क्या हम राजनीति में बदलाव का संक्रांति काल देख रहे हैं?
Five States Assembly Election Results 2022: इन चुनावों में हारने वाली एकमात्र पार्टी है कांग्रेस
Published: March 11, 2022 12:27:02 pm
मोहन गुरुस्वामी (नीति विश्लेषक, वित्त मंत्रालय के पूर्व सलाहकार) भविष्य में जब भारत का इतिहास लिखा जाएगा तो हो सकता है पंजाब विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी (आप) की जीत की तुलना पानीपत की लड़ाई से की जाए, जो कभी भारत की नियति की दृष्टि से निर्णायक मोड़ साबित हुई थी। खास बात यह है कि उत्तरी मैदानी इलाकों में पार्टी की जीत का रास्ता पंजाब से होकर निकला है। आर्यों के बाद के महान आक्रमणकारी यवन, शक, पल्लव (शक, पल्लव जो बाद में क्षत्रप कहलाए) और कुषाण रहे, जिनमें कनिष्क सबसे महान थे। फिर अफगानियों और मुगलों का मुस्लिम दौर आया। पंजाब में आप ने 117 में से 92 सीटें जीत कर निर्णायक जीत हासिल की है। अगर पार्टी बेेहतर शिक्षा और स्वास्थ्य सेवा, साफ-सुथरी भ्रष्टाचार मुक्त सरकार का दिल्ली जैसा जादू यहां दिखा सकी तो हो सकता है भारत को अंतत: एक राजनीतिक विकल्प मिल जाए। आप की जीत इस मायने में खास है कि यह पहली क्षेत्रीय पार्टी है, जो अपने प्रदेश के बाहर भी जाकर जीती है। अन्य क्षेत्रीय दलों ने भले ही ठीक-ठाक जीत हासिल की होगी लेकिन वे किसी दूसरे राज्य में जाकर सेंध लगाने में सफल नहीं रहे।
अरविंद केजरीवाल ने साबित कर दिया कि राष्ट्रीय स्तर पर धनाढ्य समूहों की टीम 'ए' के बिना, क्षेत्रीय स्तर पर बड़े-बड़े प्रोजेक्ट बनाने वाले धनी सिविल ठेकेदार, शराब ठेकेदार और सरकारी आपूर्तिकर्ताओं का प्रश्रय लिए बिना भी चुनाव जीते जा सकते हैं। केजरीवाल ने कर दिखाया कि बजट में रहकर भी इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट पूरे किए जा सकते हैं और गरीबों की सेवा की जा सकती है। उन्होंने देश के विभिन्न हिस्सों से युवाओं का बहुमत जुटाया। प्रधानमंत्री मोदी, केजरीवाल की क्षमताओं को पहचानते हैं, इसीलिए वे उन पर और दिल्ली में उनकी अद्र्ध-सरकार पर हमलावर रहते हैं। चुनाव की अगली बड़ी विजेता के रूप में समाजवादी पार्टी उभर कर आई, जिसने पिछली बार के मुकाबले बड़ी बढ़त दर्ज करते हुए ज्यादा सीटों पर जीत हासिल की। अगले बड़े विजेता हैं योगी आदित्यनाथ, जो संभवत: डबल इंजन की टीम में से एक माने जाते हैं। उन्हें साफ तौर पर मोदी के विकल्प के रूप में देखा जा रहा है। उत्तर प्रदेश सम्पूर्ण भारतवर्ष के छठे हिस्से के बराबर है। जरूरी नहीं कि उत्तर प्रदेश जो भी करे, बाकी देश उसका अनुकरण करे। हिंदुत्व छवि वाले योगी आदित्यनाथ ने उत्तर प्रदेश में कल्याणकारी योजनाओं पर फोकस किया, जैसे आवास, पेयजल कनेक्शन और महिला कल्याण। इसीलिए अचरज नहीं कि बीजेपी को अच्छी संख्या में महिला वोट मिले। योगी ने कर दिखाया। योगी, मोदी के उत्तराधिकारी के रूप में स्वयं की दावेदारी करने में सफल सिद्ध हुए।
इन चुनावों में एकमात्र दल जो हारा है, वह है-कांग्रेस। कांग्रेस के हाथ से पंजाब गया, जहां की नैया भाई-बहन की जोड़ी ने संभाली और उसमें सवार सिद्धू लगातार उसी में छेद करते रहे। उत्तराखंड भी हाथ से छूट गया, जहां बीजेपी ने तीन बार सरकार का नेतृत्व बदला। गोवा में भी कांग्रेस कहीं नहीं दिखाई दी, जो 2017 में ही धनबल की राजनीति के चलते इससे छिन चुका था। 2017 में मणिपुर में सबसे बड़ी पार्टी (28/60) रही कांग्रेस यहां भी मात खा गई। उत्तर प्रदेश में प्रियंका गांधी द्वारा प्रचार की कमान संभालने के बावजूद पार्टी का प्रदर्शन निराशाजनक रहा। प्रियंका ने 203 रैलियां और रोड शो किए। इस मामले में वे योगी आदित्यनाथ के बाद दूसरे नंबर पर रहीं, जिन्होंने 209 रैलियां कीं।
भारत में अब भी राजनीति में वंशवाद चल रहा है। अखिलेश यादव, तेजस्वी यादव, एम.के. स्टालिन और उद्धव ठाकरे इसी परिपाटी को बढ़ा रहे हैं। न तो ये प्रेरक हैं और न ही इनका कार्य उल्लेखनीय। कांग्रेस पार्टी की शाही पंक्ति धीरे-धीरे प्रभावशून्यता की ओर बढ़ रही है। कोई मानने को तैयार नहीं है कि निकट भविष्य में कांग्रेस कोई कमाल दिखा पाएगी। इसके भीतर पनपा जी-23 समूह इसका विकल्प नहीं है, क्योंकि वे उसी परिवार के प्राणी हैं, जिसने उनके वजूद को बनाया है। खैर, सूर्यास्त के बाद नया दिन आता ही है!

प्रतीकात्मक चित्र
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