इस बात का ध्यान रखें कि हमारा जीवन तब नीचे गिर जाता है,जब हमारी दृष्टि नीचे गिर जाती है। पहले हमारी दृष्टि गिरती है। फिर बाद में हम गिरते हैं। कदमों का गिरना कोई गिरना नहीं है, जो अपने चरित्र से गिर गया वस्तुत: वह पतित हो गया। इसलिए अपने चारित्र की उज्ज्वलता के लिए अपनी दृष्टि को सीधा रखें यानी पवित्र रखें।
(आचार्य विद्यासागर एक प्रख्यात दिगम्बर जैन आचार्य हैं। उन्हें उनकी विद्वत्ता और तप के लिए जाना जाता है। आचार्य श्री हिन्दी, अंग्रेजी आदि 8 भाषाओं के ज्ञाता हैं ।)