क्या है 'फिजिशियन्स प्लेज'
यह डब्ल्यूएमए के जेनेवा घोषणा पत्र में 1948 में प्रस्तुत किया गया। समय के साथ इसमें कई संशोधन हुए। अंतिम संशोधन अक्टूबर 2017 में शिकागो में हुई 68वीं डब्ल्यूूएमए महासभा में हुआ। 23 मई को जारी किए गए एनएमसी के नियम प्रपत्र में इस फिजिशियन्स प्लेज को डब्ल्यूूएमए के 2017 घोषणा पत्र से लिया गया बताया है। आचार संहिता के बारे में प्रारूप में कहा गया है कि यह आचार संहिता पंजीकृत चिकित्सकों के लिए मरीज, समाज, पेशेवर सहयोगियों और स्वयं के प्रति प्रतिबद्धताओं के समुच्चय के रूप में काम करेगी। यह भी कहा गया, 'एनएमसी आचार संहिता को स्व-नियमन संबंधी दिशानिर्देशों के समुच्चय के तौर पर तैयार किया गया है जो व्यावसायिक एवं सामाजिक अपेक्षाओं को प्रतिबिंबित करने का काम करता है।'
यह डब्ल्यूएमए के जेनेवा घोषणा पत्र में 1948 में प्रस्तुत किया गया। समय के साथ इसमें कई संशोधन हुए। अंतिम संशोधन अक्टूबर 2017 में शिकागो में हुई 68वीं डब्ल्यूूएमए महासभा में हुआ। 23 मई को जारी किए गए एनएमसी के नियम प्रपत्र में इस फिजिशियन्स प्लेज को डब्ल्यूूएमए के 2017 घोषणा पत्र से लिया गया बताया है। आचार संहिता के बारे में प्रारूप में कहा गया है कि यह आचार संहिता पंजीकृत चिकित्सकों के लिए मरीज, समाज, पेशेवर सहयोगियों और स्वयं के प्रति प्रतिबद्धताओं के समुच्चय के रूप में काम करेगी। यह भी कहा गया, 'एनएमसी आचार संहिता को स्व-नियमन संबंधी दिशानिर्देशों के समुच्चय के तौर पर तैयार किया गया है जो व्यावसायिक एवं सामाजिक अपेक्षाओं को प्रतिबिंबित करने का काम करता है।'
कैसे अलग हैं नई सिफारिशें
नए प्रारूप में मरीज की स्वायत्तता और गरिमा के सम्मान को शामिल करते हुए मरीज को उच्चतम मानदंडों वाली सेवा अदायगी सुनिश्चित करने के लिए स्वयं अपने स्वास्थ्य व कुशलता का खयाल रखने की प्रतिज्ञा शामिल की गई है। पुराने घोषणा-पत्र में जबकि कहा गया था - 'मैं मानव जीवन का अत्यंत सम्मान करूंगा/करूंगी, तब से जब से वह गर्भ में आए', पर नए घोषणा-पत्र में कहा गया है-'मानव जीवन के लिए सर्वोच्च सम्मान बनाए रखूंगा/रखूंगी।'
नए प्रारूप में मरीज की स्वायत्तता और गरिमा के सम्मान को शामिल करते हुए मरीज को उच्चतम मानदंडों वाली सेवा अदायगी सुनिश्चित करने के लिए स्वयं अपने स्वास्थ्य व कुशलता का खयाल रखने की प्रतिज्ञा शामिल की गई है। पुराने घोषणा-पत्र में जबकि कहा गया था - 'मैं मानव जीवन का अत्यंत सम्मान करूंगा/करूंगी, तब से जब से वह गर्भ में आए', पर नए घोषणा-पत्र में कहा गया है-'मानव जीवन के लिए सर्वोच्च सम्मान बनाए रखूंगा/रखूंगी।'
चरक शपथ पर हुआ था विवाद
2020 में भारतीय चिकित्सा परिषद का स्थान लेने वाली चिकित्सा शिक्षा व प्रैक्टिस नियामक संस्था एनएमसी ने मेडिकल कॉलेजों को सुझाव दिया कि चिकित्सकों को 'हिप्पोक्रेटिक ओथ' के स्थान पर 'चरक शपथ' दिलाई जाए। कुछ चिकित्सकों ने इस सुझाव का स्वागत किया पर भारतीय चिकित्सा संघ (आइएमए) ने इस पर स्वास्थ्य मंत्री मनसुख मंडाविया का ध्यानाकर्षित किया। आइएमए की आधिकारिक पत्रिका आइएमए न्यूज में प्रकाशित एक पत्र में राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ. सहजानंद प्रसाद सिंह ने कहा, स्वास्थ्य मंत्री ने आश्वासन दिया है कि चरक शपथ वैकल्पिक होगी और इसे 'हिप्पोक्रेटिक ओथ' की जगह लाने का दबाव नहीं बनाया जाएगा। राज्य सभा में स्वास्थ्य राज्यमंत्री ने भी कहा कि ऐसे बदलाव का कोई प्रस्ताव नहीं है।
2020 में भारतीय चिकित्सा परिषद का स्थान लेने वाली चिकित्सा शिक्षा व प्रैक्टिस नियामक संस्था एनएमसी ने मेडिकल कॉलेजों को सुझाव दिया कि चिकित्सकों को 'हिप्पोक्रेटिक ओथ' के स्थान पर 'चरक शपथ' दिलाई जाए। कुछ चिकित्सकों ने इस सुझाव का स्वागत किया पर भारतीय चिकित्सा संघ (आइएमए) ने इस पर स्वास्थ्य मंत्री मनसुख मंडाविया का ध्यानाकर्षित किया। आइएमए की आधिकारिक पत्रिका आइएमए न्यूज में प्रकाशित एक पत्र में राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ. सहजानंद प्रसाद सिंह ने कहा, स्वास्थ्य मंत्री ने आश्वासन दिया है कि चरक शपथ वैकल्पिक होगी और इसे 'हिप्पोक्रेटिक ओथ' की जगह लाने का दबाव नहीं बनाया जाएगा। राज्य सभा में स्वास्थ्य राज्यमंत्री ने भी कहा कि ऐसे बदलाव का कोई प्रस्ताव नहीं है।
महर्षि चरक और चरक संहिता
महर्षि चरक प्राचीन चिकित्सा के महान सम्मानीय चिकित्सक थे, जिन्होंने चिकित्सा व्यवसाय के नियमों व आदर्श सिद्धांतों का पालन किया। उनका कार्य किसी एक चिकित्सक का नहीं लगता और न ही यह सब एक ही समय पर लिखा गया। चरक संहिता एक औषधि संस्कार ग्रंथ है। इस चिकित्सकीय ग्रंथ में पहली व दूसरी सदी के समय के चिकित्सा व्यवसाय पर टिप्पणियां और विचार-विमर्श समाहित हैं। शल्य चिकित्सा के लिए जिस प्रकार सुश्रुत संहिता का उल्लेख किया जाता है, प्राचीन भारतीय औषधि के लिए चरक संहिता का जिक्र होता है। इसमें ऐसी चिकित्सा पद्धतियों का उल्लेख है, जो कई मायनों में यूनानियों की चिकित्सा पद्धतियों से आगे है।
शरीर क्रिया विज्ञान में प्राचीन भारतीय अभिरुचि का संबंध योग और अध्यात्मवाद से समझा जाता है। यह विधा बौद्धवाद, ईसाई मिशनरियों के आने एवं यूनानी चिकित्सा पद्धतियों के प्रचार-प्रसार के बाद फली-फूली। चरक संहिता के आदर्श विचार सार्वभौमिक हैं और आज भी प्रासंगिक और प्रभावी हैं।
महर्षि चरक प्राचीन चिकित्सा के महान सम्मानीय चिकित्सक थे, जिन्होंने चिकित्सा व्यवसाय के नियमों व आदर्श सिद्धांतों का पालन किया। उनका कार्य किसी एक चिकित्सक का नहीं लगता और न ही यह सब एक ही समय पर लिखा गया। चरक संहिता एक औषधि संस्कार ग्रंथ है। इस चिकित्सकीय ग्रंथ में पहली व दूसरी सदी के समय के चिकित्सा व्यवसाय पर टिप्पणियां और विचार-विमर्श समाहित हैं। शल्य चिकित्सा के लिए जिस प्रकार सुश्रुत संहिता का उल्लेख किया जाता है, प्राचीन भारतीय औषधि के लिए चरक संहिता का जिक्र होता है। इसमें ऐसी चिकित्सा पद्धतियों का उल्लेख है, जो कई मायनों में यूनानियों की चिकित्सा पद्धतियों से आगे है।
शरीर क्रिया विज्ञान में प्राचीन भारतीय अभिरुचि का संबंध योग और अध्यात्मवाद से समझा जाता है। यह विधा बौद्धवाद, ईसाई मिशनरियों के आने एवं यूनानी चिकित्सा पद्धतियों के प्रचार-प्रसार के बाद फली-फूली। चरक संहिता के आदर्श विचार सार्वभौमिक हैं और आज भी प्रासंगिक और प्रभावी हैं।
'हिप्पोक्रेटिक ओथ' का इतिहास
हिप्पोक्रेटिक ओथ का संबंध यूनानी चिकित्सक हिप्पोक्रेट्स से है। यह चिकित्सकों द्वारा अपने व्यवसाय के दौरान अपनाए जाने वाले सिद्धांतों का प्रपत्र है। इसका प्राचीनतम संस्करण तीसरी सदी का माना जाता है और सहस्त्राब्दि पुराना संस्करण 'होली सी' के पुस्तकालय में संग्रहित बताया जाता है। हिप्पोक्रेट्स चिकित्सा पर 70 किताबों का संकलन है, जिसे कॉरपस हिप्पोक्रेटिकम कहा जाता है। हिप्पोक्रेटिक ओथ भी किसी एक व्यक्ति का कार्य नहीं माना जाता है।
हिप्पोक्रेटिक ओथ का संबंध यूनानी चिकित्सक हिप्पोक्रेट्स से है। यह चिकित्सकों द्वारा अपने व्यवसाय के दौरान अपनाए जाने वाले सिद्धांतों का प्रपत्र है। इसका प्राचीनतम संस्करण तीसरी सदी का माना जाता है और सहस्त्राब्दि पुराना संस्करण 'होली सी' के पुस्तकालय में संग्रहित बताया जाता है। हिप्पोक्रेट्स चिकित्सा पर 70 किताबों का संकलन है, जिसे कॉरपस हिप्पोक्रेटिकम कहा जाता है। हिप्पोक्रेटिक ओथ भी किसी एक व्यक्ति का कार्य नहीं माना जाता है।