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खेती के लिए खास होगा 2021

Published: Dec 27, 2020 06:56:45 pm

Submitted by:

Nitin Kumar

कृषि अनुसंधान और शिक्षा विभाग (डीएआरई) के सचिव डॉ. त्रिलोचन महापात्र कहते हैं कि अगले कुछ वर्षों में हम देश से कुपोषण और भूख की समस्या को भी खेती की मदद से दूर करने में जुटे हैं। भारत ने 2030 तक अपने यहां से कुपोषण और भूख को समाप्त करने का लक्ष्य तय किया है। फसलों में पोषण बढ़ाने के लिए बायो फोर्टिफाइड किस्मों पर काम तेजी से किया जा रहा है। कृषि में डेटा एनालिटिक्स, रिमोट सेंसिंग, ड्रोन, प्रिसिजन एग्रीकल्चर जैसी आधुनिक तकनीक का उपयोग बढ़ेगा।

Dr. Trilochan Mohapatra

Dr. Trilochan Mohapatra, Secretary (DARE) Director General (ICAR)

ईयरएंडर स्पेशल

एक्सपर्ट व्यूः डॉ. त्रिलोचन महापात्र, सचिव, कृषि अनुसंधान और शिक्षा, भारत सरकार

हम जानते तो पहले से थे, कोरोना में फिर से मानने को मजबूर हुए हैं कि किसान अपनी फसल का साथ कभी नहीं छोड़ता। ना कभी हमें भूखा रहने देता है। बीत रहे साल के दौरान कोरोना के साये में भी किसानों ने अच्छी फसल उगाई। दूध और पोल्ट्री का उत्पादन भी बढ़ाया। निर्यात के स्तर पर भी अच्छा किया। जल्दी खराब होने वाले उत्पाद को ले कर किसानों को समस्या हुई, क्योंकि लॉकडाउन की वजह से बाजार बंद थे। लेकिन अब यह समस्या दूर हो चुकी है। अब जो फसलें खेत में हैं वे भी अच्छा कर रही हैं। खेती के लिहाज से अगला वर्ष भी अच्छा रहने की पूरी उम्मीद रखिए।
अगला वर्ष खेती और जुड़ी हुई गतिविधियों के लिए बहुत अहम होने वाला है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2022 तक किसानों की आय दुगनी करने का जो लक्ष्य दिया है उसे हासिल करने के लिए युद्ध स्तर पर काम करना है। इसी वर्ष भारत की आजादी का 75वां साल भी लग जाएगा। किसानों, पशुपालकों, मत्स्य पालकों के लिए यह खास मौका बनाना है। इसके लिए फूड प्रोसेसिंग और इनसे जुड़े सुक्ष्म, लघु व मंझोले उद्योगों पर भी खास ध्यान दिया जा रहा है।
अगले कुछ वर्षों में हम देश से कुपोषण और भूख की समस्या को भी खेती की मदद से दूर करने में जुटे हैं। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आइसीएआर) के 2028 में 100 साल पूरे हो रहे हैं। इसी तरह भारत ने 2030 तक अपने यहां से कुपोषण और भूख को समाप्त करने का लक्ष्य तय किया है। फसलों में पोषण बढ़ाने के लिए बायो फोर्टिफाइड किस्मों पर काम तेजी से किया जा रहा है। 2014 तक सिर्फ एक-दो ही ऐसी किस्में थीं। अब तक हमने 17 तैयार कर ली हैं। अगले आठ साल में इसे 80-100 तक पहुंचाना है। इन्हें इतना सहज और लोकप्रिय बनाना है कि किसान इन्हें उगाएं।
दूसरी चुनौती है रसायन के उपयोग को कम करना। यह भी ध्यान रखना है कि ऐसा करते हुए हम कृषि उत्पादन को कम नहीं कर सकते। क्योंकि बढ़ती हुई जनसंख्या के लिए हमारी जरूरतें भी बढ़ रही हैं। लेकिन दुरुपयोग को कम करना है। साथ ही जहां तक संभव हो आर्गेनिक फार्मिंग की जाए, जिसमें खाद और रसायनों का उपयोग होता ही नहीं है। माइक्रोबियल कंसोर्टियम तैयार कर रहे हैं जिससे खाद का उपयोग कम हो। नैनो खाद से उर्वरक का इस्तेमाल 25-30 प्रतिशत तक कम हो जाएगा। नई-नई पद्धतियां और तकनीक का उपयोग किया जाएगा।

आशंकाएं होंगी दूर

किसान बिलों के माध्यम से बड़े सुधार की जमीन तैयार की गई है। किसान मौजूदा मंडियों में तो बेचे ही, उसके पास और विकल्प भी हों। धीरे-धीरे इसको ले कर आशंकाएं दूर होंगी और गतिरोध समाप्त होगा।
कॉपरेटिव बनाने पर होगा जोर

छोटे और सीमांत किसानों के लिए किसान कॉपरेटिव खड़े करने होंगे ताकि उनका उत्पादन बेहतर हो और साथ ही बाजार में उनकी शक्ति भी ज्यादा हो। दुग्ध उत्पादन में कॉपरेटिव की वजह से सभी संबंधित पक्षों को फायदा हुआ है। हमें निर्यात के लायक कृषि उत्पादन करना होगा। साथ ही प्रोसेसिंग पर भी ध्यान देना होगा। अभी 5-7 प्रतिशत तक ही उत्पादन की प्रोसेसिंग हो रही है।
तकनीक का होगा उपयोग

नए साल में खेती में नई तकनीक, डेटा एनालिटिक्स, रिमोट सेंसिंग, ड्रोन, प्रिसिजन एग्रीकल्चर जैसे डिजिटल सिस्टम का उपयोग बढ़ेगा। पशुओं और फसलों की बीमारी पर नजर रखनी होगी। निर्यात बढ़ेगा।
इंटरव्यूः मुकेश केजरीवाल

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