scriptबेटियों की खातिर… | baat karamat in rajasthan patrika 9 march 2017 | Patrika News

बेटियों की खातिर…

Published: Mar 09, 2017 04:03:00 pm

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हम पूछते हैं कि इस देश में बेटा और बेटी में समानता पैदा कैसे हो। भागमती कहती है- जैसे बेटे को स्वतंत्र छोड़ते हो वैसे ही बेटी को भी छोडऩा सीखो।

हमारी एक माननीय केन्द्रीय मंत्री महोदया ने फरमाया है कि शाम के वक्त हॉस्टल में कफ्र्यू रहना चाहिए। कारण बताया, लड़कियों के हार्मोन्स उछलने का। वाह मोहतरमा। आपका जवाब नहीं। क्या ‘हार्मोनिक चेंज’ सिर्फ लड़कियों में आते हैं? लड़कों में नहीं? 
इस देश में कितने मां-बाप हैं जो अपने लाड़ले को ‘कर्फ्यू’ में रखते हैं? माफ करना साहब जब हमारी महिला मंत्री की ही यही सोच है तो फिर उस उज्जड़ बाप से तो उम्मीद रखना बेमानी है जो लड़कियों को सात ताले के भीतर रखने की चीज मानते हैं। 
एक किस्सा सुनाएं। हिजड़ा भागमती हमारी पुरानी दोस्त है। वह कहती है- लेखक बाबू! सच कहूं तो औरत ही औरत की दुश्मन है। घर में छोरी होती है तो रोना-पीटना मच जाता है। दुनिया दिखावे को घरवाले आंसू नहीं टपकाते पर उदास हो जाते हैं। 
हमने कई बार छोरी की मां तक को बेटी के जन्मने पर रोते देखा है। छोरे की चाह में सात-सात लड़कियां पैदा कर लेते हैं चाहे घर में चार लोगों के पेट भरने लायक दाने न हो। 
भागमती की इस बेबाक बयानी के हम कायल हैं। फर्क सिर्फ इतना है कि पुरुष होकर भी जो बात हम साहस से नहीं कह पाते वह सत्य किन्नर भागमती मजे-मजे में कह जाती है इसीलिए हम भागमती के दीवाने हैं। 
हम पूछते हैं कि इस देश में बेटा और बेटी में समानता पैदा कैसे हो। भागमती कहती है- जैसे बेटे को स्वतंत्र छोड़ते हो वैसे ही बेटी को भी छोडऩा सीखो। अपनी सुरक्षा की चिन्ता उसे खुद करने दो। तुम तो कदम-कदम पर बेटी को ही रोकते हो। घोड़ी की टांग ही बांध के रखोगे तो क्या वह कभी रेस में अव्वल आ पाएगी? 
बेटे को काजू-पिस्ता देते हो और बेटी को मूंगफली तक नहीं खिलाते। बेटा बातों के जूते मारे तो सह लेते हो और बेटी शालीनता से अपनी बात कहे तो आपा खो देते हो। कम से कम औरत को तो औरत का साथ देना चाहिए। अपने यहां तो नारी ही नारी की नंबर एक शत्रु बनी हैं। 
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