नई दिल्लीPublished: Jun 09, 2021 08:59:34 am
विकास गुप्ता
अंतिम छोर तक पहुंचती हैं आशा स्वास्थ्य कार्यकर्ता
एकीकृत डिजिटल प्राथमिक स्वास्थ्य मंच तैयार करने में आशा सहयोगिनियों की अहम भूमिका है। यह गेमचेंजर हो सकता है
लेखक - प्रो. अर्णव मुखर्जी, प्रो. ए.पी. उगरगोल (स्वास्थ्य नीति समूह, आइआइएम बेंगलूरु)
राज्य स्तरीय चिकित्सा प्रणाली की कमजोर रेफरल क्षमताओं के कारण स्वास्थ्य सेवाओं तक आम लोगों की पहुंच आज भी चुनौती बनी हुई है। रेफरल प्रणाली को सुदृढ़ करने और समुदाय तक स्वास्थ्य सेवाओं की उपलब्धता को बेहतर बनाने के इरादे से 2005 से 'मान्यता प्राप्त सामाजिक स्वास्थ्य गतिविधियों' यानी 'आशा' की भर्ती शुरू की गई। आज देश भर में करीब साढ़े नौ लाख आशा सहयोगिनियां कार्यरत हैं, जो लोगों के बीच स्वास्थ्य संबंधी अलख जगा रही हैं। आज ग्रामीण समुदायों में आशा ही वह कड़ी है, जो प्रशिक्षण हासिल कर कोविड-19 प्रोटोकॉल का पालन करते हुए मरीज के लक्षण पहचानने, उनके बारे में बताने और संदिग्ध संक्रमितों को होम आइसोलेट करने में मदद कर सकती है और गंभीर मामलों में स्वास्थ्यसेवा तंत्र को मरीज की जरूरतों से अवगत करा सकती है।