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Patrika Opinion: चिंतन से परे कांग्रेस के सामने चिंता का पहाड़

Published: Aug 28, 2022 10:00:16 pm

Submitted by:

Patrika Desk

तीन महीने पहले उदयपुर के नव संकल्प चिंतन शिविर में कांग्रेस को पटरी पर लाने का जो रोडमैप तैयार किया गया था, उससे परे पार्टी ऐसे चौराहे पर खड़ी है, जहां से आगे जाने का रास्ता उसके नेतृत्व को सूझ नहीं रहा है। पार्टी में कोई भरोसेमंद ‘चाणक्य’ नजर नहीं आता।

प्रतीकात्मक चित्र

प्रतीकात्मक चित्र

गुलाम नबी आजाद का कांग्रेस से इस्तीफा देश की सबसे पुरानी पार्टी के लिए बड़ा झटका भले हो, यह अप्रत्याशित कतई नहीं है। इसकी पटकथा काफी समय से लिखी जा रही थी। शायद तभी से, जब आजाद की अगुवाई में असंतुष्ट नेताओं का जी-23 गुट सक्रिय हुआ था। पिछले साल कांग्रेस आलाकमान के खिलाफ इस गुट के तेवर खुलकर सामने आए थे। तब आजाद ने पार्टी की कार्यवाहक अध्यक्ष सोनिया गांधी को पत्र लिखकर कार्यसमिति की बैठक तत्काल बुलाने की मांग की थी और गुट के दूसरे नेता कपिल सिब्बल ने बयान दिया था कि पार्टी में स्थायी अध्यक्ष नहीं होने से यही पता नहीं चलता कि कांग्रेस में फैसले कौन कर रहा है।
अजीब विडंबना है कि एक तरफ कांग्रेस ‘भारत जोड़ो यात्रा’ की तैयारी कर रही है, दूसरी तरफ एक-एक कर उसके नेता उसे छोडक़र जा रहे हैं। कपिल सिब्बल, अमरिंदर सिंह, सुनील जाखड़, अश्विनी कुमार और आरपीएन सिंह के बाद अब गुलाम नबी आजाद के इस्तीफे से कांग्रेस नेतृत्व सवालों के कटघरे में है। तीन महीने पहले उदयपुर के नव संकल्प चिंतन शिविर में कांग्रेस को पटरी पर लाने का जो रोडमैप तैयार किया गया था, उससे परे पार्टी ऐसे चौराहे पर खड़ी है, जहां से आगे जाने का रास्ता उसके नेतृत्व को सूझ नहीं रहा है। पार्टी में कोई भरोसेमंद ‘चाणक्य’ नजर नहीं आता। कभी अहमद पटेल पार्टी नेतृत्व के राजनीतिक सलाहकार हुआ करते थे। दो साल पहले उनके निधन के बाद कांग्रेस में ऐसा कोई नहीं है, जो मार्गदर्शन कर सके। जी-23 गुट के नेता पार्टी में आंतरिक लोकतंत्र की बहाली की मांग तो उठाते रहे हैं, पर कोई स्पष्ट रणनीति वे भी नहीं रख सके। पार्टी नेतृत्व की तरह असमंजस से घिरा यह गुट कांग्रेस में परिवारवाद और व्यक्तिवाद के खिलाफ मुखर होता है, पर व्यक्तिगत लाभ-हानि के गणित में उलझा रहता है। गुलाम नबी आजाद के इस्तीफे का एक बड़ा कारण यह भी है कि पार्टी नेतृत्व ने उन्हें हाशिए पर डाल रखा था। उनका राज्यसभा का कार्यकाल पूरा हो जाने के बाद कांग्रेस ने उन्हें फिर राज्यसभा पहुंचने का मौका नहीं दिया।
कांग्रेस में उपेक्षा दिग्गज ही नहीं, युवा नेता भी झेल रहे हैं। ज्योतिरादित्य सिंधिया, जितिन प्रसाद, सुष्मिता देव, प्रियंका चतुर्वेदी और हार्दिक पटेल के बाद जयवीर शेरगिल भी पार्टी को अलविदा कह चुके हैं। कांग्रेस के लिए अब अपने नेताओं के साथ समन्वय को चुस्त-दुरुस्त और आम कार्यकर्ताओं तक नेटवर्क का विस्तार करना जरूरी हो गया है। दरअसल, कांग्रेस अपने नेताओं ही नहीं, कार्यकर्ताओं की उपेक्षा का भी खमियाजा भुगत रही है।
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