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राजनीति का मिजाज

Published: Jan 16, 2015 12:12:00 pm

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यूपीए सरकार के दस साल पूरे होने के बाद कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी अब महंगाई और भ्रष्ट…

यूपीए सरकार के दस साल पूरे होने के बाद कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी अब महंगाई और भ्रष्टाचार से लड़ने की बात कर रहे हैं। राहुल का आरोप है कि भ्रष्टाचार निरोधक विधेयक पर विपक्ष ने संसद में उनका साथ नहीं दिया। राहुल के आरोपों को निराधार बताते हुए भाजपा उलटे राहुल को ही घेरने की कोशिश में जुटी है। देश की राजनीति का ये मिजाज बन चुका है कि हरेक राजनीतिक दल चुनाव से पूर्व अपने आप को जनता का सच्चा हमदर्द साबित करने में जुटा है।

भ्रष्टाचार से लड़ने की बात करने वाले राहुल क्या देश को बताएंगे कि उन्होंने और उनकी सरकार ने दस साल तक क्या किया? भ्रष्टाचार निरोधक विधेयक संसद में पेश करने की याद उन्हें संसद सत्र के आखिरी दिन ही क्यों आई? उन्हें पहले ऎसा करने से कौन रोक रहा था?

पिछले दस साल में हुए घोटालों पर क्या कभी राहुल गांधी बोले? महंगाई कम करने के लिए उन्होंने क्या किया? राहुल यह सब करने की शुरूआत सत्ता में आते ही करते तो निस्संदेह उनकी कार्यशैली पर किसी की अंगुली उठाने की हिम्मत नहीं पड़ती। आखिर कांग्रेस के नेतृत्व वाली संप्रग सरकार का यह दूसरा कार्यकाल चल रहा है। चुनाव का बिगुल बजते ही राहुल गांधी को यह सब नजर आने लगा। यही हाल भाजपा का है।

पिछले दस सालों में भाजपा ने भी इन मुद्दों पर संसद में हंगामा करने के अलावा शायद ही कभी कुछ किया हो। भ्रष्टाचार के मुद्दे पर कांग्रेस को घेरने वाली भाजपा आज चाहे जो कहे, लेकिन क्या वह इस बात का जवाब दे सकती है कि कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री वी.एस. येçaयुरप्पा को उसने पार्टी में फिर क्यों शामिल किया?

देश जानता है कि भ्रष्टाचार के मुद्दे पर ही पार्टी ने येçaयुरप्पा से किनारा किया था और आरोप मुक्त हुए बिना फिर पार्टी में शामिल कर लिया। क्या ये भाजपा की कथनी और करनी का अंतर नहीं है? टीवी चैनलों और बयानों के माध्यम से देश की जनता को भ्रमित करने वाले इन दलों को अपने अंदर झांककर देखना चाहिए कि इस मुद्दे पर वे कितने ईमानदार हैं? आज जनता सब जानती और समझती है।

चुनाव में जीत हासिल करने के लिए भ्रष्टाचार से संघर्ष तथा राजनीतिक ईमानदारी और शुचिता की बात करने वाले राजनीतिक दलों को यह भी बताना चाहिए कि चुनाव प्रचार में बहाने के लिए इनके पास आने वाला पैसा क्या एक नंबर का है? यह पैसा उन्हें कहां से मिलता है? देश की जनता को जब तक इन सवालों का जवाब नहीं मिलेगा, तब तक मतदाता ऎसे दलों पर शायद ही विश्वास कर पाएं।
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