मंत्रालय का मानना है कि सितंबर तक कम से कम 70 करोड़ लोगों को टीके लगाने होंगे। क्योंकि, हर्ड इम्युनिटी के लिए 80 फीसदी से ज्यादा लोगों में एंटीबॉडी विकसित होना जरूरी है। इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए प्रतिदिन 93 लाख से एक करोड़ के बीच टीके लगाने होंगे। अभी 8-9 घंटे की शिफ्ट में हम अधिकतम 42.6 लाख टीके लगा सके हैं। घोषित लक्ष्य तक पहुंचने के लिए 24 घंटे टीकाकरण एक अच्छा सुझाव है। लेकिन, यह तभी कारगर होगा जब टीकों की उपलब्धता सुनिश्चित होगी। वैक्सीन कम्पनियां लगातार उत्पादन बढ़ाने का प्रयास कर रही हैं और सरकार ने भी इस बार आगे बढ़कर करीब 74 करोड़ डोज की बुकिंग कर ली है। उम्मीद की जा रही है कि जुलाई से सितंबर के बीच टीकों की पर्याप्त खुराक उपलब्ध होगी। अगस्त से दिसंबर के बीच 216 करोड़ वैक्सीन खुराक उपलब्ध होने का अनुमान है। यानी टीका लगाने की व्यवस्था बना ली जाए तो दिसंबर तक लक्ष्य हासिल करना मुश्किल नहीं होगा।
टीकाकरण की व्यवस्था भले ही केंद्र सरकार ने अपने हाथ में ले ही है, लेकिन उसे रफ्तार देने और व्यवस्था की निगरानी का जिम्मा राज्यों के पास ही है। केंद्र से वैक्सीन उपलब्ध हो जाने के बाद जल्द से जल्द लोगों को लगाने का हरसंभव प्रयास करना राज्यों का दायित्व है।
ज्यादा से ज्यादा टीकाकरण केंद्र बनाने होंगे। पल्स पोलियो टीकाकरण की तरह ही देश में मौजूद 1,50,000 हेल्थ सब-सेंटरों (एचएससी) और हेल्थ वेलनेस सेंटरों (एचडब्ल्यूसी) का इस्तेमाल करना होगा। इन्हीं केंद्रों पर करीब 74 फीसदी ग्रामीण और 45 फीसदी शहरी बच्चों का टीकाकरण पहले किया गया है। केंद्र सरकार का मानना है कि घर-घर जाकर टीके लगाना जोखिम भरा हो सकता है। इसलिए घर के पास टीका केंद्र बनाने की बात कही गई है। देश में ऐसे इलाके भी हैं, जहां मोबाइल टीका केंद्र ज्यादा उचित और व्यावहारिक रहेगा। इसके अतिरिक्त प्राइवेट प्रैक्टिशनर या फैमिली डॉक्टरों को भी इसमें शामिल किया जा सकता है। सिर्फ सरकारी केंद्रों और बड़े निजी अस्पतालों के भरोसे भी हम लक्ष्य हासिल नहीं कर पाएंगे। वैक्सीन लगाने में हिचकिचाहट को दूर करने में फैमिली डॉक्टरों की बेहतर भूमिका हो सकती है। अमरीका में ऐसा किया गया है।