उसकी जांबाजी देख अच्छे-अच्छों का दिल कांप जाता था। लेकिन एक दिन जैसे ही उसने अपना सिर शेर के मुंह में डाला शेर ने जबाड़ा बंद कर लिया और वो कथित बहादुर रिंगमास्टर कुछ देर में ही भगवान को प्यारा हो गया। मित्रो ये जो आरक्षण है न यह भी एक तरह से शेर का मुंह है।
आरक्षण रूपी शेर के मुंह में हाथ देकर अपने पूर्व प्रधानमंत्री जिनके बारे में कहा जाता था- “राजा नहीं फकीर है, भारत की तकदीर है”, अपना सब कुछ गंवा बैठे।
जी हां, हम विश्वनाथ प्रताप सिंह की बातें कर रहे हैं जिन्होंने राजीव गांधी के खिलाफ बोफोर्स का शगूफा छोड़ा और बाद में मंडल आयोग के शेर पर सवारी की और उसका परिणाम हम सब भुगत रहे हैं। जिन्हें फायदा मिल रहा है वे बुरा न मानें, यह आरक्षण अब आभक्षण में बदल चुका है। जिस इंसान को ब्लड कैंसर होता है उसके खून में श्वेत रक्त कणिकाएं बढ़ जाती हैं जो आम तौर पर आदमी को बीमारी से बचाती हैं, यही उसकी जान भी ले लेती हैं।
आरक्षण यही कणिकाएं हैं। माना कि कुछ समुदायों के साथ समाज में बेइंसाफी हुई, लेकिन उसका जो तोड़ हमने निकाला है यह कतई ठीक नहीं। प्रतिभाएं हर समाज में होती हंै, हरेक बच्चे को आगे बढ़ने का हक है लेकिन जो रेंग भी नहीं सकता उसे क्या ओलम्पिक रेस में भेजा जा सकता है? आज जिसे देखो वही आरक्षण के लिए बावला है- अगड़ा भी, पिछड़ा भी और लंगड़ा भी।
काबीलियत को मारो गोली। अब हम “फलानी” जाति में पैदा हो गए तो क्या हमें विशेष्ााधिकार मिल गए। और मजे देखिए। सबसे ज्यादा ऎश उनकी औलादें कर रही हैं जिनके बाप-दादा आरक्षण का आम ऑलरेडी चूस चुके। उनके गरीब रिश्तेदार भले ही रोते-कलपते रहें। यानी जिन जातियों में आरक्षण है वहां भी सीधे-सीधे दो वर्ग नजर आते हैं।
एक वे जो आरक्षण का लाभ ले चुके और अब वे अपने ही लोगों को इसका लाभ लेने नहीं दे रहे और दूसरे आज भी टुकुर-टुकुर ताक रहे हैं। योग्यता देख कर ही ब्ा्राह्मण चाणक्य ने शूद्र मां से उत्पन्न चन्द्रगुप्त को सम्राट बनाया था। ऎसी अनेक कथाएं हैं जिनमें अपने कर्मो से उच्च जाति के लोग निम्नवर्ग में शामिल कर दिए गए। बात जन्म की नहीं कर्म की होनी चाहिए लेकिन आजकल तो बाकायदा ढोल बजा कर जाति का डंका पीटा जाता है।
सत्ता के गलीचे जात-पांत के धागे से बुने जा रहे हैं। यही हाल रहा तो यह आरक्षण शीघ्र ही आभक्षण न बन गया तो हमारा नाम बदल देना। वैसे हमने तो अपना नाम बदल लिया। कोई बगैर पूरी खोजबीन किए हमारी जात बता ही नहीं सकता। – राही