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आपकी बात, पशुओं के प्रति क्रूरता कैसे रोकी जा सकती है?

locationनई दिल्लीPublished: Oct 26, 2020 05:38:03 pm

Submitted by:

shailendra tiwari

पत्रिकायन में पूछा गया सवाल, पाठकों ने मिलीजुली प्रतिक्रिया दी। पेश हैं चुनिंदा प्रतिक्रियाएं

सख्त कानून के साथ जुर्माना भी हो
पशुओं के साथ क्रूरता की घटनाएं बहुत ज्यादा हो रही हंै। सड़क पर रहने वाले जानवरों से लेकर पालतू पशुओं तक को क्रूरता झेलनी पड़ती है। दूध निकालकर गायों को भी यूं ही छोड़ दिया जाता है। भूखी-प्यासी गाएं कचरे में मुंह मारती नजर आती हैं। कुत्ते बहुत ज्यादा क्ररता झेलते हैं। पाड़े, घोड़े, खच्चर, ऊंट, बैल, गधे जैसे जानवरों का इस्तेमाल माल की ढुलाई के लिए किया जाता है। इस दौरान उनके साथ बहुत ज्यादा क्रूरता होती है। पशुओं की तकलीफों को लेकर बिलकुल भी जागरूकता नहीं है। पशुओं के प्रति क्रूरता रोकने के लिए कानून सख्त होना चाहिए ,जेल भी हो और साथ-साथ भारी जुर्माना भी हो, ताकि लोगों में डर पैदा हो। मीडिया पशु-पक्षियों के संरक्षण के लिए काम करने वाले लोगों के बारे में ज्यादा से ज्यादा बताए। पशु कल्याण अधिकारी के नाम, फोन नंबर का प्रचार किया जाए। पशु-पक्षियों के संरक्षण के लिए काम करने वाले सभी सरकारी विभागों और संस्थाओं के बारे में ज्यादा से ज्यादा जानकारी दी जाए, ताकि लोगों में जागरूकता पैदा हो।
-कपिल बाजपेई, प्रताप नगर, जयपुर
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हर प्राणी को है जीने का अधिकार
पशु-पक्षियों की रक्षा करना हमारा पुनीत दायित्व है। कोरोना वायरस का संक्रमण प्रकृति के साथ किए अन्याय का प्रतिफल माना जा रहा है। कोरोना संक्रमण कहीं ना कहीं यह उम्मीद लेकर आया कि शायद मानव जीवनदायी प्रकृति और इसके सभी हिस्सेदारों के प्रति अब संवदनशील होगा, लेकिन ऐसा हो नहीं रहा। पशुओं पर क्रूरता रोकने के लिए जिला मुख्यालयों पर हेल्पलाइन नंबर जारी किए जाने चाहिए। इस चराचर जगत में प्रत्येक प्राणी को जीने का अधिकार है। इनके प्रति संवेदनशील बनना होगा। ग्रामीण स्तर पर से लेकर जिला स्तर पर जीव दया संस्थानों की स्थापना होनी चाहिए।
-विद्या शंकर पाठक, सरोदा, डूंगरपुर
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कानूनों का पालन करवाया जाए
पशुओं का उत्पीडऩ और क्रूरता कोई नई समस्या नहीं है। सदियों से पशुओं के साथ बुरा व्यवहार होता आया है। प्राचीनकाल में हाथी-घोड़ों का उपयोग युद्ध के समय बड़ी संख्या में किया जाता था। उपयोगी होने के बावजूद मानव जानवरों पर क्रूरतापूर्ण अत्याचार करता रहता है। इनके रहने के स्थान बदहाल होते हैं, उन्हें खाने के लिए पर्याप्त मात्रा मे चारा-पानी नहीं दिया जाता है। क्षमता से अधिक माल उन पर लाद दिया जाता है। वनों की अंधाधुंध-कटाई, नवीन निर्माण कार्यों के लिए खेती योग्य जमीन का कम होना भी पशुओं की बदहाली का कारण है। विभिन्न अधिनियमों के माध्यम से पशुओं के अधिकारों को सुरक्षित भी किया गया है। हाल ही में दक्षिण के एक राज्य में गर्भवती हथिनी को बारूद खिला कर मार दिया गया। पशु-पक्षियों के संरक्षण के लिए बने नियम-कानूनों का ईमानदारी से पालन करवाकर इन बेजुबानों को अत्याचारों से मुक्ति दिलाई जा सकती है। स्वयंसेवी संस्थाओं को आंदोलन चला कर पशु-पक्षियों के साथ क्रूरता रोकनी चाहिए।
-नरेश कानूनगो, बेंगलुरू
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शुरुआत घर से करें
कानून बनाने मात्र से इस समस्या पर विजय प्राप्त नहीं की जा सकती। इसके लिए जरूरी शुरुआत परिवार से करनी होगी। आज के बच्चे कल का भविष्य हंै। जब वे परिवार के सदस्यों को पशु-पक्षी के साथ संवेदनशील व्यवहार करते हुए देखेंगे तभी वे ऐसा व्यवहार करना सीखेंगे। जब हम बाहर निकलते हैं, तो पशुओं के साथ क्रूरता की घटनाएं भी नजर आती हैं। कुछ लोग पशु-पक्षियों के साथ क्रूरतापूर्ण व्यवहार करते हैं। ऐसे लोगों को रोकें, पृथ्वी पर जितना हक हमारा है उतना ही उन निरीह प्राणियों का भी है। हमें समझना चाहिए कि जब हम किसी को जीवनदान नहीं दे सकते तो हमें उसे मारने का भी कोई हक नहीं बनता है।
-एकता शर्मा, गरियाबंद, छत्तीसगढ़
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पशु-पक्षियों के अधिकारों के लिए आवाज उठाएं
भारत जैसे देश में जहां प्रत्येक जीव को ईश्वर का रूप का माना जाता रहा है, वहां मात्र शरारत करने के उद्देश्य से पशुओं पर अत्याचार करना निंदनीय है। जानवरों पर हो रहे अत्याचारों को रोकने के लिए भारत सरकार ने कानून बनाए हैं, लेकिन इन कानूनों के प्रति जागरूक रहने की भी आवश्यकता है। हर जीवित प्राणी के प्रति सहानुभूति रखना भारत के हर नागरिक का मूल कर्तव्य है। पशु-पक्षी अपने अधिकारों के लिए लड़ नहीं सकते। ऐसे में यह हमारी जिम्मेदारी है कि हम इनके लिए आवाज उठाएं।
-डॉ.अजिता शर्मा, उदयपुर
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आम आदमी की भी जिम्मेदारी
विश्व के ज्यादातर धर्मों में पशुओं की हत्या को पाप माना गया है। फिर भी कुछ लोग मूक जानवरों की जान लेने से नहीं चूकते। पशुओं के साथ क्रूरता उनकी संवेदनहीतना को दर्शाता है। वर्तमान असल में मनुष्यों में मनुष्यता का पतन हो रहा है। अब सवाल है पशुओं के प्रति हिंसा रोकने का। सर्वप्रथम आमजन को अपने मन मे पशु-पक्षियों के प्रति दयाभाव की भावना जाग्रत करनी चाहिए। पशुओं के साथ क्रूरता करने वाले लोगों के लिए सख्त सख्ती की जाए। साथ ही आमजन भी ऐसे कृत्य करने वाले लोगो को रोके या प्रशासन से उनकी शिकायत करे।
– तेजपाल गुर्जर, हाथीदेह, श्रीमाधोपुर
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पशुशालाएं खोली जाएं
पशु क्रूरता रोकने के लिए कानून को सख्त होना पड़ेगा। कठोर प्रावधान सिर्फ कागजों में ही सीमित न हों, बल्कि सख्ती से लागू भी होने चाहिए और दण्ड राशि में बढ़ोतरी होनी चाहिए। पशुपालको को प्रोत्साहन राशि देनी चाहिए, पशु बीमा योजना को बढ़ावा देना होगा। पशु चिकित्सालयों की संख्या बढ़ा देनी चाहिए और उनमें पड़े रिक्त पदों की पूर्ति होनी चाहिए, उनमें आधुनिक सुविधाओं के साथ मुफ्त दवाइयां उपलब्ध होनी चाहिए। सरकार को गौशालाओं की तर्ज पर अन्य पशुओं के लिए भी पशुशालाएं खुलवा देनी चाहिए। पशुधन बढ़ाने के लिए सस्ती दरों पर लोन उपलब्ध कराने से लोगों का पशुपालन के प्रति रुझान होगा एवं उनका मनोबल बढ़ेगा। इससे पशुओं के प्रति क्रूरता कम होने के साथ रोजगार भी बढ़ेगा।
-शिवजीत परमार, धौलपुर
कथनी और करनी में अंतर
पशुओं का मानव जीवन में प्रत्यक्ष योगदान है। जैसे दुग्ध उत्पादन, कृषि, माल ढुलाई, खाद्य आपूर्ति। उपर्युक्त असंख्य उपयोगिता के बावजूद पशुओं के प्रति क्रूरता किसी से छिपी नहीं है, चाहे वह अत्यधिक संख्या में माल ढोना हो या मुंह बांधना या गंदगी वाले स्थानों पर उनको रखना हो । इससे साबित होता है कि हमारी कथनी और करनी में अंतर है।
-संदीप कुमार यादव, ,मुंबई
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पशुओं का संरक्षण जरूरी
पशुओं पर हो रही क्रूरता मानव में समाप्त हो रही मानवता की ओर इंगित करती है। दया, करुणा एवं प्रेम अपने हृदय में समाहित करें। देश के नागरिक संविधान द्वारा प्रदत्त मौलिक कर्तव्यों का समुचित निर्वहन करें और सरकार पशुओं के संरक्षण के लिए उचित कदम उठाएं ।
-अनिल डोली, जोधपुर
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बढ़ती संवेदनहीनता है जिम्मेदार
पशु क्रूरता एक बहुत ही चिंतनीय विषय है। इसका मूल कारण आम आदमी में बढ़ती संवेदनहीनता है। प्रारंभिक पाठ्यक्रम में ही बच्चों को पशु प्रेम से संबंधित गद्य-पद्य को ज्यादा पढ़ाया जाना चाहिए। बच्चों के दिल-दिमाग में पशु-पक्षियों के प्रति भी दया की भावना विकसित करने से वे संवदेनशील बनेंगे। इससे निश्चित रूप से पशुओं से क्रूरता के मामले कम होंगे। ।
-अभय गौतम, कोटा
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जरूरी है सख्ती
पशुओं पर क्रूरता को रोकने के लिए संबंधित कानूनों का सख्ती से पालन कराएं। विभिन्न स्वयंसेवी संस्थाएं स्थानीय प्रशासन से सामंजस्य स्थापित कर आवारा पशुओं के लिए आवास, भोजन, जल, चिकित्सा जैसी सुविधाएं उपलब्ध कराएं। चारागाह को संरक्षण दिया जाए। पशु हिंसा को रोकने के लिए सख्त कानून बनाने होंगे।
-शिवराज मालव, तालेड़ा, बूंदी
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बेअसर है कानून
पशु-पक्षियों पर अत्याचार रोकने के लिए कानून भी बने हुए हैं। इसके बावजूद पशु-पक्षियों पर अत्याचार बढ़ रहे हैं। सिस्टम की विफलता ही है कि प्रभावी कानून होने के बाद भी पशुओं पर होने वाले अपराध थमने का नाम ही नहीं ले रहे। सरकार को इस सम्बंध में और कठोर नियम और कानून बनाने होंगे। हर व्यक्ति को पशुओं के प्रति सहिष्णुता का परिचय देना होगा।
-सौरभ गोंदिया, भिण्ड,मप्र
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सभी को जीने का अधिकार
दया भारतीय संस्कृति की मूलभूत विचारधारा है। सभी को जीने का अधिकार है, चाहे वह पशु ही क्यों न हो। हमें उनकी रक्षा के लिए भी आगे आना चाहिए। साथ ही पशु की बलि जैसी प्रथाओं पर जहां तक संभव हो रोक लगानी चाहिए। लोगों को पशुओं का महत्व समझाना चाहिए।
-शैलेन्द्र सिंह कांवट, जयपुर
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नहीं मिलता प्रशासन का सहयोग
पशुओं पर हो रही क्रूरता किसी से छिपी नहीं है। पशु क्रूरता को रोकने के लिए जो कानून बनाए गए हैं, उनका ईमानदारी से पालन नहीं किया जा रहा है। यही वजह है कि पशुओं पर क्रूरता पूर्वक व्यवहार किया जा रहा है। देश में कई जगह जीव दया के लिए काम करने वाली संस्थाएं बनी हुई हैं, लेकिन दुर्भाग्यवश उनको शासन-प्रशासन का सहयोग नहीं मिलता है। ।
-प्रकाश हेमावत, रतलाम, मप्र
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मांस का निर्यात बंद हो
पशुओं के साथ क्रूरता रोकना आवश्यक है। इसके लिए देश में कत्लखाने बंद करने होंगे। मांस का निर्यात बंद करना होगा। आर्थिक लाभ के लिए पशु-पक्षियों का वध करना ठीक नहीं है। अहिंसा पर विश्वास रखने वाले देश को तो इससे दूर ही रहना चाहिए।
-नरेंद्र जैन, बांसवाड़ा
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धर्म के नाम पर न हो पशु वध
धर्म के नाम पर किसी भी पशु की हत्या को किन्ही भी तर्को के आधार पर उचित नहीं ठहराया जा सकता पशुओं को भी जीने का अधिकार है और उनसे यह अधिकार छीनने का किसी को कोई हक नहीं है। धर्म की आड़ में पशुओं की हत्या बंद होनी चाहिए। मनुष्य स्वयं को प्रकृति का जागीरदार ना समझे। जितना मनुष्य का इस प्रकृति पर अधिकार है, उतना ही इस प्रकृति पर पशुओं का भी अधिकार है।
-शुभम आजाद, सवाई माधोपुर
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दया भाव का विकास जरूरी
जिस देश में गाय को माता समझा जाता है और हर जीव की रक्षा करना परम धर्म समझा जाता है, वहां पशुओं के साथ क्रूरता निंदनीय है। पशुओं के प्रति क्रूरता तभी रूक सकती है, जब इसके लिए सख्त कानून के साथ लोगों के अंदर पशुओं के प्रति दया भाव की भावना विकसित हो।
-राजेश कुमार चौहान, जालंधर, पंजाब
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कानून का सख्ती से पालन हो
आज भी पशुओं के साथ क्रूर व्यवहार किया जाता है। कहीं उनको जिंदा जला दिया जाता है, तो कहीं उनको गाड़ी से कुचलकर मार दिया जाता है। पशु भी हमारी जिन्दगी में अहम भूमिका निभाते है। पशुओं को इस क्रूरता से बचाने के लिए कानून का सख्ती से पालन करना होगा। इसके लिए जागरूकता अभियान चलाया जाना चाहिए।
-ज्योति दयालानी, बिलासपुर

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