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शुरू हों समस्त गतिविधियां, सावधानी जरूर रखें

locationनई दिल्लीPublished: Jul 19, 2020 09:31:47 pm

Submitted by:

shailendra tiwari

‘मैं मरूं या देश’ पर प्रतिक्रियाएं

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कोरोनाकाल में खुद के स्तर पर अपने मन मुताबिक इकट्ठा होने और सभाएं करने, पर देशहित के मुद्दों पर जवाबदेही से बचने के लिए संसद व विधानसभा के सत्र बंद करने की प्रवृत्ति पर सवाल उठाते पत्रिका के प्रधान सम्पादक गुलाब कोठारी के अग्रलेख ‘मैं मरूं या देश’ को प्रबुद्ध पाठकों ने सराहा है। उन्होंने कहा है कि सरकार को सावधानी के तमाम उपाय करते हुए सत्र समेत समस्त गतिविधियां सुचारू रूप से संचालित करने चाहिए। पाठकों की प्रतिक्रियाएं विस्तार से
यथार्थ का चित्रण
अग्रलेख में कोठारी ने यथार्थ चित्रण किया है। यह बात सही है कि कोरोना संक्रमण के चलते यदि संसद और सत्र नहीं हुए तो देश की जनता को इसका खमियाजा भुगतना पड़ेगा। कई ऐसे मुद्दे हैं जिनका संसद और विधानसभा के पटल पर रखा जाना और उन पर बहस होना अति आवश्यक है। जनप्रतिनिधियों द्वारा एप्लीकेशन के माध्यम से ऑनलाइन बैठकें तो की जा रही हैं, लेकिन यह पर्याप्त नहीं है।
राजेंद्र अग्रवाल, अधिवक्ता, जबलपुर
प्रमुख मुद्देे छोडऩा अनुचित
निश्चित रूप से कोरोना का डर बना हुआ है, लेकिन देश की संसद और विधानसभा में प्रमुख मुद्दों पर चर्चा को छोड़ा नहीं जा सकता। कई समस्याएं हैं जिनका निराकरण संसद और विधानसभा कर सकती है। सरकारों को चाहिए कि सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए इनका आयोजन करें ताकि देश के सामने जो मौजूदा परिस्थितियां हैं, उनसे निपटने की योजना बनाई जा सके।
रामप्रवेश सिंह, राष्ट्रीय सचिव, भारतीय प्रतिरक्षा मजदूर संघ, जबलपुर
लोकतंत्र लॉकडाउन न हो
कोठारी ने बहुत सामयिक विषय पर सटीक टिप्पणी की है। लोकतंत्र को लॉकडाउन नहीं किया जा सकता और ना ही सामाजिक व्यवस्था को समाप्त किया जा सकता है। लेकिन कोविड-19 की परिस्थितियों में किस तरह से हम संसदीय व्यवस्था का उपयोग इस महामारी को समाप्त करने लिए कर सकते हैं, इस पर चिंतन करने की आवश्यकता है।
शशांक श्रीवास्तव, निवर्तमान महापौर, कटनी
देश लंबे समय तक वर्चुअल न रहे
रोजगार, उद्योग लगभग ठप हो गए हैं। मांग व आपूर्ति में अंतर आ गया है तब ऐसे में लोकतंत्र को मजबूत बनाए रखने के लिए लोकतंत्र के एक महत्वपूर्ण स्तंभ विधायिका को अपने दायित्व का निर्वहन करना बहुत जरुरी हो जाता है, क्योंकि वर्क फ्रॉम होम या वर्चुअल मीटिंग से तो देश को लंबे समय तक नहीं चलाया जा सकता।
राजेन्द्र कौर लाम्बा, रिटायर्ड प्रिंसिपल, कटनी
दुनिया में है, भारत में क्यों नहीं?
स्थिति आज बहुत गंभीर है। लोकतंत्र में अगर चुनी हुई संस्थाओं को स्थगित कर एक विचार, एक समूह या व्यक्ति फैसले लेगा तो यह दुर्भाग्यपूर्ण ही कहा जाएगा। अन्य देशों में संसद सहित अन्य संस्थाओं की बैठकें हो रही हैं, तो भारत में क्यों नहीं? आज जबकि भारत का लगभग अभी पड़ोसी देशों से संबंध पूर्वत: नही है, अर्थव्यवस्था खस्ता दौर में है, कोरोना की आड़ में देश के पब्लिक सेक्टर को निजीकरण जरिए कॉरपोरेट को सौंपा को सौपा जा रहा है और संसद बंद है। ऐसे में सवाल है ऐसा कहीं जानबूझ कर तो नही किया जा रहा है।
अखिलेश यादव, समाजसेवी, ग्वालियर
सवालों से बचने का बहाना
आज जब हमारी संसद और विधानसभा में देश के कई अहम मुद्दों पर चर्चा का सवाल है तो उन्हें बंद कर दिया गया है। क्या ऐसा नहीं लगता सरकार सवालों से बचने के लिए ऐसा कर रही है। वहीं सरकार के मंत्रियों को सुरक्षा की इतना ही चिंता होती तो प्रचार के लिए भीड़ में जनता के बीच न जाते। इससे सरकार का दोहरा चरित्र प्रदर्शित होता है।
एसके मिश्रा, समाजसेवी, ग्वालियर
देश की किसी को चिंता नहीं
वर्तमान में कोरोना वायरस के चलते देश में अधिकतर कार्य नहीं हो पा रहे हैं। कई योजनाएं सरकार की सहमति के लिए अटकी हैं। कोरोना वायरस के नाम पर संसद व विधानसभा नहीं चल रही हैं। बजट भी अटके हैं। ऐसे में प्रदेश की अर्थव्यवस्था कैसे चल पाएगी। इस मामले में जनप्रतिनिधि भी उदासीन हैं। उन्हें न तो देश की चिंता है, न जनता की।
अरविंद सोनी, अध्यक्ष जिला इंटक कौंसिल, रतलाम
सरकार दे देश को दिशा
कोरोना का कोई पता नहीं कब तक हावी रहेगा, लेकिन सार्वजनिक व्यवस्था को तो पंगु बनाकर नहीं रख सकते। सरकार को देश को दिशा देने की पहल करनी चाहिए। कोरोना से बचाव के ठोस उपाय करने चाहिए। भले ही कम क्षमता से हों। संसद और विधानसभाओं को बैठकर इसका कोई सर्वमान्य हल निकालना चाहिए।
अशोक सिंह सिकरवार, पूर्व सदस्य, जिला पंचायत, मुरैना
भीड़ बन रहे तो विधानसभा में जानेे से क्यों परहेज?
देशहित सर्वोपरि है, उसके लिए कठोर निर्णय लेना पड़ें तो लीजिए। लेकिन यह भी देख लीजिए कि जो जनप्रतिनिधि अपने जन्मदिन पर सोशल मीडिया पर भीड़ के साथ फोटो शेयर करते हैं, वो जनता के बीच कोरोना का रोना क्यों रो रहे हैं? संसद और विधानसभा में जाने से क्यों परहेज कर रहे हैं?
अनिल वैद्य, प्रदेश संयोजक, मप्र कृषि उपज मंडी मजदूर महासंघ, भोपाल
जरूरी कार्यों के लिए राह बनाने की जरूरत
उद्योग धंधे बंद हैं, स्कूल-कॉलेज भी बंद हैं, लेकिन संसद और विधानसभा के बंद रहने से बड़े मुद्दों पर चर्चा और निर्णय नहीं हो पा रहे हैं। कोरोना के भय से बडे अधिकारी, जनप्रतिनिधि घरों तक सीमित हो गए हैं। ऑनलाइन बैठकों तक सीमित रहकर कोई समाधान नहीं निकलने वाला। महामारी से लडऩे के साथ ही अन्य जरूरी कार्यों के लिए भी राह बनाने की जरूरत है।
महेन्द्र नायक, प्रोफेसर, छतरपुर

सरकार की चुप्पी पर अच्छा कुठाराघात
कोठारी ने देश के हालात पर सरकार की कोरोना नाम की चुप्पी पर जमकर कुठाराघात किया है। आज सचमुच देश के हालात खराब हैं। समाज एवं देशहित के मुद्दों को लेकर कोरोना का भय दिखाया जा रहा है, जबकि सरकारों को गिराने, मंत्री परिषद की शपथ लेने से गुरेज नहीं किया जा रहा है। कोरोना के साथ ही चीन, पाकिस्तान के मुद्दों पर जनता सरकार का रुख जानना चाहती है। कोरोना के कारण ठप्प पड़े रोजगार, धंधे, बढ़ती बेरोजगारी का लोग समाधान चाहते हैं।
वरुण मिश्रा, उद्योगपति, सागर

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