इनसे उबरने की शक्ति भी संस्कृति की वे छटाएं हैं जिनमें तालाब खोद वर्षा जल संरक्षण हुआ। जीव-जंतुओं के प्रति करुणा रखते हुए उन्हें अन्न, जल देने की परम्पराएं बनीं, जिनमें पेड़ नहीं काटने के लिए खेजड़ली जैसे बलिदान हुए। ओरण के साथ गोचर भूमि के लिए स्थान रखा गया। इस समय के संकटों में भी जीवन से जुड़े ऐसे ही संस्कारों की आवश्यकता है। हम नवीन हों, आगे बढ़ें पर परम्पराओं के उजास में कलाओं के झिलमिल सहज रूप हमारे संग होंगे, तभी जीवन भरा-पूरा संपन्नता लिए होगा।
डॉ.राजेश कुमार व्यास संस्कृतिकर्मी, कवि और कला समीक्षक