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बाड़मेर हादसा: जिम्मेदार कौन?

जसोल में हुए हादसे की जांच के आदेश देने की रस्म अदायगी तो हो गई। लेकिन क्या हादसे के जिम्मेदार लोगों को कभी सजा मिल पाएगी?

Jun 25, 2019 / 08:16 pm

dilip chaturvedi

barmer incident

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हादसों से सबक नहीं लेने की हमारी आदत आखिर छूटती क्यों नहीं? बाड़मेर के जसोल में रामकथा के दौरान हुआ हादसा हंसती-खेलती 14 जिंदगियों को लील गया। मृतकों के परिजनों को पांच-पांच लाख रुपए का मुआवजा, हादसे की जांच के आदेश, शोक संवेदनाओं का दौर और नेताओं की मिजाजपुर्सी हमेशा की तरह इस बार भी देखने में आई। लगता है हर हादसे के बाद दोहराई जाने वाली पटकथा एक बार फिर दोहराई गई। जो कुछ हुआ, उसे देखकर लगता नहीं कि देश में आम आदमी की जान की कोई कीमत रह गई है। ग्यारह साल पहले जोधपुर के मेहरानगढ़ में धार्मिक आयोजन के दौरान मची भगदड़ में दो सौ से अधिक लोग काल-कालवित हो गए थे। इसके बाद हादसे की जांच हुई। सालों चली जांच के बाद भी पता नहीं चल पाया कि आखिर हादसा हुआ क्यों? कौन था इसके लिए दोषी? मेहरानगढ़ ही क्यों? 2008 में हिमाचल प्रदेश के नैना देवी मंदिर में भगदड़ में 146 लोगों की मौत हो गई थी। क्या ऐसे हादसों की रोकथाम के लिए पुख्ता इंतजाम नहीं किए जाने चाहिए। जिस आयोजन में सैकड़ों लोग मौजूद हों, उसमें सुरक्षा इंतजामों के साथ समझौते की इजाजत क्यों दी जाती है?

सवाल गंभीर है, लेकिन उसकी गंभीरता को समझने वाला कोई नहीं। हादसों के बाद सालों गुजर जाते हैं, लेकिन जिम्मेदारी किसी की तय नहीं हो पाती। मृतकों के परिजन न्याय की आस में वर्षों तक आयोगों के सामने गवाही देते रहते हैं, सबूत जुटाते रहते हैं। सरकारों का काम, लगता है, सिर्फ अनुदान और बेरोजगारी भत्ता बांटना ही रह गया है। किसानों की कर्जमाफी के नाम पर वोट बटोरना, सरकार बनाना और राजनीतिक उठापटक में मशगूल रहने को ही सरकार चलाना नहीं कह सकते। स्टेशनों पर आए दिन भगदड़ मचती रहती है, लोग मरते रहते हैं, लेकिन हालात नहीं सुधरते। अदालतें निर्देश देते-देते थक जाती हैं, लेकिन सक्षम अधिकारियों के कानों पर जूं तक नहीं रेंगती। इसके लिए कोई एक राजनीतिक दल दोषी नहीं है। सरकारी तंत्र ही ऐसा बन गया है, जहां सब कुछ रामभरोसे चलता नजर आता है। पांच लाख रुपए का मुआवजा देकर किसी परिवार के चेहरे पर मुस्कान नहीं लाई जा सकती। जसोल में हुए हादसे की जांच के आदेश देने की रस्म अदायगी तो हो गई। लेकिन क्या हादसे के जिम्मेदार लोगों को कभी सजा मिल पाएगी? बिना सुरक्षा इंतजामों के रामकथा कराने वाले आयोजकों और सरकारी अधिकारियों को कठघरे में कौन खड़ा करेगा? जवाब जनता जानना चाहती है, क्योंकि हर बार भुगतना उसे ही पड़ता है। चूंकि अधिकांश हादसे धार्मिक आयोजनों के दौरान होते हैं, मान लिया जाता है कि शायद भगवान की मर्जी थी। लेकिन सवाल मर्जी का नहीं, हादसों को रोकने का है। सुरक्षा इंतजामों के साथ समझौता नहीं किया जाए तो हादसों पर काबू पाना संभव है।

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