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पुरातन और विज्ञान: क्या हवा से भोजन बनाकर जिंदा रहा जा सकता है?

फिनलैंड के वैज्ञानिकों ने हवा में मौजूद कार्बन डाइऑक्साइड, पानी, सूक्ष्म-अणु (माइक्रोब्स) और सौर ऊर्जा को मिलाकर आहार बनाने का काम किया है। वैज्ञानिक इसे भविष्य का भोजन बता रहे हैं।

नई दिल्लीOct 05, 2020 / 02:41 pm

shailendra tiwari

The food of the patients did not improve even after the collector said in bhilwara

The food of the patients did not improve even after the collector said in bhilwara

भारत समेत दुनियाभर के वैज्ञानिक आजकल हवा और मीथेन से भोजन बनाने के प्रयास में जुटे हैं। कुछ वैज्ञानिकों को इस प्रयोग में सफलता भी मिली है। वाल्मीकि रामायण के अनुसार गौतम ऋषि, पत्नी अहिल्या के चरित्र पर शंका कर उसे हवा पीकर, अदृश्य रहने का श्राप देते हैं। केवल हवा पीकर जीवित रहने वाली इसी स्त्री को अन्य रामायणों में शिला की उपमा दी गई है। इस स्थिति में पुत्र शतानंद व चिरकारी तथा पुत्री अंजनी अहिल्या की सेवा में रहते हैं। अर्थात हमारे ऋषि हवा से भोजन बनाने की तरकीब न केवल जानते थे, बल्कि विपरीत परिस्थितियों में उसका सेवन भी किया जाता था।

भोजन बनाना और खाना ही न पड़े या कोई ऐसी गोली (दवा) उपलब्ध हो जिसे खाने के बाद भूख लगे ही नहीं, इस विचार का आधार पेड़-पौधों व वनस्पतियां भी हैं, जो प्रकृति में उपलब्ध तत्वों (जैसे प्रकाश संश्लेषण) से ही पोषण ग्रहण कर जीवित रहते हैं। तो मानव शरीर पंचतत्वों से सीधे आहार या ऊर्जा ग्रहण कर जीवित क्यों नहीं रह सकता? हमारे वेदों और योग-साधना में ‘प्राणवायु’ का जिक्र है। इसे ‘प्राणा’ भी कहा गया है। इस आधार पर वैज्ञानिकों का एक समूह मानता है कि सिर्फ हवा पीकर जिंदा रहा जा सकता है। सूर्य के प्रकाश में खड़े रहकर भी शरीर जीवनदायी तत्व ग्रहण कर लेता है। चुनांचे प्राणवायु और प्रकाश की किरणों से जीवनदायी तत्व ग्रहण करने के लिए शाकाहारी होना जरूरी है। फिर मवेशियों से प्राप्त दूध, दही, छाछ, मक्खन और घी का सेवन त्यागना होगा। फिर केवल तरल पेय पदार्थों को ग्रहण करने की आदत डालनी होगी। तत्पश्चात हवा-रोशनी पर जिंदा रहना संभव हो सकता है।

हवा पीकर जिंदा रहने के संदर्भ में फिनलैंड के वैज्ञानिकों ने हवा में मौजूद कार्बन डाइऑक्साइड, पानी, सूक्ष्म-अणु (माइक्रोब्स) और सौर ऊर्जा को मिलाकर आहार बनाने का काम किया है। वैज्ञानिक इसे भविष्य का भोजन बता रहे हैं। इसे फिनलैंड के ‘वीटीटी टेक्निकल रिसर्च सेंटर’ ने तैयार किया है। इसके लिए इन चीजों को कॉफी कप आकार के एक बायोरिएक्टर में मिक्स करते हैं। फिर उसमें विद्युत प्रवाहित करते हैं। इससे एक पाउडर बनता है, जिसमें 50 फीसदी प्रोटीन, 25 फीसदी कार्बोहाइड्रेट और बाकी में फैट, न्यूक्लिक एसिड होते हैं।
यह भोजन अभी इंसानों के लिए तो नहीं, पर जानवरों के लिए तैयार है। इंसान के लायक फूड बनाने के लिए अभी प्रयोग जारी हैं। वैज्ञानिकों ने इसे ‘फूड फ्रॉम इलेक्ट्रिसिटी प्रोग्राम’ नाम दिया है। वैज्ञानिक जूहा-पेका पिटकानेन कहते हैं कि सभी तरह के आहार योग्य कच्चा माल हवा में मौजूद है। भविष्य में इस प्रौद्योगिकी से रेगिस्तान, बाढ़, सूखा और अकाल पड़ने वाले इलाकों में लोगों को खाना मुहैया कराने में मदद मिलेगी। भारत में इसी तर्ज पर बेंगलूरु की एक कंपनी भी शोधरत है। साफ है, अहिल्या प्रसंग हवा से भोजन बनाने के विज्ञानसम्मत सूत्र का उदाहरण है।

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