script

सुख हो या दुख, हमेशा पॉजिटिव एटीट्यूड रखें

Published: Jun 18, 2021 05:55:01 pm

जो हो रहा है ईश्वर की मर्जी से हो रहा है, अच्छा हो रहा है। इसका अंतिम परिणाम सुखद ही होगा।

rajasthan news

jobs in hindi, jobs, career tips in hindi, business tips in hindi, career, artificial intelligence, internet of things, games, meditation, yoga

सकारात्मक सोच दुख में सुख का अनुभव करने का अहसास कराती है। इसी से जीवन में मैत्री, करुणा, प्रेम, दया, वात्सल्य भाव जीवन में अवतरित होने लगते हैं।

यह भी पढ़ें

अब तक हजारों छात्राओं की स्कूल फीस जमा करवा चुकी हैं निशिता

‘जो हो रहा है ईश्वर की मर्जी से हो रहा है, अच्छा हो रहा है। इसका अंतिम परिणाम सुखद ही होगा।’ हर व्यक्ति की ऐसी ही सोच हो तो दुनिया में दुख और पीड़ा गायब हो जाएगी। व्यक्ति सुखी और संतुष्ट महसूस करता है। यह सकारात्मक सोच व्यक्ति की दशा और दिशा बदल देती है और इसी सोच को सकारात्मक सोच कहते हैं। सकारात्मक सोच दुख में सुख का अनुभव करवा देती है। इससे मैत्री, करुणा, प्रेम, दया, वात्सल्य भाव जीवन में अवतरित होने लगते हैं। ‘जीओ और जीने दो’ की भावना व्यक्ति में बनने लगती है। जीवन में पुरुषार्थ की भावना बढ़ जाती है। व्यक्ति को लक्ष्य तैयार करने में सहयोग मिलता है। वहीं नकारात्मक सोच व्यक्ति को मानसिक रोगी बनाकर उसका व्यक्तित्व नष्ट कर देती है। जीवन की घटनाओं को नकारात्मक दृष्टि से देखना प्रारम्भ कर देता है। कार्य करने का उत्साह समाप्त हो जाता है। यही नहीं कभी-कभार स्थिति इतनी विकट हो जाती है कि व्यक्ति खुद को ही समाप्त करने के विचार को जन्म देने लगता है।
सकारात्मक सोच के साथ धार्मिक, व्यवहारिक, आध्यात्मिक और लौकिक शिक्षा के साथ होने वाला चारित्रिक विकास भी बेहतर होता है। वहीं नकारात्मक सोच से शिक्षा का विकास तो हो रहा है पर चरित्र और उससे होने वाली परिवार, समाज मर्यादा का हनन हो रहा है। इसके फलस्वरुप युवा पीढ़ी धर्म और ईश्वर से दूर होती जा रही है। सकारात्मक होने से ईश्वर और उसके प्रसाद को हम सहर्ष स्वीकार कर सकते है। जीवन में सकारात्मक सोच से जीवन मे घटने वाली घटनाओं का जिम्मेदार हम दूसरों को न मानकर उससे निकलने की राह को खोजते है। राह मिलने पर ईश्वर का स्मरण कर सोचते हंै कि जो किया अच्छा किया। सकारात्मक सोच जीवन की गतिविधि में ईश्वर और उसके फैसले को स्वीकार करने की शक्ति देता है।
यह भी पढ़ें

क्रोध के बारे में पांच मिथक जो हम नहीं जानते

सकारात्मक सोच का सब से बड़ा लाभ है मानसिक रोगों से मुक्ति। इससे सपनों को पूरा करने का उत्साह पैदा हो जाता है। जब हम अपने जीवन की घटनाओं को दूसरे से जोडऩे लगते है तो उसी समय से नकारात्मक सोच मन में प्रवेश करना प्रारम्भ कर देती है। ईश्वर का स्मरण करने से व्यक्ति की सकारात्मक सोच के प्रति दृढ़ता आती है। मर्यादा पुरुषोतम श्रीराम ने भी अपने जीवन में घटी घटनाओं को ईश्वर की मरजी मान कर सहजता से स्वीकार किया, यही वजह है कि वे हमारे पूज्य बन गए। सकारात्मक सोच के रास्ते में विघ्न तो आ सकते हंै पर उसका परिणाम हमें सुखद ही मिलता है।

ट्रेंडिंग वीडियो