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सस्ती दवा,महंगा जोखिम!

Published: Oct 05, 2015 11:43:00 pm

केन्द्र सरकार आम आदमी को दवाओं की ऑनलाइन खरीद-फरोख्त सुविधा उपलब्ध कराने पर विचार कर रही है। मामला हालांकि शुरूआती चरण में है लेकिन अभी से इसके विरोध में देश भर के थोक और खुदरा दवा विक्रेताओं ने लामबंद होना शुरू कर दिया है। इसी महीने की 14 तारीख को वे देशव्यापी हड़ताल भी करने […]

Online drug

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केन्द्र सरकार आम आदमी को दवाओं की ऑनलाइन खरीद-फरोख्त सुविधा उपलब्ध कराने पर विचार कर रही है। मामला हालांकि शुरूआती चरण में है लेकिन अभी से इसके विरोध में देश भर के थोक और खुदरा दवा विक्रेताओं ने लामबंद होना शुरू कर दिया है। इसी महीने की 14 तारीख को वे देशव्यापी हड़ताल भी करने जा रहे हैं।

आम आदमी को ऑनलाइन दवाइयां मिलने का क्या लाभ होगा? क्या उसे सस्ती दवाएं उपलब्ध होंगी? ऑनलाइन दवा खरीद के लिए डॉक्टर का पे्रस्क्रिप्शन कितना जरूरी होगा? थोक और खुदरा दवा विक्रेताओं को क्या हानि उठानी पड़ेगी? ऎसे ही सवालों पर जानिए विशेषज्ञों की राय आज के स्पॉटलाइट में…

सभी के हितों को ध्यान में रखकर होगा फैसला

डॉ. जीएन सिंह ड्रग कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया
हम इस मसले पर बेहद सतर्क हैं और टेक्नोलॉजी के खिलाफ नहीं है। लेकिन, नियामक का यह फर्ज होता है कि वह किसी भी मामले में फैसले से पहले, स्थितियों की जांच-परख कर ले। इसीलिए, ऑनलाइन दवाइयों की खरीद-फरोख्त के मामले में भी इस तकनीक को परखना चाहते हैं। यह बहुत ही जिम्मेदारी का मामला है, इसीलिए हम चाहते हैं कि इस तकनीक का इस्तेमाल हो तो कोई चूक ना हो। कोई भी इस तकनीक का दुरूपयोग नही कर पाए।

तकनीक परखना भी जरूरी
दवाओं के ऑनलाइन कारोबार को लेकर हमने एक हाई पावर कमेटी बनाई है। जिसमें राज्यों के ड्रग कंट्रोलर हैं, हमारे विभाग से कुछ लोग हैं और बहुत से विशेषज्ञ हैं। इसके अलावा विभिन्न ड्रग एवं केमिस्ट एसोसिएशनों के बहुत से लोग हैं। हम अभी तक इस समिति की दो बैठकें कर चुके हैं। फिलहाल विचार-विमर्श चल रहा है। हमारा मानना है कि जब तक तकनीक के इस्तेमाल को लेकर हम पूरी तरह से संतुष्ट नहीं हों, तब तक दवा संबंधी विधेयक में कोई बदलाव नहीं किए जाने चाहिए। किसी भी नियम कानून में जल्दबाजी में परिवर्तन ठीक नहीं होता है। परिवर्तन से पहले हर पक्ष को समझना और उसका आकलन करना बहुत जरूरी होता है।

आमतौर पर डॉक्टर जब मरीज जब दवाइयां देते हैं तो उनसे अपेक्षा रहती है कि वे दवाइयों के प्रभाव और दुष्प्रभाव के बारे में उन्हें बताएं। लेकिन, ऑनलाइन बिक्री में किस तरह से यह सब हो सकेगा, इस बारे में फिलहाल अस्पष्टता है। हमें इस तकनीक के इस्तेमाल से अच्छे लोगों से भय नहीं है लेकिन बहुत से ऎसे असमाजिक लोग भी हैं जो तकनीक का दुरूपयोग कर सकते हैं। उनसे ही भय लगता है। इन्हीं बातों पर हम खुले दिल विचार कर रहे हैं।

यही वजह है कि इस मामले पर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी बात कर रहे हैं। हम लोग यूरोप के लोगों से भी संपर्क में हैं। ब्रिटेन के नियामक ने इस मामले में हमारी सहायता की बात कही है। फिर हर जगह ही परिस्थितियां अलग-अलग होती हैं। अमरीका में इस तरह की प्रेक्टिस है लेकिन वहां से तुलना करना ठीक नहीं है।

वहां पर मरीज और उसके परिजन बहुत जागरूक होते हैं। इसके अलावा वहां पर बहुत सी व्यवस्थाएं कंप्युटरीकृत हो चुकी हैं। हमारे देश की सामाजिक परिस्थितियां बिल्कुल अलग हैं। यहां की चिकित्सा व्यवस्था और आर्थिक स्थितियां भी वहां से काफी अलग है। नियामक के तौर पर हमारा दायित्व है कि हम मरीज के हित में खुले दिल से फैसला लें। उसकी जरूरत सबसे हमारे लिए सर्वोच्च प्राथमिकता है। यही वजह है कि तकनीक के इस्तेमाल से संबंधित सारे सकारात्मक और नकारात्मक पक्षों का आकलन कर रहे हैं।

किसी का अहित नहीं होगा
जहां तक दवा विक्रेताओं की हड़ताल का सवाल है तो हम यही कहेंगे कि लोकतंत्र में उन्हें अधिकार है कि वे ऎसा कर सकते हैं। लेकिन, उनसे हम आग्रह कर सकते हैं कि वे इस तरह का फैसला न लें क्योंकि दवाइयां बेचना बहुत जिम्मेदारी का और बेहद जरूरी काम है। इस बात को वे समझते भी हैं और यही वजह है कि हम कर्फ्यू जैसी परिस्थिति में भी दवाइयों की दुकानों को मुक्त रखते हैं। ऎसे में उन्हें धैर्य रखने की आवश्यकता है। मैं बहुत की स्पष्ट तौर पर कह रहा हूं कि जल्दबाजी में कोई फैसला नहीं लिया जाना चाहिए और हम कोई भी फैसला लेने से पहले अन्य सभी के हितों का ध्यान रखेंगे।

शेडयूल्ड दवाओं के लिए पर्चा जरूरी
ड्रग एंड कॉस्मैटिक्स एक्ट 1945 के तहत दवाओं को विभिन्न श्रेणियों में बांटा गया है। इसमें दवाओं के संग्रहण, बिक्री, और डिसप्ले के बारे में दिशा-निर्देश हैं। शेडयूल जी, एच, एक्स और जे अंतर्गत शामिल दवाओं के लिए डॉक्टर का पर्चा समेत अन्य प्रावधानों की पालना जरूरी है।

ऑनलाइन फार्मेसी नियमन के लिए समिति
ऑनलाइन फार्मेसी के नियमन के लिए केंद्र ने महाराष्ट्र के खाद्य एवं दवा प्रशासन (एफडीए) कमिश्नर हर्षदीप कांबली की अध्यक्षता में उपसमिति गठित की है। ज्ञात हो कि एफडीए ने पिछले दिनों दवा बेचान पर कुछ नामी ऑनलाइन कंपनियों पर छापे मारे थे।

अभी दो तरह से चल रही है ई-फार्मेसी
देश में वर्तमान में दो तरह से ई-फार्मेसी का कारोबार चल रहा है। कुछ ऑनलाइन वेबसाइट्स पाटर्नर फार्मेसियों से दवा खरीद कर उपभोक्ता के घर तक दवाओं की डिलीवरी करती हैं। कुछ फार्मेसियां ऑनलाइन ऑर्डर पर अपने आउटलैट के जरिए दवा पहुंचाती है।


जिम्मेदारी के काम से खिलवाड़ ठीक नहीं
आर.बी. पुरी पूर्व अध्यक्ष, एआईओसीडी
दवा व्यवसाय अन्य व्यापार की तरह नहीं है जिसमें उपभोक्ता अपनी पसंद के अनुसार वस्तु खरीद कर उपयोग कर सकता है। दवा लिखने वाले डॉक्टर से लेकर केमिस्ट तक बहुत ही जिम्मेदारी से काम किया जाता है। कहीं चूक ना रह जाए, इसके लिए सतर्कता भी बरतनी होती है। यदि ऑन लाइन दवाओं की खरीद-फरोख्त को सरकार कानूनीजामा पहनाती है तो इस सतर्कता के साथ बहुत बड़ा खिलवाड़ होगा।

लाभ में नहीं है आम आदमी
दवाओं की खरीद-फरोख्त पर उनके लिए कमीशन का निर्धारण सरकार करती है। यदि थोक विक्रेता सरकार द्वारा नियंत्रित दवा बेचता है तो 8 फीसदी और अनियंत्रित दवा बेचता है तो 10 फीसदी कमीशन मिलता है। इसी तरह खुदरा विक्रेताओं के लिए नियंत्रित दवा पर 16 फीसदी कमीशन सरकार ने निर्धारित कर रखा है। अनियंत्रित दवा के लिए खुदरा विक्रेता के लिए कमीशन 20 फीसदी तक होता है। ऑनलाइन दवा के कारोबार में आने वाली दवा कंपनियां यही दावा करते हुए दवाएं बेचने की कोशिश में हैं कि वे आम आदमी को इस कमीशन के चक्कर से मुक्त कर सस्ती दवाएं उपलब्ध करा देंगी। इसके साथ ही लोगों को कम कीमत की दवा उनमे घर तक उपलब्ध होंगी।

सरसरी तौर से देखने में यह बात निस्संदेह बहुत ही आकर्षक लगती है लेकिन यहां जो जोखिम हैं वे सस्ती दवा से कहीं बड़े हैं। मोटे अनुमान के मुताबिक देश में 7.70 लाख दवा विक्रेताओं की दुकानें हैं और इन दुकानों के माध्यम से करीब 50 लाख लोगों की रोजी-रोटी चलती है। जब कमीशन काट कर सस्ती दवाएं उपलब्ध होंगी तो इन सभी के रोजगार पर सीधा असर पड़ेगा। सवाल सबसे बड़ा यह है कि क्या इनके रोजगार का सरकार की ओर से इंतजाम किया जाएगा? दूर-दराज के बहुत से इलाकों में ऎसे दवा विक्रेता हैं जिन्हें ग्राहक निजी तौर पर जानता है। आपात परिस्थिति में इनसे देर रात दुकान खुलवाकर दवाएं लेना आसान होता है। इसके अलावा यदि पांच दिन की दवा खरीदने के बाद डॉक्टर दो दिन बाद दवा बदल भी दे तो, खुदरा विक्रेता के लिए दूसरी दवा देना आसान होगा। आम व्यक्ति को ऑनलाइन दवा खरीदने से फायदे कम और नुकसान ज्यादा होने वाले हैं।

प्रेस्क्रिप्शन की सत्यता की जांच
ऑनलाइन दवा खरीद के लिए डॉक्टर के प्रेस्क्रिप्शन के आधार पर दवाएं खरीदी जा सकेंगी या नहीं, यह स्पष्ट नहीं है। बिना प्रेस्क्रिप्शन के दवा खरीदना बेहद जोखिम भरा होगा। हां, व्यक्ति प्रेस्क्रिप्शन को स्कैन करके दवा कंपनी को भेजा जा सकता है और कंपनी में विशेषज्ञ फार्मासिस्ट उसे पढ़कर दवाएं भेज भी सकता है। लेकिन, दवा लिखने वाले की प्रामाणिकता को जांचने की जिम्मेदारी दवा कंपनियां ले पाएंगी, इसमें भारी संदेह है। वर्तमान में खुदरा दवा विक्रेता डॉक्टर की लिखी दवाइयों पर असमंजस की स्थिति में फोन पर डॉक्टर से संपर्क करके संतुष्टि भी कर लेता है। क्या इतनी विश्वसनीयता के साथ ऑनलाइन दवा बिक्री कंपनियां सेवाएं दे पाएंगी? यह बात समझ से परे है।

किसको और कैसे बेच रहे हैं, इस पर रहे नजर
अभिषेक धाबाई आईटी एक्सपर्ट
सूचना क्रांति ने हमारी खरीदारी के तरीके को बदल दिया है। देश में अब किराना भी ऑनलाइन मिल रहा है। ये उपभोक्ताओं के लिए फायदे की बात है। इससे उन्हें अपने पैसे की पूरी कीमत मिलती है। ऑनलाइन तुलना कर सकते हैं। कंपनियां भी उपभोक्ताओं को अपनी ओर आकर्षित करने के लिए नई-नई स्कीमें लाती हैं। ऑनलाइन खरीदारी में दवाएं भी शामिल हो गई हैं। पश्चिमी देशों में ई-फार्मेसी का चलन लगभग एक दशक से हैं।

वहां डॉक्टरों का रजिस्ट्रेशन, मरीज का आईडी और यहां तक की डॉक्टर का मरीज को दिया गया पर्चा (पे्रस्क्रिप्शन) तक ऑनलाइन होता है। यानी ई-फार्मेसी के लिए सभी आवश्यक परिस्थितियां और नियम-कायदे मौजूद हैं। मरीज अपनी सुविधा के अनुसार किसी भी ऑनलाइन वेबसाइट से दवा खरीदने को स्वतंत्र होता है। यूरोप के कई देशों में भी यही स्थिति है। अब भारत में भी कई कंपनियां ऑनलाइन फार्मेसी के क्षेत्र में उतरने के लिए ब्लूपिं्रट तैयार कर रही हैं। एक अनुमान के मुताबिक आने वाले दो वर्ष के दौरान देश में 100 से ज्यादा अन्य कंपनियां भी ऑनलाइन फार्मेसी यानी ई-फार्मेसी के क्षेत्र में आ जाएंगी।

ऑनलाइन फार्मेसी के बढ़ते चलन से उपभोक्ताओं को फायदा होगा, लेकिन इसके लिए एक प्रभावी तंत्र की भी आवश्यकता है। ऑनलाइन दवा “किसको और कैसे बेच रहे हैं” इस पर नजर होनी चाहिए। सरकार को प्रणाली विकसित करनी होगी। ऑनलाइन दवा बेचान में किसी भी अन्य उत्पाद से ज्यादा सतर्कता की जरूरत है। मौजूदा कानून में बदलाव कर खरीद-बेचान तंत्र बने।

ऑनलाइन फार्मेसी की हो जांच
देश में ऑनलाइन फार्मेसी को अधिक कारगर और उपभोक्ता हितों के अनुकूल बनाने के लिए सरकार को ऑनलाइन फार्मेसी लाइसेंस जारी करने के लिए विस्तृत जांच करनी होगी। देखने में आया है कि कुछ ऑनलाइन फार्मेसी अपना फर्जी आईपी एड्रेस देती हैं। जिसके चलते गलत अथवा अवधिपार दवा उपभोक्ता को मिलने की स्थिति में ऑनलाइन फार्मेसी का पता ही नहीं चल पाता है। संबंधित ऑनलाइन फार्मेसी को लाइसेंस देने से पहले उसका ट्रेक रिकॉर्ड, बैंक स्टेटमेंट और अन्य जानकारियां भी सरकार के पास होनी चाहिए।

बस दृढ़ इच्छाशक्ति चाहिए
अक्सर कहा जाता है कि हमारे देश में ऑनलाइन फार्मेसी के लिए आधारभूत तकनीकी ढांचा उपलब्ध नहीं है। लेकिन मेरा मानना है कि सरकारें यदि दृढ़ इच्छा शक्ति दिखाएं तो ये काम इतना मुश्किल नहीं है। वर्तमान में देश में ऑनलाइन फार्मेसी के जरिए लाइफस्टाइल से जुड़ी दवाएं मंगवाने की परिपाटी ज्यादा है। इसे देखते हुए डॉक्टरों और मरीजों के पर्चे को ऑनलाइन डेटा बैंक में दर्ज किया जा सकता है। इससे नशीली दवाओं के ऑनलाइन बेचान की आशंका पर काफी हद तक नियंत्रण रखा जा सकता है।

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