मिलावट का जहर
Published: Apr 15, 2016 11:30:00 pm
देश के हर कोने में मिलावट का मकडज़ाल धड़ल्ले से चल रहा है लेकिन उसे
रोकने वाला सरकारी तंत्र कुंभकर्णी नींद सो रहा है। हां, होली-दिवाली के
मौके पर मिलावटी मावा, दूध और पनीर जब्ती की खबरें पढ़ने को जरूर मिल जाती
हैं।
मिलावट के नासूर ने समाज को इस कदर खोखला कर दिया है कि अब तो लोगों की जान पर ही बन आने लगी है। पिछले दिनों राजस्थान के बाड़मेर में जहरीली शराब पीने से 11 लोगों की मौत या ऐसी दूसरी मौतों का मामला तो एक बानगी भर है। देश के अलग-अलग हिस्सों से कहीं जहरीली शराब तो कहीं जहरीले भोजन और कहीं विषाक्त चाय के सेवन से मरने की खबरें आम बात हो चली हैं।
पैसे की हवस ने आदमी को इतना अंधा बना दिया है कि थोड़े से लालच के लिए वह इंसान की जिंदगी से खिलवाड़ करने में भी परहेज नहीं करता है। शादी-विवाह जैसे समारोह में विषाक्त भोजन के सेवन से मरने की खबरें आती हैं तो दिमाग में एक ही सवाल कौंधता है कि भला कोई अपने घरेलू कार्यक्रम में ऐसा विषाक्त खाना क्यों परोसेगा जो लोगों की जिंदगी पर ही भारी पड़ जाए। जबकि असल में खाने-पीने के सामान में मिलावट की वजह से ऐसे भोज लोगों की मौत का कारण बन जाते हैं। हैरानी की बात ये है कि देश के हर कोने में मिलावट का मकडज़ाल धड़ल्ले से चल रहा है लेकिन उसे रोकने वाला सरकारी तंत्र कुंभकर्णी नींद सो रहा है।
हां, होली-दिवाली के मौके पर मिलावटी मावा, दूध और पनीर जब्ती की खबरें पढ़ने को जरूर मिल जाती है। आम जन को तभी पता चलता है कि मिलावट रोकने वाला कोई विभाग भी काम कर रहा है। यहां सवाल मिलावट के चलते जहरीला होने के कारण मरने वालों तक ही सीमित नहीं है। उससे भी बड़ा सवाल मिलावटी सामान के उपयोग से जिंदगी भर के लिए बीमार होने वाली जिंदगियों का है। मिलावट आज ऐसी समस्या बन चुकी है जिससे निजात पाने के हालात दूर-दूर तक नजर नहीं आ रहे। अपनी पीठ ठोकने के लिए सरकारें दावे तो बहुत करती हैं लेकिन हकीकत में नजर कुछ नहीं आता।
चंद छापे और चंद गिरफ्तारियां भी तब होती हैं जब खबरें मीडिया की सुर्खियां बन प्रशासन के लिए सिरदर्द साबित होने लगती हैं। चुनी हुई सरकारों का काम बिजली, पानी, सड़क, स्वास्थ्य और शिक्षा मुहैया कराने के साथ-साथ मिलावटखोरी कर समाज को खोखला कर रहे माफियाओं पर नकेल कसना भी है। साथ ही समाज में ये संदेश देना भी है कि कानून के साथ खिलवाड़ करने वालों को बख्शा नहीं जाएगा।
चीन इसका उदाहरण है जिसने मिलावट करने वालों को फांसी तक चढ़ाया है। हम हैं कि नमूनों में मिलावट सिद्ध भी नहीं कर पाते। सख्त कानून बनाने की डींगे हांकते हैं लेकिन उन्हें लागू नहीं कर पाते। हमारी सरकारों को सख्त तो होना ही होगा, अन्यथा लोग यूं ही मरते रहेंगे। कहीं जहरीली शराब पीकर तो कहीं विषाक्त भोजन के सेवन से।