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जी-7 के जरिए चीन को घेरने की कोशिश

locationनई दिल्लीPublished: Jun 24, 2021 08:30:33 am

भारत का जी-7 से बढ़ता जुड़ाव अमरीका और यूरोप के साथ अपनी साझेदारी का विस्तार करने का महत्त्वपूर्ण मौका भी है।

जी-7 के जरिए चीन को घेरने की कोशिश

जी-7 के जरिए चीन को घेरने की कोशिश

विनय कौड़ा, अंतरराष्ट्रीय मामलों के विशेषज्ञ

ब्रिटेन की मेजबानी में हुए जी-7 शिखर सम्मेलन को ऐतिहासिक कहा जा सकता है। शिखर सम्मेलन की थीम ‘टिकाऊ सामाजिक-औद्योगिक बहाली’ थी। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने डिजिटल सम्बोधन में भारत एवं अग्रणी पश्चिमी लोकतंत्रों के बीच नई वैश्विक साझेदारी की दिशा में इसे महत्त्वपूर्ण कदम बताया। जी-7 को समकालीन वैश्विक मामलों में सबसे आगे लाने का श्रेय अमरीकी राष्ट्रपति जो बाइडन को दिया जाना चाहिए। तेजी से ताकतवर होते चीन से मुकाबले के लिए अमरीका का संकल्प संदेह से परे है। 2008 के वैश्विक वित्तीय संकट के बाद से अंतरराष्ट्रीय राजनीतिक संवाद में पश्चिम की गिरावट की धारणा परम्परागत बुद्धिमानी बन गई है। ट्रंप प्रशासन की ‘अमरीका फस्र्ट’ की नीतियों ने पश्चिम में पृथकता को गहरा किया, कोविड महामारी ने पूरे उत्तरी अमरीका एवं पश्चिमी यूरोप में कहर बरपाया और चीन अधिक आक्रामक हुआ। अब बाइडन प्रशासन ने स्पष्ट कर दिया है कि वाशिंगटन यूएस के पतन की वैश्विक धारणा पलटने के लिए प्रतिबद्ध है। राष्ट्रपति बाइडन लोकतंत्र और अधिनायकवाद के बीच मुकाबले को हमारे समय के परिभाषित संघर्ष के रूप में वर्णित करते हैं। जी-7 सम्मेलन के दौरान बाइडन ने आक्रामक चीन की अगुवाई वाले अधिनायकवादी प्रभावशाली ताकत के प्रतिकार के लिए राजनीतिक मूल्यों पर प्रकाश डाला।

बीजिंग की वुहान लैब से कोरोना वायरस लीक होने की संभावना के नए साक्ष्यों के मद्देनजर जी-7 ने कोविड-19 के प्रकोप में चीन की गहन भूमिका की जांच की मांग की है। जी-7 ने नियम आधारित अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था पर जोर देते हुए चीन की ‘गैर-बाजार नीतियों और कार्यप्रणालियों’ को चुनौती दी। चीन के कपटपूर्ण पूंजीवाद की आलोचना बढ़ी है। जैसाकि, अनुमान था जी-7 ने, चीन के भयावह मानवाधिकार रेकॉर्ड और व्यक्तिगत आजादी के घोर उल्लंघन की भी निन्दा की। हांगकांग की स्वायत्तता का सम्मान करने के लिए भी चीन से कहा गया है।

जी-7 ने बिल्ड बैक बैटर वल्र्ड (बी3डब्ल्यू) के माध्यम से चीन की महत्त्वाकांक्षी ‘बेल्ट एंड रोड इंफ्रास्ट्रक्चर’ (बीआरआई) से उत्पन्न समस्याओं पर भी ध्यान देने की कोशिश की है। बाइडन प्रशासन द्वारा इस नई पहल की परिकल्पना विकासशील देशों की बढ़ती जरूरतों को पूरा करने के लिए की गई है। बीजिंग के बीआरआई से मुकाबले के लिए जी-7 से दुनिया भर में नए बुनियादी ढांचा साझेदारी की उम्मीद पनपी है। बीआरआई से छोटे देशों पर असहनीय ऋण भार बढ़ा है और इसे चीन की ‘ऋण जाल’ कूटनीति के रूप में देखा गया है। हालांकि, अभी यह स्पष्ट नहीं है कि यह वित्तीय और संस्थागत रूप से कैसे काम करेगा। इसमें सभी जी-7 देशों के साथ ही भारत, ऑस्ट्रेलिया, दक्षिण कोरिया और दक्षिण अफ्रीका से भागीदारी की आवश्यकता होगी। अभी यह देखा जाना बाकी है कि जी-7 के यूरोपियन देश कैसे अपने व्यक्तिगत आर्थिक रिश्तों का प्रबंधन करेंगे। विशेषकर, जर्मनी, जो यूरोपीय संघ का आर्थिक इंजन है और चीन से उसकी व्यापक भागीदारी है।

भारत का जी-7 से बढ़ता जुड़ाव यूएस और यूरोप के साथ अपनी साझेदारी विस्तार करने का महत्त्वपूर्ण मौका भी है। जी-7 सम्मेलन में ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन ने भारत को अतिथि देश के तौर पर आमंत्रित किया। बोरिस अधिनायकवादी देशों से मुकाबले के लिए प्रमुख लोकतंत्रों का गठबंधन बनाने के इच्छुक हैं। हालांकि, भारत और पश्चिम के बीच व्यापक हितों को ठोस सहयोग में बदलना मुश्किल भरा होगा। भारत को वैश्विक आर्थिक व्यवस्था में सुधार, जलवायु परिवर्तन कम करने और भविष्य की महामारियों में प्रतिरक्षा में निरन्तर कोशिश करने की जरूरत है।

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