scriptसवाल, क्या होम्योपैथी और आयुर्वेद जैसी चिकित्सा पद्धतियां उपेक्षित हैं? | Are medical practices like homeopathy and Ayurveda neglected? | Patrika News

सवाल, क्या होम्योपैथी और आयुर्वेद जैसी चिकित्सा पद्धतियां उपेक्षित हैं?

locationनई दिल्लीPublished: Sep 17, 2020 05:39:26 pm

Submitted by:

shailendra tiwari

पत्रिकायन में पूछा गया सवाल, लोगों ने अपनी—अपनी राय दी। पेश है पाठकों की चुनिंदा राय

homeopathy is effective in seviour disease

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आयुष चिकित्सकों के साथ भेदभाव
सरकार ने राजस्थान में आयुष पैथी के कॉलेज तो खोल दिए , मगर रोजगार के नाम पर कुछ नहीं किया। पिछले 4 से 5 वर्षों से आयुष चिकित्सक राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के तहत संविदा पर अपने घर से 500 किलोमीटर दूर जाकर लोगों की सेवा कर रहे हैं। संविदा आयुष चिकित्सको को सरकार कब तक नियमित करेगी? जब सरकार ने ऐलोपैथी चिकित्सकों की तरह ही आयुष चिकित्सको को एक चिकित्सक की पोस्ट दी है, तो फिर वेतन में भेदभाव क्यों? जब आयुष चिकित्सक भी ऐलोपैथी चिकित्सकों की तरह ही अध्ययन करके आते हंै, तो फिर इनके अस्पतालों में पदों की संख्या इतनी कम क्यों? जब नियमित चिकित्सकों के पद कम होंगे तो फिर कैसे ये पैथी आमजन तक पहुंच पाएगी?अभी इस कोरोना काल में एक तरफ ऐलोपैथी के चिकित्सक मरीजों को देखने से कतरा रहे हैं, उस समय में भी आयुष चिकित्सक कोरोना योद्धा बनकर काम कर रहे हैं। फिर भी सरकार की इतनी उदासीनता क्यों? आयुष की दवाइयों की समय पर उपलब्धता नहीं है, तो फिर आमजन को कैसे इसका लाभ मिलेगा? दूसरी तरफ ऐलोपैथी दवाइयां निशुल्क दवा योजना के तहत उपलब्ध कराई जा रही हैं। सरकार ने पिछले कई वर्षों से आयुष पैथी की विभागीय नियमित भर्ती नहीं की हैं। जब से आयुष पैथी को एक छत के नीचे सभी पैथी के चिकित्सकों को लाने का प्रयास किया, उस समय से ही आयुष पैथी को बहुत नुकसान हुआ, क्योंकि पहले अलग से औषधालय था, तो लोगों तक उसकी पहुंच थी और अब चिकित्सालय में ऐसी जगह आयुष चिकित्सा के लिए आवंटित की जाती है कि वहां लोग आसानी से पहुंच ही नहीं पाते।
-डॉ. वेदप्रकाश सैनी, कांवट, सीकर
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वैकल्पिक चिकित्सा पद्धति नहीं हंै आयुर्वेद और होम्योपैथी
आयुर्वेद ओर होम्योपैथी को मुख्य चिकित्सा पद्धति न मानकर मात्र वैकल्पिक चिकित्सा पद्धति में शामिल करके सरकार खुद इसकी उपेक्षा कर रही है। आयुर्वेद को गर्त में ले जाने का कार्य सरकारों ने ही किया हैं। चिकित्सा विभाग में बजट आता हैं उसका 2-3 प्रतिशत बजट आयुर्वेद विभाग को मिलता हैं, बाकी एलोपैथी को मिलता हैं। वर्तमान में भी देखा जाए तो बिरले आयुर्वेदिक हॉस्पिटल ही ऐसे मिलेंगे, जहां पूरा स्टाफ होगा। एलोपैथी चिकित्सालयों में निशुल्क दवा योजना लागू की हुई हैं। वहां दवाइयां मिल जाती हैं, वही आयुर्वेदिक चिकित्सालयों में वर्ष में दो-बार मात्र 10 से 12 दवाइयां मिलती हैं, वह भी अल्प मात्रा में। वर्तमान में सामान्य जन उनको इस रूप में लेने से परहेज करते हैं, क्योकिआज भी वही कड़वे चूर्ण और काढों के रूप में राजकीय रसायनशालाएं इनका निर्माण करती हैं। सब कुछ आधुनिक हो गया है, परन्तु सरकारी रसायनशाला में दवा निर्माण में कोई आधुनिकता नहीं आई हैं। अगर आयुर्वेद मेडिसीन को बढ़ावा मिले तो भारत मेडिसीन में भी आत्मनिर्भर बन सकेगा। हमें विदेशी दवाओं को कम आयात करना पड़ेगा।
-शिवप्रकाश मीणा, कोटा
सरकार कर रही भेदभाव
आयुर्वेद, होम्योपैथी, यूनानी चिकित्सा पद्धतियां घोर उपेक्षा की शिकार हैं। चिकित्सा के लिए आवंटित बजट में से लगभग 95 प्रतिशत एलोपैथी को दिया जाता है। शेष नाम मात्र का बजट ही इन चिकित्सा पद्धतियों को दिया जाता है। यही नहीं इन चिकित्सा पद्धतियों के कार्मिकों के साथ सौतेला व्यवहार भी किया जाता है। एलोपैथी के समान ही इन चिकित्सा पद्धतियों को आवश्यकता अनुसार बजट मिलना चाहिए एवं कार्मिकों को भी सभी सुविधाएं एवं वेतन एलोपैथी कार्मिकों के समान मिलने चाहिए ।
-श्रवण कुमार जैन, भीलवाड़ा
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एलोपैथी से मोह भंग
आधुनिक चिकित्सा प्रणाली एलोपैथी की अपनी सीमाएं हैं। न तो वह मनुष्य शरीर को संपूर्णता में देखती है और न ही उसका संपूर्णता से इलाज कर सकती है। कोरोना काल में आधुनिक चिकित्सा प्रणाली का कड़वा सच सामने आ रहा है और उससे लोगों का मोहभंग भी हो रहा है। लोग अब आयुर्वेद, योग, प्राकृतिक चिकित्सा, होम्योपैथी जैसे विकल्पों की ओर आकर्षित होने लगे हैं। भारतीय चिकित्सा प्रणाली आधुनिक चिकित्सा प्रणाली की तरह केवल मनुष्य के शारीरिक स्वास्थ्य से जुड़ी हुई नहीं हैं। यह एक पूरी जीवन पद्धति है। आज पुन: भारत ही नहीं, बल्कि विश्व में प्राचीन भारतीय चिकित्सा प्रणालियों की महत्ता और उपयोगिता बढ़ रही है। प्राचीन चिकित्सा पद्धतियों का अन्यत्र कोई विकल्प नहीं। आवश्यकता है अपनी चिकित्सा पद्धतियों पर विश्वास करने की।
डॉ. अजिता शर्मा, उदयपुर
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विश्व की निगाह
वर्तमान परिप्रेक्ष्य मे होम्योपैथिक और आयुर्वेदिक चिकित्सा पद्धतियां किसी भी दृष्टिकोण से उपेक्षित नहीं हैं। आज के समय में तो इनकी पहचान, उपयोगिता और अधिक मजबूती के साथ उभरी है। आज के भौतिकवादी युग मे दुनिया प्रकृति की ओर अग्रसर हो रही है और कैमिकल आर्टिफिशियल चिकित्सा से पीडि़त होकर उससे भाग रही है। लिहाजा हम यह ही कह सकते हैं कि होम्योपैथिक और आयुर्वेदिक चिकित्सा की ओर रुख ना केवल भारत, बल्कि पूरा विश्व कर रहा हैं।
-डॉ. अनीस उर रहमान, भोपाल
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नवीन अनुसंधान जरूरी
होम्योपैथी और आयुर्वेद चिकित्सा पद्धतियां अपनी समृद्ध विरासत के कारण भारत ही नहीं पूरे विश्व में अपनी पहचान बनाए हुए हैं, परंतु नवीन अनुसंधानों के अभाव में कोरोना जैसी नई बीमारियों और कैंसर जैसे असाध्य रोगों के इलाज में ये पद्धतियां भी नाकाम साबित हो रही है।
-कपिल सेन, राघौगढ, गुना, मप्र
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विकास के लिए कार्ययोजना बनाई जाए
चिकित्सा का सबसे बड़ा संकट ग्रामीण क्षेत्रों में है। राज्य में राजकीय आयुर्वेदिक चिकित्सालयों की संख्या आबादी के अनुपात में बहुत कम है। जो चिकित्सालय हैं भी, उनकी हालत खराब है। ज्यादातर आयुर्वेदिक चिकित्सालय किराए के खस्ताहाल भवनों में चल रहे हैं, जिनमें न्यूनतम सुविधाओं का भी अभाव है। इन चिकित्सालयों को आयुष के दायरे में लाए जाने के बाद भी हालात में कोई बदलाव नहीं आया है। सरकारी चिकित्सा व्यवस्था की इस बदहाली के चलते ग्रामीण क्षेत्रों में झोलाछाप डॉक्टरों का दबदबा रहता है। अपेक्षाकृत सस्ते और साइड इफेक्ट रहित इलाज की दृष्टि से आयुर्वेद और प्राकृतिक चिकित्सा पद्धति बेजोड़ है। सरकार को चाहिए कि एलोपैथी के साथ-साथ आयुर्वेद, यूनानी और होम्योपैथी जैसी चिकित्सा पद्धतियों को भी बढ़ावा दे। इसके लिए एक ठोस कार्ययोजना तैयार की जानी चाहिए।
-रघुवीर सुथार, जयपुर
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नहीं हैं बड़े अस्पताल
होम्योपैथी व आयुर्वेद जैसी चिकित्सा पद्धतियां आज देश में उपेक्षित हैं। इस उपेक्षा को वैद्य और एलोपैथी डाक्टर के प्रति लोगों के नजरिए से महसूस किया जा सकता है। देश में इन पद्धतियों के बड़े व समृद्ध अस्पतालों का अभाव भी उपेक्षा को ही व्यक्त करता है।
-डॉ ओमप्रकाश , झुन्झुनूं
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विशेष ध्यान देने की जरूरत
आज हर कोई एलोपैथी इलाज की तरफ भाग रहा है। सरकार का भी आयुष चिकित्सा पद्धति के प्रति नजरिया उतना अच्छा नहीं रहा, जितना होना चाहिए। एलोपैथी दवाएं हमें जल्द से राहत तो देती हैं, मगर शरीर में कई तरह की व्याधियां भी पैदा कर सकती हैं। प्रकृति ने औषधियों के रूप में हमें जो दिया है, वह उपहार समान है। जीवन के लिए अनमोल भी है, मगर हम उनकी महत्ता नहीं समझ पा रहे हैं। हालांकि कोरोना के हालात में अब लोग इसकी उपयोगिता को समझने लगे हैं।
-साजिद अली, इंदौर
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लोगों का भ्रम बड़ा कारण
आयुर्वेदिक और होम्योपैथिक दवाइयां सस्ती व कारगर अवश्य हैं, किन्तु लोगों में ये भावना घर कर गई है कि इन पद्वतियों से इलाज बहुत लंबा चलता है। अधिक समय लगने व शीघ्र परिणाम की आस में वे इस पर कम और एलोपैथिक को ही ज्यादा तवज्जो देते हैं। यह मालूम होने के बावजूद कि इसके साइड इफेक्ट ज्यादा हैं, शीघ्र स्वास्थ लाभ पाने के चक्कर में वे महंगा व असहनीय इलाज ही लोग अपना रहे हैं। अत: त्वरित परिणाम की अपेक्षा ही बनती जा रही है उपेक्षा का कारण।
-शकुंतला महेश नेनावा, इंदौर, मध्यप्रदेश
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भुला दिया प्राचीन ज्ञान
हमारी नानी-दादियों का जमाना था, तब तुलसी, गुड़, लोंग, अजवायन, अदरक, सोंठ से बनाए गए घेरलू नुस्खे बीमारियों को दूर करने में मददगार थे। आज अंग्रेजी दवाइयों का चलन ने उनको हम से दूर कर दिया। आयुर्वेद व होम्योपैथी जैसी चिकित्सा पद्धतियां भी उपेक्षित हैं।
-शिवजी लाल मीना, जयपुर
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आयुर्वेद की तरफ झुकाव बढ़ा
होम्योपैथी अब भी हाशिए पर है, पर आयुर्वेद अब कहीं एलोपैथिक से कहीं आगे आकर लोगों का विश्वास जीत रही है। आयुर्वेद के प्रति लोगों का झुकाव बढ़ा है।
-सतीश उपाध्याय मनेंद्रगढ,़ कोरिया, छत्तीसगढ़
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ठोस योजना जरूरी
यह सही है कि आयुर्वेद एवं होम्योपैथी जैसी चिकित्सा पद्धतियां उपेक्षित हो गई हंै। इसीलिए युवा भी करियर के रूप में आधुनिक शिक्षा पद्धति को अधिक महत्व देते हैं। आयुर्वेद एवं होम्योपैथी जैसे चिकित्सा पद्धति को मजबूरी वश अपनाते हैं। आयुर्वेद और होम्योपैथी जैसा चिकित्सा पद्धति को बढ़ावा देने के लिए सरकार को ठोस योजनाएं बनानी चाहिए एवं लोगों के भ्रम को दूर करना चाहिए।
-शुभम वैष्णव, सवाई माधोपुर
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सरकार की नीतियां जिम्मेदार
आयुर्वेद जैसी समृद्ध चिकित्सा पद्धति उपेक्षित है, तो उसका कारण सरकार की नीतियां हैं। इसे सम्मान देने के लिए हमारे नीति निर्धारकों को ध्यान देने की जरूरत है। इसी से विश्व में हमारी पहचान होगी ।
-बलराम शर्मा, चाकसू, जयपुर
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सरकार का संरक्षण जरूरी
आयुर्वेद व होम्योपैथी चिकित्सा पद्धतियां बरसों से उपेक्षित हैं। इसकी वजह यह है कि इनको सरकार का संरक्षण नहीं मिला। विश्व स्वास्थ्य संगठन पर भी विकसित देशों के एलोपैथी संस्थानों का इतना प्रभाव है कि अन्य राष्ट्रों की किसी अन्य पद्धति की दवाओं को जल्दी से स्वीकृत नहीं किया जाता है। इन दोनों ही पद्धतियों से लिए गए इलाज में खास साइड इफेक्ट नहीं होता है। जब तक इन पद्धतियों को सरकार का संरक्षण नहीं मिलेगा, ये इसी तरह से उपेक्षित रहेंगी।
-विमल कुमार शर्मा, मानसरोवर जयपुर
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एलोपैथी पर ज्यादा भरोसा
जैसा कि सब जानते हैं कि एलोपैथी पर लोगों का भरोसा है। आयुर्वेद या होम्योपैथी के मुकाबले एलोपैथी के जल्द असर के कारण इसे लोग अत्यंत महत्व देते हैं। इसी कारण होम्योपैथी व आयुर्वेद की उपेक्षा होती है। हां, कोरोना काल में लोगों का आकर्षण आयुर्वेद की तरफ काफी बढ़ा भी है।
-स्मृति भारद्वाज, जयपुर
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बजट बहुत कम मिलता है
आयुर्वेद चिकित्सा पद्धति को एलोपैथी चिकित्सा पद्धति से बहुत कम बजट दिया जाता है। इसलिए आयुर्वेदिक चिकित्सालयों की स्थिति एलोपैथिक चिकित्सालयों की तुलना में बेहद कमजोर है। विगत कई वर्षों में आयुर्वेद नर्स-कंपाउंडर की कोई भर्ती नहीं हुई। वेतन विसंगतियां हैं।पंसारी की दुकान पर आयुर्वेदिक औषधियां बेची जाती हंै। आयुर्वेद डिप्लोमाधारियों को मेडिकल का लाइसेंस नहीं दिया जा रहा है। ग्रामीण क्षेत्रों में मरीजों को आयुर्वेदिक औषधियां सुलभ नहीं हो पाती है।
-विनोद कुमार प्रजापति, सारसोप, सवाई माधोपुर
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