हाल ही केन्द्रीय संगीत नाटक अकादमी के सहयोग से सेन की बेटी कृष्णा वर्मा ने मालवा कला केन्द्र उज्जैन के संयोजन में हफ्ते भर का एक स्मृति प्रसंग किया। वक्ताओं ने सिद्धेश्वर सेन और लोक नाट्य शैली माच की आपसदारी की चर्चा की। प्रसंगवश यह उल्लेख जरूरी है कि 1993 में संगीत नाटक अकादमी, दिल्ली ने सेन को राष्ट्रीय पुरस्कार के लिए चुना था और इंदौर जिले की राऊ तहसील के छोटे से गांव रंगवासा के रहवासी माच के इस बावरे फनकार के सीने पर राष्ट्रपति ने सम्मान का मेडल लगाया था।
गौर करने की बात यह है कि सिद्धेश्वर सेन ने यह सब आत्म निर्भरता पर अडिग रहकर किया। माच प्रदर्शन की चली आ रही परंपरा में नए प्रयोग कर उसे मौजूं बनाया। अनेक नई रंगतें लिखीं। उन्हीं की पहल पर माच के मंच पर वर्जित स्त्री कलाकारों की आमद हुई। एक वह कठिन दौर भी आया जब उनके साथ प्राण-प्रण से सक्रिय उनकी पत्नी ने माच के मोह में अपने गहने तक बेच दिए। बहरहाल, वक्त की धूल को बुहारकर सिद्धेश्वर सेन और उनके गुजिश्ता दौर को याद करने की दरकार है। बेशक, एक उजला हस्ताक्षर नुमाया होगा और कहानियां बोल पड़ेगी।