वायु प्रदूषण से हर साल दुनिया भर में 55 लाख लोगों का मारा जाना सभी देशों की सरकारों के साथ-साथ आम आदमी के लिए भी चिंता का कारण बनना चाहिए। सिर्फ इसलिए नहीं कि वायु प्रदूषण को रोकने के तमाम उपायों के बावजूद मौतों का आंकड़ा बढ़ क्यों रहा है बल्कि इसलिए भी कि मरने वालों की तादाद से कई गुना लोग घातक बीमारियों का शिकार होकर रोज तिल-तिल कर मर रहे हैं। पचपन लाख ऐसे लोगों में से 14 लाख का भारतीय होना हमारे लिए चिंता का कारण होना चाहिए तथा ऐसे गम्भीर प्रयास किए जाने चाहिए ताकि हर आदमी को ताजा हवा उपलब्ध हो।
केन्द्र सरकार के साथ-साथ राज्य सरकारें और पर्यावरण सुधार से जुड़ी संस्थाएं इस दिशा में प्रयासरत तो हैंं लेकिन वायु प्रदूषण रोकने के लिए सैकड़ों करोड़ रुपए खर्च होने के बावजूद समस्या बढ़ती जा रही है। यह सवाल लाजिमी है कि आखिर इस समस्या का समाधान क्या है? क्या सिर्फ सरकारी प्रयासों के भरोसे वायु प्रदूषण को रोका जा सकता है? या फिर आम आदमी को आगे आना होगा, अपनाभविष्य संवारने के लिए? दिल्ली बेहतर उदाहरण है।
आप सरकार ने प्रदूषित होती राजधानी को बचाने के लिए एक दिन छोड़कर एक दिन गाड़ी चलाने का जो फार्मूला चलाया वह दूसरे शहरों में भी लागू होना चाहिए। बिना किसी राजनीतिक लाग लपेट के ये व्यवस्था समूचे देश में लागू होनी चाहिए। वैज्ञानिकों का सर्वे भविष्य में वायु गुणवत्ता के और खराब होने की आशंका जता रहा है। अब भी नहीं संभले तो हम स्वयं आत्महत्या की तरफ ही कदम बढ़ाएंगे। समस्या जितनी विकट हो, समाधान उससे भी विकट नजर आता है। भारत जैसे देश को दुनिया के उन देशों से नसीहत लेने के लिए भी तैयार रहना होगा जहां वायु प्रदूषण की समस्या नहीं के बराबर है।
इस मामले में अब तक उठाए गए कदमों की समीक्षा के साथ-साथ चुनौती से निपटने के नए तरीकों पर भी विचार होना चाहिए। भविष्य को खुशहाल बनाने के लिए जरूरत पड़े तो सख्त कदम उठाने के लिए भी तैयार रहना होगा। वायु प्रदूषण घटाना है तो उच्च पदों पर बैठे लोगों को खुद भी जागना होगा और दूसरों को भी जगाना होगा।
सड़कों पर गाडि़यां कम चलें, इसकी चिंता जताने से कुछ नहींं होगा। मंत्री, सांसद और अधिकारियों को भी सार्वजनिक वाहनों में चलकर आम आदमी में विश्वास पैदा करना होगा। विश्वास इस बात का कि नियम सिर्फ आम जनता के लिए ही नहीं होते हैं। इसके अलावा हरियाली को बढ़ाना होगा। धन के लालच में बिल्डर खेतों को खा रहे हैं। विकास की अंधी दौड़ पहाड़ों को नंगा कर रही है। सरकारें सिर्फ एक व्यक्ति एक पेड़ का फार्मूला सख्ती से लागू कर दें और वनों के विस्तार पर ध्यान दें तो ही समस्या का काफी हद तक निदान हो जाएगा।