पंजाब में अमरिंदर सिंह को हटाया। चरणजीत सिंह चन्नी को तवज्जो दी। उन्हें 'मास्टर स्ट्रोक' बताया गया। वे दो सीटों पर लड़े। चन्नी दोनों पर चित हो गए। कैप्टन निपटे तो निपटाने से भी नहीं चूके। भाजपा से जा मिले। रही सही कसर सिद्धू ने पूरी कर दी। सिद्धू 'भस्मासुर' साबित हुए। खुद भी डूबे, पार्टी भी डुबो दी।
कांग्रेस को सबसे ज्यादा नुकसान पंजाब में हुआ है। अंदरूनी लड़ाई राहुल रोक नहीं पाए। बड़े नेताओं में वजूद की 'जंग' जग जाहिर हो गई। जो आप' के लिए 'वरदान' साबित हुई। 'आप' ने सबको 'साफ' कर दिया। कहना गलत न होगा, 'आप' को पंजाब प्लेट में रखकर परोसा गया।
कांग्रेस को सबसे ज्यादा नुकसान पंजाब में हुआ है। अंदरूनी लड़ाई राहुल रोक नहीं पाए। बड़े नेताओं में वजूद की 'जंग' जग जाहिर हो गई। जो आप' के लिए 'वरदान' साबित हुई। 'आप' ने सबको 'साफ' कर दिया। कहना गलत न होगा, 'आप' को पंजाब प्लेट में रखकर परोसा गया।
उत्तराखंड में हरीश रावत और प्रीतम सिंह का झगड़ा ले डूबा। वहां भाजपा ने तीन मुख्यमंत्री बदले। सरकार विरोधी लहर थी। इसके बावजूद कांग्रेस 'विकल्प' नहीं बन पाई। जनता ने नकार दिया। गोवा में भाजपा का 'विकास' जनता को पसंद आया। मणिपुर में 'सत्ता की मणि' फिर भाजपा को मिली। पूर्वोत्तर में एक दौर था जब कांगेस मजबूत थी। आज मजबूर हो चली है। पुराने नेता-कार्यकर्ता पार्टी छोड़ते जा रहे हैं।
उत्तर प्रदेश में खोने को कुछ था ही नहीं। प्रियंका ने खूब मेहनत की। नतीजा 'शून्य' रहा। लेकिन थोड़ा फायदा जरूर हुआ। यूपी में कांग्रेस संगठन 'जिंदा' हुआ। भविष्य में इसका कोई फायदा होगा, कहना जल्दबाजी होगी। लेकिन बड़ा सवाल ये है, क्या यह 'सक्रियता' बनी रहेगी? क्या प्रियंका भी अपना हौसला बरकरार रख पाएंगी?
उत्तर प्रदेश में खोने को कुछ था ही नहीं। प्रियंका ने खूब मेहनत की। नतीजा 'शून्य' रहा। लेकिन थोड़ा फायदा जरूर हुआ। यूपी में कांग्रेस संगठन 'जिंदा' हुआ। भविष्य में इसका कोई फायदा होगा, कहना जल्दबाजी होगी। लेकिन बड़ा सवाल ये है, क्या यह 'सक्रियता' बनी रहेगी? क्या प्रियंका भी अपना हौसला बरकरार रख पाएंगी?
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सार ये कि कांग्रेस अपनी आभा खो चुकी है। पुराना 'वैभव' पाना आसान नहीं है। कल और आज में फर्क है। वर्तमान चुनौतियां बहुत बड़ी हैं। कांग्रेस को अब सोचना पड़ेगा। दो सौ साल पुरानी पार्टी सिमटती जा रही है। आखिर क्यों? अब सिर्फ राजस्थान और छत्तीसगढ़ 'हाथ' में है। राजस्थान में स्थिति नियंत्रण में तो है, पर तनावपूर्ण है। गहलोत-पायलट की अदावत जगजाहिर है। छत्तीसगढ़ में भी 'फार्मूले' का जिन्न जब-तब बाहर आ ही जाता है।इसलिए अब हार के कारणों पर 'मंथन' की रस्म अदायगी से बचें। किसी ठोस नतीजे पर पहुंचें। पार्टी के अनुभवी नेताओं का एक 'थिंक टैंक' बनाएंं। वक्त आ गया है, राहुल 'ब्रेक' लें। नया नेतृत्व-नया नजरिया ही विकल्प है। अस्तित्व खतरे में है। बदलाव समय की मांग है। कांग्रेस को खुदको बदलना तो पड़ेगा।
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