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मॉब लिंचिंग केस: सुप्रीम कोर्ट ने IG मेरठ से 2 सप्ताह में मांगी स्टेटस रिपोर्ट, अगली सुनवाई 28 अगस्त को

locationनोएडाPublished: Aug 13, 2018 03:24:11 pm

Submitted by:

Rahul Chauhan

मामले से जुड़े गवाहों की सुरक्षा सुनिश्चित करने का भी दिया आदेश।

हापुड़। मॉब लिंचिंग (उन्‍मादी हिंसा) के मामले में सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने मेरठ पुलिस महानिरीक्षक को दो सप्‍ताह में पूरी घटना के संबंध में एक स्‍टेटस रिपोर्ट तैयार करने का निर्देश दिया है। साथ ही मामले से जुड़े गवाहों की सुरक्षा सुनिश्चित करने का भी आदेश दिया है। केस की अगली सुनवाई 28 अगस्‍त को होगी। आपको बता दें कि गो हत्या के आरोप में भीड़ ने एक कासिम नाम के शख्स की पीट-पीटकर हत्या कर दी थी, जबकि एक अन्य व्यक्ति समीउद्दीन को गंभीर रुप से घायल कर दिया था। इलाज के बाद उसने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की, जिस पर सुनवाई चल रही है।
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दरअसल इस मामले में एक न्यूज चैनल ने स्टिंग किया था, जिसमें पुलिस की जांच में कई खामियां पाईं गई थीं। पुलिस ने एफआइआर में इसे रोड रेज का मामला बताया था, जबकि स्टिंग के वीडियो सबूत में कुछ और ही मामला नजर आ रहा था। याचिकाकर्ता का कहना है कि स्थानीय पुलिस सुप्रीम कोर्ट द्वारा मॉब लिंचिंग केस में जारी दिशा निर्देशों का पालन नहीं कर रही है। पुलिस एफआइआर को रोड रेज का मामला बना कर केस दर्ज कर रही है। पुलिस ने अभी तक पीड़ित का उसका बयान तक दर्ज नहीं किया है। उनकी मांग है कि बयानों को मजिस्ट्रेट के समक्ष दर्ज कराया जाए और साथ ही मामले में विशेष लोक अभियोजक नियुक्त किया जाए।
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बता दें कि पिछले महीने मॉब लिंचिंग मामले में चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की अगुवाई वाली बेंच ने साफ कहा था कि कोई भी शख्स कानून को किसी भी तरह से हाथ में नहीं ले सकता। कानून व्यवस्था को बहाल रखना राज्य सरकार की जिम्मेदारी है और प्रत्येक राज्य सरकार को ये जिम्मेदारी निभानी होगी। गोरक्षा के नाम पर भीड़ की हिंसा गंभीर अपराध है। सुनवाई के दौरान एडिशनल सॉलिसिटर जनरल पीएस नरसिम्हा ने कहा था कि केंद्र सरकार इस मामले में सजग और सतर्क है, लेकिन मुख्य समस्या कानून व्यवस्था की है। कानून व्यवस्था पर नियंत्रण रखना राज्यों की जिम्मेदारी है।
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केंद्र इसमें तब तक दखल नहीं दे सकता जब तक कि राज्य खुद गुहार ना लगाएं। सुप्रीम कोर्ट ने जाति और धर्म के आधार पर उन्‍मादी हिंसा का शिकार बने लोगों को मुआवजा देने की मांग कर रही लॉबी को भी बड़ा झटका दिया था। चीफ जस्टिस ने वकील इंदिरा जयसिंह से असहमति जताते हुए कहा था कि इस तरह की हिंसा का कोई भी शिकार हो सकता है सिर्फ वो ही नहीं जिन्हें धर्म और जाति के आधार पर निशाना बनाया जाता है।
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