‘सारे जहां से अच्छा’ सुनकर प्राय: हमें इकबाल याद आते हैं, पर कम लोगों को पता होगा कि इसकी धुन पं. रविशंकर ने बनाई है। भारतीय स्वतंत्रता की स्वर्ण जयंती का पर्व जब मुंबई के एनसीपीए में मनाया गया तो 14 अगस्त १९97 की रात पं. रविशंकर का कार्यक्रम रखा गया था। रात्रि बारह बजे समारोह का सबसे रोमांचक क्षण था जब टाटा सभागार में अपना सितार वादन रोककर, स्वतंत्रता की स्वर्ण जयंती का स्वागत उन्होंने ख़ुद के बनाए ‘शांतिमंत्र’ से किया। सभागार की बत्तियां धूमिल हो चलीं और रविशंकर के स्वर संयोजन में ‘ऊं शांति’ का सुरीला नाद फिजाओं में फैल गया। इसके तुरंत बाद उन्होंने सितार पर ‘सारे जहां से अच्छा..’ बजाया और फिर हजारों कण्ठों का समवेत स्वर गूंज उठा। उनका सितार गाता था। उनकी सोच वैश्विक थी। वे सच्चे अर्थों में भारत के सांस्कृतिक राजदूत थे। इधर शताब्दी वर्ष के निमित्त
केन्द्रीय संगीत नाटक अकादमी, नई दिल्ली की पत्रिका ‘संगना’ का आगामी अंक पंडित रविशंकर के समग्र योगदान पर केन्द्रित होगा। बेसुरे होते जा रहे इस समय में रविशंकर को यह सुरीला प्रणाम होगा।
(लेखक कला, साहित्य समीक्षक और टैगोर विश्व कला एवं संस्कृति केन्द्र के निदेशक हैं)