गंभीर स्वास्थ्य समस्या बन रही एंटीबायोटिक दवा प्रतिरोधकता
Published: Nov 23, 2022 08:18:06 pm
एंटीबायोटिक यानी प्रतिजैविक दवा प्रतिरोधकता वर्तमान में एक गंभीर जन स्वास्थ्य समस्या के रूप में उभर कर सामने आ रही है, जिसके चलते संक्रामक रोगों के बढऩे, उनकी गंभीरता व मौतों का खतरा बढ़ा है। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने इसे विश्व के शीर्ष दस जन स्वास्थ्य खतरों में शामिल किया है, जिनका सामना मानवता हाल में कर रही है।
गंभीर स्वास्थ्य समस्या बन रही एंटीबायोटिक दवा प्रतिरोधकता
डॉ. पंकज जैन
एसोसिएट प्रोफेसर, मेडिसिन विभाग मेडिकल कॉलेज, कोटा आम तौर पर ऐसा देखने में आता है कि नई-नई दवा बाजार में आती है, कुछ समय तक उनका असर बहुत अच्छे से देखने में आता है, किन्तु समय के साथ बीमारी विशेष में वह दवा या तो काम करना बंद कर देती है या उसका असर कम हो जाता है । विशेषकर यह स्थिति संक्रामक रोगों में प्रयुक्त दवाइयों में देखने को मिलती है। एंटीबायोटिक यानी प्रतिजैविक दवा प्रतिरोधकता वर्तमान में एक गंभीर जन स्वास्थ्य समस्या के रूप में उभर कर सामने आ रही है, जिसके चलते संक्रामक रोगों के बढऩे, उनकी गंभीरता व मौतों का खतरा बढ़ा है। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने इसे विश्व के शीर्ष दस जन स्वास्थ्य खतरों में शामिल किया है, जिनका सामना मानवता हाल में कर रही है।
प्रतिजैविक दवा प्रतिरोधकता जीवाणुओं में प्राकृतिक प्रक्रिया के तौर पर तो विकसित होती ही है, किन्तु मानव प्रजाति द्वारा इनके दुरुपयोग से यह ज्यादा तेजी से फैलती है। दवाइयों के अनुचित उपयोग के कारणों में अधूरा इलाज, जरूरत से ज्यादा लंबा उपचार, खुराक से हटकर अपनी मर्जी के अनुरूप उपचार शामिल है। प्राकृतिक कारणों में जीवाणुओं में होने वाले उत्परिवर्तन व जीन स्थानांतरण प्रमुख हंै।अस्वच्छता एवं निष्प्रभावी संक्रमण रोकथाम व नियंत्रण नीति भी प्रतिजैविक दवा प्रतिरोधकता में अहम भूमिका निभाते हैं। हमारे देश में अनधिकृत लोगों द्वारा गैरकानूनी चिकित्सकीय प्रैक्टिस भी एंटीबायोटिक के दुरुपयोग व प्रतिरोधकता को बढ़ावा देती है। अन्य कारणों में गुणवत्ता युक्त औषधियों का अभाव, टीकाकरण सुविधाओं का आमजन की पहुंच से बाहर होना, स्वास्थ्य के प्रति शिक्षा व जागरूकता की कमी, स्वास्थ्य क्षेत्र में लचीली कानून व्यवस्था शामिल है।
सबसे बड़ी चिंताजनक बात यह है कि इससे विश्व भर में तेजी से सुपरबग्स (अनेक व लगभग सब दवाओं के प्रति प्रतिरोधक जीवाणु) का प्रसार हो रहा है। ऐसे में चिकित्सक मामूली व सामान्य संक्रमण जैसे निमोनिया, टीबी, दूषित भोजन व दूषित जलजनित संक्रमण, मूत्रमार्ग के संक्रमण का भी मुश्किल से उपचार कर पा रहे हंै, जिसके चलते ऐसे संक्रमण के फैलने का खतरा बढ़ जाता है। फलस्वरूप संक्रामक रोगों से मृत्यु दर बढऩा भी स्वाभाविक है। बहुत सी शल्य प्रक्रियाएं जोखिम भरी हो गई हैं। इसी प्रतिरोधकता के चलते भर्ती मरीजों का अस्पताल में ठहराव बढ़ता है।
प्रतिजैविक दवाइयों के प्रति प्रतिरोधकता वाकई में चिंता का विषय है। इसे रोकने में सरकार, चिकित्साकर्मी और आम जनता सभी की सहभागिता आवश्यक है। जन साधारण को जागरूक करने की जरूरत है कि प्रतिजैविक दवाइयों का उपयोग अपनी मर्जी से न करके, विशेषज्ञ के परामर्श पर, पूरी अवधि व खुराक के अनुरूप ही किया जाए। दवा प्रतिरोधी संक्रमण के प्रसार को रोकने व जागरूकता लाने के लिए विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा प्रतिवर्ष नवम्बर माह में विश्व जीवाणुरोधी जागरूकता सप्ताह मनाया जाता हैं। 2022 में इस सप्ताह की थीम ‘प्रिवेंटिंग एंटीमाइक्रोबियल रेजिस्टेंस टुगेदर ‘ रखी गई है। प्रतिजैविक दवाइयां जीवाणुजनित बीमारियों में ही असरदार होती हंै। इसलिए वायरल संक्रमण में इनका प्रयोग न करें। इससे जुड़े कानूनों की कड़ाई से पालना सुनिश्चित की जाए। अनधिकृत व्यक्तियों की चिकित्सकीय प्रैक्टिस पर सख्ती से रोक लगे। बिना डॉक्टर के पर्चे के प्रतिजैविक दवाइयां बाजार में ‘ओवर द काउंटर ‘ उपलब्ध न हों। अंत में खास बात- ‘प्रिवेंशन इज बेटर देन क्योर ‘, संक्रामक रोग ही न हों। इसके लिए स्वच्छ व स्वस्थ जीवन शैली अपनाएं। रोगी से एक निश्चित दूरी बनाए रखें और टीकाकरण जरूर कराएं।