बड़ा सवाल यह है कि इमरान की पार्टी का अब क्या भविष्य है? एक नई कठपुतली सरकार बन रही है। इमरान पर आरोप है कि उन्होंने वाशिंगटन स्थित पाकिस्तानी राजदूत द्वारा इस्लामाबाद सरकार को भेजे गए एक गुप्त राजनयिक केबल का खुलासा करके आधिकारिक गोपनीयता अधिनियम का उल्लंघन किया। इस आधार पर उन्हें सजा सुनाई गई। तोशखाना से मिले बेशकीमती उपहार को बेचने संबंधी मामले में निचली अदालत ने उन्हें तीन साल की सजा सुनाई। इसके बाद देश के चुनाव आयोग ने उन्हें चुनाव लडऩे से रोक दिया था। इस एक और सजा ने उनकी चुनाव लडऩे की संभावना शून्य में बदल दी। इसका उनकी पार्टी के नेताओं-कार्यकर्ताओं पर गंभीर असर पड़ेगा। दूसरी बात यह है कि चुनाव आयोग ने उनकी पार्टी पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ (पीटीआई) को चुनाव चिह्न क्रिकेट बैट देने से इनकार कर दिया है। यह एक बहुत बड़ा झटका है।
ऊपरी अदालतों से इमरान को राहत मिलने की संभावनाएं कम है। इमरान के राजनीतिक करियर पर ग्रहण लगने से सीधे तौर पर नवाज शरीफ की पार्टी मुस्लिम लीग नवाज (पीएमएल-एन) को फायदा होगा। इमरान ने पिछले साल मई में सेना को चुनौती दी। ऐसा लगता है कि सेना ने शरीफ बंधुओं को गोद ले लिया है और इमरान की खाली जगह को भरने के लिए शरीफ तैयार हैं। एक अन्य तथ्य यह भी है कि अमरीका चीनी प्रभाव का प्रतिकार करना चाहता है। इमरान ने एक भारी भूल यह भी की थी कि जब उन्हें सत्ता गंवानी पड़ी तो उन्होंने इसे अमरीका और सेना का षड्यंत्र बताया। अमरीकी प्रशासन को पाकिस्तान में शासन करने वाले सैन्य जनरलों के साथ अच्छे रिश्ते रखने के लिए जाना जाता है। इमरान के यूक्रेन युद्ध के बीच मास्को जाने, राष्ट्रपति पुतिन से मुलाकात करने के अलावा चीन के साथ मजबूत रिश्ते बनाने से भी अमरीका उनसे नाराज है। अमरीका के लिए राहत होगी, यदि नवाज को सत्ता हासिल हो जाती है।
यदि नवाज शरीफ जीत जाते हैं तो वह सेना को भरोसे में लेकर भारत के साथ रिश्तों में सुधार ला सकते हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी 26 मई 2014 को अपने शपथग्रहण समारोह में नवाज शरीफ को आमंत्रित कर चुके हैं। मोदी ने एक नया माहौल बनाने की कोशिश की थी। नवाज ने शांति के संदेश के साथ समारोह में भाग लिया और जून 2014 में एक पत्र लिखकर मोदी के साथ अपनी बातचीत से संतुष्टि व्यक्त भी की थी। लेकिन सब कुछ अस्त-व्यस्त हो गया।
पाकिस्तान इस स्थिति में नहीं है कि वह चीन के प्रति अपना झुकाव कम कर सके क्योंकि चीन ने उसे अपने कर्जजाल में पूरी तरह फंसा लिया है। अमरीका के विलियम और मैरी यूनिवर्सिटी के एक शोध संस्थान के अनुसार पाकिस्तान पर चीनी कर्ज 67.2 बिलियन डॉलर से अधिक हो गया है। ऐसे में सत्ता में आने वाली कोई भी सरकार चीन की बेडिय़ों से मुक्ति नहीं हो पाएगी। विश्लेषकों का मानना है कि पाकिस्तान के सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव कराने के लिए सरकार को निर्देश देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। इससे लोकतंत्र के फिर चैतन्य होने की कुछ उम्मीदें जगी है, भले ही वह नाजुक हो। इसके बावजूद नई सरकार की घरेलू और विदेश नीति तय करने में सेना ही अंतिम हस्ताक्षर होगी।