शिवसेना प्रमुख जिस प्रकार से केन्द्र को मंदिर निर्माण के लिए चेतावनी दे रहे हैं कि मंदिर निर्माण की घोषणा नहीं हुई तो २०१९ के चुनाव नजदीक हैं। हम भाजपा को सत्ता में नहीं आने देंगे। वहीं प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कांग्रेस पर आरोप लगाया है कि वह अयोध्या मुद्दे पर आदेश में देरी करवा रही है। न्यायाधीशों को महाभियोग की धमकियां दी जा रही हैं। विहिप नेता कह रहे हैं विवादित स्थल पर नमाज नहीं होने देंगे। आजम खान अलग ही राग अलाप रहे हैं कि मुसलमान देश से पलायन को तैयार है, सरकार रास्ता बताए। अखिलेश सेना की तैनाती चाहते हैं। कुल मिलाकर चुनाव के मद्देनजर हर पार्टी और नेता राम का नाम भुनाने की फिराक में है। किसी को सर्वोच्च न्यायालय की परवाह नहीं दिखती। जहां जनवरी २०१९ में इस मुद्दे पर सुनवाई शुरू होनी है। पहले सभी दल और संगठन इस बात पर राजी थे कि न्यायालय जो भी फैसला देगा, वह मंजूर होगा। लेकिन विधानसभा और आम चुनाव नजदीक आते ही सभी को फिर अयोध्या और राम याद आ गए। शिवसेना के उद्धव ठाकरे रामलला के दर्शन को पहुंच गए। धर्मसभा के लिए साधु-संतों सहित लाखों लोग जमा किए गए। क्यों? क्या यह उपयुक्त समय है? क्या कोई धर्म मंदिर या जमीन के लिए जोर-जबर्दस्ती की बात कहता है? नहीं।
इलाहाबाद उच्च न्यायालय ३० सितंबर २०१० के अपने फैसले में साफ कर चुका है कि विवादित भूमि को बराबर तीन हिस्सों में हिन्दू और मुसलमानों में बांट दिया जाए और जहां अस्थायी मंदिर में रामलला विराजित हैं वह स्थल हिन्दुओं का है। इसी आदेश पर सुप्रीम कोर्ट में विचार चल रहा है। न्यायालय को भी चाहिए कि सभी पक्षों को सुनकर जल्द ही फैसला किया जाए। आस्था और धर्म से जुड़े मुद्दे लंबित रहने से आक्रोश पैदा होता है। राजनीतिक दल इसी आक्रोश का फायदा उठाने की जुगत में रहते हैं। किसी भी ऐसे मुद्दे पर भोली-भाली जनता को बरगला कर सत्ता तो हासिल की जा सकती है, लेकिन देश की उन्नति के लिहाज से इसके विपरीत ही परिणाम होते हैं। सभी संयम रखें, न्यायपालिका पर विश्वास रखें, जो भी फैसला हो, उसे शिरोधार्य करें। तभी भारत धर्मनिरपेक्ष रह पाएगा। गंगाजमुनी संस्कृति की परंपराएं भी तो यही कहती हैं।