वह छात्रों को या उनके अभिभावकों को निश्चित समय बता सकें।सरकार ने किया बड़ा बदलाव, Aadhar नंबर डालने में की गलती तो लगेगा 10 हजार का जुर्माना!
पिछले वर्ष भी पत्रिका ने उठाया था मुद्दा, तब बंटे स्वेटर ऐसा नहीं है कि नौनिहालों को स्वेटर पहली बार समय से नहीं मिला। इससे पहले, वर्ष 2018 में भी यही स्थिति थी। पिछले वर्ष भी नवंबर बीत चुका था और बच्चों को स्वेटर नहीं मिले थेे। तब पत्रिका ने इसका मुद्दा उठाया और स्कूलों में जाकर बच्चों की पीड़ा सबको बताई। इसके बाद शिक्षा विभाग के अधिकारियों की नींद खुली और स्वेटर बांटने की प्रक्रिया शुरू हुई। कमोबेश यही स्थिति हर बार किताबों, स्कूल ड्रेस और जूता-मोजा के साथ भी है। बड़ा सवाल यह है कि शिक्षा विभाग के अधिकारियों को जब पता है कि यह सरकार ने खुद तय किया है। इसके लिए वार्षिक बजट जारी हो रहे हैं और यह उन्हें करना ही है, तो फिर इसे समय से पूरा करने में उन्हें क्या दिक्कत आती है। क्यों नहीं ये अधिकारी हर काम को समय से पूरा करते हुए स्कूलों के अनुशासन को बनाए रखने में बच्चों की मदद कर सकते हैं।– राजेश कुमार, बीएसए, गाजियाबाद
– रमेंद्र कुमार सिंह, बीएसए, सहारनपुर
– ऐश्वर्य लक्ष्मी, बीएसए, रामपुर