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अजीर्ण भांति-भांति का

‘बुद्धि के मारे’ होने से हमारा तात्पर्य उन महानुभावों से है जिन्हें ‘बुद्धि’ का अजीर्ण हो जाता है। कसम से अजीर्ण बड़ी बुरी बीमारी है।

Apr 01, 2017 / 01:36 pm

इस जहां के ‘मारे’ हुए लोगों की कमी नहीं। कोई दंगों का मारा है तो कोई इश्क का। किसी को दुश्मनों ने मारा है तो किसी को दोस्तों ने। कोई अपनों का मारा है तो कोई परायों का। इस संसार में ऐसे बेचारों की भी कमी नहीं जो अज्ञान के मारे हैं। लेकिन इस दुनिया की सबसे ज्यादा ऐसी-तैसी उन तथाकथित ‘ज्ञानियों’ ने की है जो कि बुद्धि के मारे हैं। 
‘बुद्धि के मारे’ होने से हमारा तात्पर्य उन महानुभावों से है जिन्हें ‘बुद्धि’ का अजीर्ण हो जाता है। कसम से अजीर्ण बड़ी बुरी बीमारी है। पेट में गैस बन जाती है। शरीर के ऊपर तेल पसीना चढ़ा हो तो उसे स्नान करके साफ किया जा सकता है पर अजीर्णता का इलाज तुरंत नहीं हो सकता। 
इसके लिए आदमी को अपनी ‘जिव्हा पर काबू रखना पड़ता है। बुद्धि का अजीर्ण होने पर भी सबसे ज्यादा सक्रिय जीभ ही होती है। इस रोग के होने पर हालांकि जिसे बुद्धि का अजीर्ण हो जाता है वह अपने को अतिरिक्त ज्ञानी समझने लगता है। 
अहसास होने लगता है जैसे परमपिता परमेश्वर ने विश्व का सारा ज्ञान उसके दिमाग में ठूस-ठूस कर भर दिया हो। वह सोचता है कि संसार की कोई जानकारी नहीं जो उसकी बुद्धि से छीपी है। वह एक सांस में आपको परमाणु बम बनाने की तकनीक से लेकर स्वादिष्ट ‘छोले-भटूरे कैसे बनाए’ विषय पर धाराप्रवाह व्याख्यान दे सकता है। 
ऐसे मनुष्य के सामने आपको शब्द मात्र उच्चारित करना होता है। उसके भीतर छिपा ‘गूगल बाबा’ तुरंत सक्रिय हो जाता है। बुद्धि का अजीर्णवादी आपको बोलने का अवसर कतई नहीं देगा। 

आपकी बात को गाजर मूली की तरह काट फेंकता है और आप चुपचाप रह कर उसकी बातें सुनने में ही अपनी भलाई मान लेते हैं। इन्हें ढूंढने में भी आपको कुछ ज्यादा मशक्कत करने की जरूरत नहीं। शायर कहता है- ‘ज्ञानियों की कमी नहीं प्यारे, एक ढूंढ़ो हजार मिलते हैं। अपने देश को ज्ञानियों का देश यूं ही नहीं कहा जाता है। 
व्यंग्य राही की कलम से 

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