सकारात्मक सोच के साथ धार्मिक, व्यवहारिक, आध्यात्मिक और लौकिक शिक्षा के साथ होने वाला चारित्रिक विकास भी बेहतर होता है। वहीं नकारात्मक सोच से शिक्षा का विकास तो हो रहा है पर चरित्र और उससे होने वाली परिवार, समाज मर्यादा का हनन हो रहा है। इसके फलस्वरुप युवा पीढ़ी धर्म और ईश्वर से दूर होती जा रही है। सकारात्मक होने से ईश्वर और उसके प्रसाद को हम सहर्ष स्वीकार कर सकते है। जीवन में सकारात्मक सोच से जीवन मे घटने वाली घटनाओं का जिम्मेदार हम दूसरों को न मानकर उससे निकलने की राह को खोजते है। राह मिलने पर ईश्वर का स्मरण कर सोचते हंै कि जो किया अच्छा किया। सकारात्मक सोच जीवन की गतिविधि में ईश्वर और उसके फैसले को स्वीकार करने की शक्ति देता है।
यह भी पढ़ें