रेपो रेट के अलावा भी हों महंगाई रोकने के प्रयास
भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआइ) की लगातार कोशिशों के बाद भी महंगाई बेलगाम बनी हुई है। अनाज, दल-दलहन, फल, सब्जियां, दूध आदि की बढ़ी कीमतों से आम लोग त्रस्त हैं। उनके लिए बैंकों से सस्ते कर्ज भी फिलहाल मृग मरीचिका हैं, क्योंकि नई मौद्रिक नीति में आरबीआइ ने लगातार 11वीं बार रेपो रेट को 6.5% पर […]
भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआइ) की लगातार कोशिशों के बाद भी महंगाई बेलगाम बनी हुई है। अनाज, दल-दलहन, फल, सब्जियां, दूध आदि की बढ़ी कीमतों से आम लोग त्रस्त हैं। उनके लिए बैंकों से सस्ते कर्ज भी फिलहाल मृग मरीचिका हैं, क्योंकि नई मौद्रिक नीति में आरबीआइ ने लगातार 11वीं बार रेपो रेट को 6.5% पर बरकरार रखा है। रेपो रेट नहीं घटने से मध्यम वर्ग फिर मायूस है, जो लंबे समय से मकान-वाहन के कर्ज की ईएमआइ में राहत का इंतजार कर रहा है। महंगाई ने आरबीआइ के कदम बांध रखे हैं। इसे काबू करने के लिए ही रेपो रेट बढ़ाई गई थी। जब तक इसमें कामयाबी नहीं मिलती, रेपो रेट नीचे आने के आसार नहीं हैं।
दरअसल, महंगाई और विकास दर इस समय आरबीआइ के लिए सबसे बड़ी चुनौतियां हैं। नई मौद्रिक नीति में चालू वित्त वर्ष के लिए जीडीपी ग्रोथ का अनुमान 7.2% से घटाकर 6.6% और मुद्रास्फीति का अनुमान 4.5% से बढ़ाकर 4.8% करने से स्पष्ट है कि दोनों मोर्चों पर वह फंूक-फूंककर कदम रखना चाहता है। रूस-यूक्रेन और इजराइल-फिलिस्तीन युद्ध के कारण अर्थव्यवस्था के मोर्चे पर दुनिया के कई विकसित देश तक बड़े झटके झेल चुके हैं। ऐसे में राहत की बात है कि भारत की अर्थव्यवस्था पर ज्यादा प्रतिकूल असर नहीं पड़ा है। इस समय भारत दुनिया की तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था है। शायद यह भी एक बड़ा कारण है कि आरबीआइ ब्याज दरों में बदलाव का कोई जोखिम नहीं उठाना चाहता है। आरबीआइ लंबे समय से महंगाई की दर 4% तक लाने के भगीरथ प्रयास में जुटा है।
चिंता की बात है कि इसके बावजूद यह दर लगातार उसके लक्ष्य से ऊपर बनी हुई है। पेट्रोल-डीजल की कीमतें एक हद तक स्थिर होने के बावजूद महंगाई बेलगाम क्यों है, इसकी पड़ताल की जरूरत है। पिछले साल मानसून कमजोर रहने को महंगाई का एक कारण बताया गया था। इस साल मानसून संतोषजनक रहा है। फिर भी कई उपभोक्ता चीजों के दाम पिछले साल के मुकाबले बढ़ गए। आमतौर पर अभाव के कारण इन चीजों के दाम बढ़ते हैं। बाजार में अभाव जैसे हालात नहीं हैं, लेकिन चीजें महंगी बिक रही हैं। पता लगाया जाना चाहिए कि बाजार में जमाखोरी और कालाबाजारी से ज्यादा मुनाफाखोरी का खेल तो नहीं चल रहा है? देश की विकास दर बढ़ाने के साथ-साथ महंगाई को काबू में रखने के उपाय खोजे जाने चाहिए। यह संभावना भी टटोली जाए कि जिस तरह सरकार कृषि उपज के न्यूनतम समर्थन मूल्य तय करती है, क्या उसी तरह जरूरी उपभोक्ता चीजों की कीमतें भी तय नहीं की जा सकतीं?
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