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द वाशिंगटन पोस्ट से… सांस्कृतिक नासमझी बहुत भारी पड़ी अमरीका पर

locationनई दिल्लीPublished: Sep 02, 2021 11:42:36 am

Submitted by:

Patrika Desk

कई अमरीकी पूछ रहे हैं कि अफगानिस्तान इतनी जल्दी कैसे ढह गया ?

द वाशिंगटन पोस्ट से... सांस्कृतिक नासमझी बहुत भारी पड़ी अमरीका पर

द वाशिंगटन पोस्ट से… सांस्कृतिक नासमझी बहुत भारी पड़ी अमरीका पर

बक्ताश अहदी

(लेखक 2010 से 2012 तक यूएस व अफगान स्पेशल ऑपरेशंस बलों के ‘कॉम्बैट इन्टप्र्रटर’ रहे हैं)

अनेक अफगान अमरीकियों की तरह मैंने भी अपने परिवार, मित्रों और सहयोगियों को अफगानिस्तान से सुरक्षित निकालने की कोशिश की है। इसमें मुझे सीमित सफलता ही मिली। कई अमरीकी पूछ रहे हैं कि अफगानिस्तान इतनी जल्दी कैसे ढह गया? मैंने एक अशांत राष्ट्र में अमरीकी और अफगान स्पेशल ऑपरेशंस बलों के साथ दुभाषिए के रूप में काम किया है। इसलिए इस सवाल के जवाब का एक भाग बता सकता हूं, वह है संस्कृति, जो बातचीत से गायब है। तालिबान की तुलना अमरीका और उसके पश्चिमी सहयोगियों से करते समय ज्यादातर अफगानों ने हमेशा ही तालिबान को दो बुराइयों में से कमतर देखा है। कई अमरीकियों को यह दावा बेतुका लग सकता है।

गठबंधन ने अफगानिस्तान में अरबों डॉलर झोंके हैं। राजमार्ग बनाए, महिलाओं को मुक्ति दिलाई। साथ ही लाखों लोगों को पहली बार वोट देने का अधिकार दिया। ये सभी बातें सच हैं। अमरीकी लोगों के दिल और दिमाग जीतने की कोशिश में सीधे ही सड़कें, स्कूल और गवर्निंग संस्थान बनाए गए। उन्होंने यह भी आकलन नहीं किया कि कौन से विचार और मूल्य उन्हें भाते हैं। इस तरह हमने अफगानों को अलग-थलग कर दिया।

पश्चिमी देशों के सभी प्रतिनिधियों को चाहे वे सैन्य हों अथवा असैन्य, उन्हें ‘तारबंदी के भीतरÓ रहना जरूरी किया गया था। इसका अर्थ है कि वे हर समय काबुल के गढ़वाले ग्रीन जोन और देश भर में अच्छी तरह से संरक्षित सैन्य ठिकानों तक ही सीमित थे। काबुल में अपने परिवार से हर बार मिलने जाना उल्लंघन था। इसके लिए मुझे अनुशासनबद्ध किया जा सकता था, लेकिन मैंने भी नियम तोड़े। अगर मेरे साथियों को वहां के अनुभवों का आनंद लेने की अनुमति दी गई होती, तो वह एक बेहतर अनुभव होता। यह बात ध्यान देने योग्य है कि ज्यादातर अफगानियों का पश्चिम से सम्पर्क भारी-भरकम हथियारों और बख्तरबंद लड़ाकू सैनिकों के जरिए हुआ। ऐसे में अमरीकियों ने अफगान ग्रामीण इलाकों को केवल युद्ध का रंगमंच ही समझा, न कि एक ऐसी जगह के रूप में जहां लोग रहते थे। अमरीकी सेना ने मिट्टी के घरों को और अफगानियों की आजीविका को नष्ट कर दिया। हर कोई तालिबान को हंसते हुए सुन सकता था, क्योंकि गोलियों की बौछार में पश्चिम के लिए सहानुभूति लुप्त हो गई थी। हां, कभी-कभी हमने अच्छी चीजें भी की। क्लीनिक, स्कूल और कुएं बनवाए। तालिबान इन सुविधाओं को नष्ट ही नहीं करेगा, बल्कि स्थानीय समुदाय को ज्यादा शक की निगाह से देखेगा कि उसने अमरीका से ‘उपहार’ हासिल किए हैं।

अग्रिम पंक्ति के बलों को सांस्कृतिक समझ के लिए कोई प्रशिक्षण नहीं दिया गया। उदाहरण के लिए, मेरे साथी नौसैनिक मुझे अफगान सहयोगियों के साथ कुरान की पसंदीदा आयतों का आदान-प्रदान करते देख हैरान रह जाते थे। ग्रामीणों से बात करते समय नौसैनिक अपने धूप के चश्मे नहीं हटाते थे। यह एक ऐसे देश में अविश्वास का स्पष्ट संकेत था, जो आंखों के संपर्क को महत्त्व देता है। कुछ मामलों में तो वे ग्रामीण महिलाओं को सीधे संबोधित करते थे, यह उनके सबसे सख्त सांस्कृतिक मानदंडों का उल्लंघन था। स्थानीय समर्थन हासिल करने के मामले में यह गलती बहुत महंगी पड़ी। हम यह समझने में विफल रहे कि अफगानों के लिए इसका मतलब क्या है। यह सिर्फ अफगानिस्तान की बात नहीं है। सांस्कृतिक नासमझी की जब बात आती है, अमरीका यह अपराध बार-बार करता रहा है। इराकी संस्कृति को समझने में विफल रहे और इसके पहले वियतनाम की संस्कृति को समझने में विफल रहे।

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