आपकी बात, क्या सहनशीलता की कमी से भी अपराध बढ़ रहे हैं?
पत्रिकायन में सवाल पूछा गया था। पाठकों की मिलीजुली प्रतिक्रिया आईं, पेश हैं चुनिंदा प्रतिक्रियाएं।

घातक है अधिक सहनशीलता
कई बार सहनशीलता से अपराधियों के हौसले बुलंद हो जाते हैं। सहनशीलता को वह व्यक्ति की कमजोरी समझ लेता है और अपना प्रभाव डालने के लिए ज्यादा अपराध करता है। इसीलिए सहनशीलता एक हद तक होनी चाहिए। उसके बाद प्रतिकार ही अपराध नियंत्रण का एकमात्र रास्ता है। अच्छे वातावरण एवं सौहार्दपूर्ण व्यवहार के लिए सहनशीलता का गुण कई बार लोगों को कई विपत्तियों से बचा लेता है, परंतु सहनशील व्यक्ति अपनी सहनशीलता के कारण जाने-अनजाने अपराध की प्रवृत्ति को प्रोत्साहन देने का भी काम करते हैं। इसीलिए जरूरी है कि एक सीमा तक ही सहनशील बना जाए, उसके बाद गंभीर प्रतिकार एवं विरोध जरूरी है ।
-सतीश उपाध्याय, मनेन्द्रगढ कोरिया, छत्तीसगढ़
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सहनशीलता की कमी से बढ़ गए अपराध
सहनशीलता का अभाव ही अपराध का मुख्य कारण है। आजकल लोग बात-बात पर हथियार निकल लेते हैं। जरा सा किसी ने टोक दिया या किसी काम को करने से रोका तो जान से मारने के लिये तत्पर हो जाते हैं। छोटे बच्चो को कुछ कह दिया तो सामने जवाब देने लगते हैं। दो परिवारों में किसी बात पर जरा सा विवाद हो गया तो बच्चों तक को नुकसान पहुंचाया जाता है। कई बार तो उनको मार दिया जाता है। कोई भी किसी की सुनने को तैयार नहीं है। यह सब भारतीय सभ्यता व संस्कृति को भूलने का नतीजा है। टीवी चैनल व मोबाइल पर उपलबध सामग्री भी इसके लिए जिम्मेदार है।
-लता अग्रवाल, चित्तौडग़ढ़
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अध्यात्म और योग को दें जीवन में स्थान
आधुनिक समय में बढ़ते भौतिकवादी प्रभाव व संयुक्त परिवारों के समाप्त हो जाने के कारण लोग मामूली समस्या से भी तनावग्रस्त हो जाते हंै। साथ ही गलत खानपान और दिन-ब-दिन बदलती जीवन शैली के कारण भी सहनशीलता में कमी आ रही है। पहले व्यक्ति बड़ी से बड़ी घटना या समस्या का मुकाबला आसानी से कर लेता था। साथ ही हर तरह का मजाक सहन कर लेता था, लेकिन आज के इस दौर में छोटी से छोटी बात या मजाक भी सहन नहीं कर पाता है। फलस्वरूप लोग चिड़चिड़े होते जा रहे हैं, जिससे अपराध हो जाना एक आम बात हो गई है। बढ़ते अपराधों को रोकने के लिए हर व्यक्ति को अध्यात्म और योग को अपने जीवन में स्थान देना होगा।
-कैलाश ओझा, डेगाना, नागौर
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नहीं मिलता सहनशीलता का प्रशिक्षण
परिवार का संकुचित हो रहा दायरा बच्चों को सहनशीलता का प्राकृतिक प्रशिक्षण देने में नाकाम रहा है। ऐसे बच्चों में युवा अवस्था तक आते-आते सहनशक्ति लगभग शून्य हो जाती है। वे अदूरदर्शितापूर्ण मानसिकता के चलते छोटे-छोटे मामलों में भी आपा खो बैठते हैं और अपराध को अंजाम दे देते हैं। संयुक्त परिवार में जो सहनशीलता की शिक्षा मिलती थी, वह एकल परिवार में नहीं मिल पाती।
-नरेश नाथ, लूनकरनसर, बीकानेर
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बच्चों को सहनशील बनाएं
यह सत्य है कि आज लोगों में सहनशीलता की निरंतर कमी होती जा रही है, जो किसी न किसी अपराध को अंजाम देती है। अक्सर मीडिया से ऐसे अपराधों की जानकारी मिलती है, जिनका कारण मात्र छोटी सी बात होती है। छोटी-छोटी बातों पर हत्या, अपहरण, मारपीट आम बात हो गई है। लोग अपना विवेक खोते जा रहे हैं। छोटी -छोटी बातों पर लोग हत्या या आत्महत्या तक कर लेते हैं। वर्तमान में बच्चों में भी यह प्रवृत्ति बढ़ती जा रही है। अत: हमें बच्चों में सहनशीलता के गुण को विकसित करके उनके विवेक स्तर को बढ़ाना होगा।
-के.के. हिन्दुस्तानी, जयपुर
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क्रोध की तीव्रता का दुष्परिणाम
सहनशीलता की कमी से मानसिक सन्तुलन बिगड़ता है। क्रोध की तीव्रता के कारण व्यक्ति सही निर्णय नहीं ले पाता और अपराध कर बैठता है। इसलिए सहनशीलता का अभ्यास आवश्यक है।
-भंवर लाल पारीक, रायला, भीलवाड़ा
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अधीरता से नुकसान
यह बात सही है कि सहनशीलता की कमी से भी अपराध बढ़ रहे हैं। सहनशीलता का अभाव से मानव अधीर होता है और अधीरतावश वह अपराध कर बैठता है।
-डा. चेतना उपाध्याय, अजमेर
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कम हो रही है सहनशीलता
आपा खोने और ऐसी स्थिति में गंभीर अपराध कर गुजरने की तेजी से बढ़ती जा रही प्रवृत्ति गंभीर चिंता का विषय है। यह प्रवृत्ति दर्शाती है कि रोजी-रोटी कमाने की भाग-दौड़ में लोग इस तरह असहिष्णु होते जा रहे हैं और उनमें सहनशीलता की कमी होती जा रही है। लोग छोटी-छोटी बातों पर अपराध करते हैं। सहनशीलता की कमी से हत्या जैसे मामले भी सामने आते हंै।
-प्रद्युम्न सिंह राठौड़, जोधपुर
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बढ़ रहे हैं अपराध
सहनशीलता की कमी से अपराधों को बहुत ज्यादा बढ़ावा मिला है। लोगों में सहनशीलता कम हुई है। इससे लोगों की सोचने समझने की क्षमता बहुत कम हुई, जिसमें वे अपराध भी कर बैठते हैं।
-अजय पूनिया सीकर
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जरा सी बात पर कर देते हैं हत्या
भटका हुआ बेरोजगार युवा या तो मानसिक अवसाद का शिकार है या माफिया और भ्रष्ट नेताओं से संरक्षण प्राप्त कर कानून के खौफ से बरी हो चुका है। ऐसे लोग जरा सी बात पर हत्या, बलात्कार और तेजाब कांड करने से भी नहीं चूकते।
-अभय गौतम, कोटा
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असहिष्णुता से आपराधिक प्रवृत्ति को बढ़ावा
आज के त्वरित युग में बात-बात पर गुस्सा और आक्रामक होना आम सा हो गया है। असहिष्णुता बेशक आपराधिक प्रवृत्ति को बढ़ावा देती है। जाने-अनजाने व्यक्ति आवेश में कुछ भी कर बैठता है। अपराध-बोध होने पर खुद को कोसता भी बहुत है। हर व्यक्ति सहनशीलता हो और दूसरों की मदद के तैयार रहें, तो अपराध कम हो सकते हैं।
-भावना रंगा, पोकरण, जैसलमेर
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धैर्य की कमी से बढ़ गए अपराध
लोगों में अपनी बात मनवाने की प्रवृत्ति जड़ पकड़ चुकी है। लोग दूसरे के विचारों को सुनना नहीं चाहते और इसी धैर्य की कमी से अपराध बढ़ रहे हैं।
-गोविंद दाधीच रोपा भीलवाड़ा
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खतरे की घंटी
समाज में बढ़ती संवेदनहीनता भी अपराध की वृद्धि के लिए जिम्मेदार है। लोग जरा सी बात पर उत्तेजित हो जाते हैं और हिंसा पर उतारू हो जाते हैं, जो रोड रेज की घटनाओं से या मॉब लिंचिंग की घटनाओं से यह बात साबित भी हो जाती है। समाज में बढ़ती संवेदनहीनता पूरे भारतीय समाज के लिए खतरे की घंटी है।
-प्रवीण सैन, जोधपुर
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