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सीधी बात: फिर जांच का खेल

locationजयपुरPublished: Oct 23, 2018 05:06:58 pm

Submitted by:

Rajiv Ranjan

सरकारों की संवेदनाएं मर चुकी हैं, वे मुआवजा देकर खुद को बरी कर लेना चाहती हैं। जांचों की खानापूरी के बाद न किसी की जिम्मेदारी तय होती है, न ही किसी को सजा मिलती है। जांच के नाम पर करोड़ों के वारे न्यारे जरूर हो जातेे हैं। आखिर ऐसा कब तक चलेगा?

INVESTIGATION

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राजीव तिवारी

अमृतसर में रेल हादसे को 72 घंटे से ज्यादा हो गए। दुखान्तिका में मारे गए 61 लोगों की चिता की अग्नि भी शांत नहीं हुई है और हादसे पर राजनीतिक लीपापोती की शुरुआत हो गई है। रेल महकमे ने हादसे के शिकार लोगों को घुसपैठिया (ट्रेसपासर) करार देते हुए साफ कर दिया है कि दुर्घटना के लिए रेलवे कतई जिम्मेदार नहीं है। जिला प्रशासन, पुलिस और आयोजकों की ओर से रेल विभाग को ट्रेक के निकट किसी प्रकार के धार्मिक कार्यक्रम की सूचना नहीं दी गई थी। पुलिस और गृह विभाग भी कह चुका है कि आयोजन की अनुमति नहीं ली गई थी इसलिए उन्हें भी जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता। तो फिर विजयादशमी के दिन रावण दहन देखने आए मासूमों की मौत का जिम्मेदार कौन है?

मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह ने तीसरे दिन जालंधर के डिविजनल कमिश्नर बल्देव पुरुषार्थ को मजिस्ट्रेेटी जांच करने के आदेश दिए हैं। उन्हें चार सप्ताह में रिपोर्ट देने को कहा गया है। हर बड़े हादसे के बाद जांच की रस्म अदायगी की तरह इस बार भी जांच होगी। रिपोर्ट कब आएगी, कौन दोषी होगा, कोई नहीं जानता। पहले भी कुंभ के दौरान और सबरीमाला में भगदड़, नैना देवी में करंट की अफवाह से मचीअफरा—तफरी में सैकड़ों लोग मारे गए। जोधपुर में देवी मंदिर में भगदड़ की जांच के बाद आज तक न तो रिपोर्ट आई और न कोई कार्रवाई। मजिस्ट्रेेट जांच, विभागीय जांच, न्यायिक आयोग, तमाम जांचों के नतीजे सरकार की फाइलों में दफन हो जाते हैं। सरकारों की संवेदनाएं मर चुकी हैं, वे मुआवजा देकर खुद को बरी कर लेना चाहती हैं। जांचों की खानापूरी के बाद न किसी की जिम्मेदारी तय होती है, न ही किसी को सजा मिलती है। जांच के नाम पर करोड़ों के वारे न्यारे जरूर हो जातेे हैं। सेवानिवृत्त लोगों को दो—चार, दस साल सरकारी सुविधाएं, वेतन और भत्ते जरूर जांच के नाम पर मिल जाते हैं। आखिर ऐसा कब तक चलेगा?

देश की विडम्बना देखिए इतने बड़े हादसे के बाद एक सिपाही तक पर र्कारवाई नहीं हुई है जबकि असम के गुवाहाटी में देवी के दर्शन करने गए एक जज की सुरक्षा में चूक होने पर आला पुलिस अधिकारी को तत्काल निलंबित कर दिया गया। यह भेदभाव क्यों? क्या अमृतसर में जान गंवाने वाले इंसान नहीं थे? देश के नागरिक नहीं थे? उनकी सुरक्षा की जिम्मेदारी सरकार की नहीं थी? जब सात साल से उसी स्थान पर रावण दहन कार्यक्रम हो रहा था, मंत्री की पत्नी मुख्य अतिथि थीं तो फिर जिला प्रशासन आंख मूंदे क्यों बैठा था? रेलवे को हर वर्ष होने वाले आयोजन की जानकारी क्यों नहीं थी? न तो जिला प्रशासन और न ही रेलवे जिम्मेदारी से बच सकते हैं।

कोई फैसला नहीं होने से जनता का गुस्सा उफान पर है। इस रूट पर रेल यातायात अब तक शुरू नहीं हो पाया है। रेलवे ने कानून व्यवस्था के नाम पर हाथ खड़े कर दिए हैं। हैरानी तो इस बात पर है कि किसी न्यायालय ने भी इतनी बड़ी घटना पर प्रसंज्ञान नहीं लिया। आखिर सब ओर से हारी जनता की आखिरी उम्मीद न्याय के दर से ही होती है। देश के प्रधान न्यायाधीश से आशा है कि वे कदम उठाएंगे। राजनीति और प्रशासन के इस गठजोड़ को सबक सिखाएंगे। हादसे में कितने परिवारों की खुशियां तबाह हो गईं। उन्हें न्याय मिले, जिम्मेदारों को कड़ी से कड़ी सजा मिले। भविष्य में ऐसी घटनाएं न हों इसके नियम बनें। जांच के नाम पर देश की छीछालेदार और बर्दाश्त नहीं होगी।

rajiv.tiwari@epatrika.com

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