यह भी देखें : सामयिक : ईरान में रईसी की जीत से और मजबूत हो सकती हैं दमनकारी ताकतें बाइडन ने जेल में बंद विपक्षी नेता एलेक्सी नवालनी की सजा पर गंभीर चिंता जताते हुए कड़ी चेतावनी दी – ‘यदि जेल में नवालनी की मौत हो जाती है तो इसके गंभीर परिणाम होंगे।’ बाइडन की यह प्रतिक्रिया भले ही अतिवादी हो, पर इस मुद्दे ने पुतिन को इतना असहज कर दिया कि पुतिन को ‘ब्लैक लाइव्स मैटर’ और ‘कैपिटल हिल’ की घटना की आड़ में कहना पड़ा कि ‘मानवाधिकारों पर अमरीका से भाषण नहीं सुनेंगे।’
यह भी देखें : अवैध हथियारों की तस्करी क्यों नहीं रुक पा रही है? पश्चिमी देशों के पत्रकारों ने नवालनी पर कई सीधे सवाल किए, पर पुतिन ने नवालनी को ‘एक रूसी नागरिक’ व ‘बार-बार अपराध करने वाला’ कह कर संबोधित किया। दरअसल, 20 अगस्त 2020 को रूस में विपक्ष के नेता, एंटी करप्शन फाउंडेशन (एफबीके) के संस्थापक, युवा विसलब्लोअर और राष्ट्रपति पुतिन के धुर-विरोधी एलेक्सी नवालनी टॉम्स्क एयरपोर्ट के एक कैफे में रहस्यमयी तरीके से प्रतिबंधित रसायन नोविचोक नर्व एजेंट के हमले का शिकार हुए थे। वैश्विक संस्थाओं के प्रयासों और यूरोपीय देशों के दबाव के चलते क्रेमलिन को नवालनी के जर्मनी में इलाज के आग्रह को स्वीकार करना पड़ा।
नोविचोक के प्रयोग के गंभीर आरोपों को क्रेमलिन ने सिरे से खारिज कर दिया था, इसलिए जर्मनी के बाद फ्रांस, स्वीडन और फिर अंतरराष्ट्रीय संस्था ऑर्गेनाइजेशन फॉर द प्रोहिबिशन ऑफ केमिकल वेपंस (ओपीसीडब्ल्यू) ने भी नमूनों की जांच की थी और नोविचोक के प्रयोग की पुष्टि कर दी थी। करीब पांच माह के इलाज के बाद नवालनी इसी साल 17 जनवरी को स्वदेश लौटे थे और उन्हें मास्को हवाईअड्डे से ही गिरफ्तार कर लिया गया था। इसके चलते रूस में पुतिन विरोधी उग्र प्रदर्शनों के घटनाक्रम ने दुनिया को रूस के इतिहास में दर्ज 1917 की बोल्शेविक क्रांति का स्मरण करा दिया था।
44 वर्षीय नवालनी वैसे तो भ्रष्टाचार के मामलों को वर्ष 2008 से उजागर करते आए हैं, पर जनवरी माह की गिरफ्तारी के बाद उनके संगठन ने कालासागर तट पर अरबों रुपयों से बने भव्य महल के तथ्यों को ‘ए पैलेस ऑफ पुतिन’ डॉक्यूमेन्ट्री के जरिए जब जनता के सामने रखा तो पुतिन की छवि को काफी क्षति पहुंची। नवालनी समर्थकों ने प्रदर्शनों में सरेआम ‘पुतिन चोर’ और ‘रूस आजाद होगा’ के नारे लगाए थे। भले ही पुतिन और क्रेमलिन नवालनी को जहर दिए जाने और महल से अपने संबंधों को नकार रहे हैं, लेकिन रूसी आवाम के साथ-साथ समूचा विश्व समुदाय पुतिन की भूमिका को पूरी तरह से संदिग्ध मान चुका है।
रूसी युवावर्ग के जहन में यह आशंका घर कर चुकी है कि पुतिन शनै: शनै: अधिनायकवादी शासन व्यवस्था को बढ़ावा दे रहे हैं। भले ही पुतिन ने जनमत संग्रह के जरिए 2036 तक स्वयं को राष्ट्रपति घोषित कर लिया हो, परन्तु जिनेवा शिखर वार्ता जैसे अंतरराष्ट्रीय मंचों पर नवालनी जैसे मुद्दों पर अपने बचाव में उन्हें लिओ टॉलस्टॉय जैसे दार्शनिकों के कथनों की आड़ लेनी ही होगी। तभी तो शिखर वार्ता के बाद उन्होंने कहा, ‘जिंदगी में खुशियां नहीं होती, बस उनके होने की मरीचिका होती है।’