इस दुर्घटना में वे बुरी तरह जख्मी हो गए और अक्टूबर 1996 से वे आसपास घूमने के लिए व्हीलचेयर पर ही आश्रित होकर रह गए हैं। उन्होंने इस आत्मघाती दुर्घटना के बाद ‘अराइव सेफली’ नामक गैर सरकार संगठन (एनजीओ) गठित किया।
इस एनजीओ ने पंजाब-हरियाणा उच्च न्यायालय में एक जनहित याचिका दायर की। इस याचिका में कहा गया कि लोग अकसर शराब पीकर गाडिय़ां चलाते हैं। राजमार्गों पर शराब की दुकानों, रेस्तराओं, पबों आदि पर उन्हें सरलता से शराब उपलब्ध हो जाती है।
देशभर में हर साल तकरीबन 1.42 लाख लोग शराब के नशे में गाड़ी चलाने से हुई दुर्घटना में मौत के शिकार बनते हैं। हरमन ने यह भी कहा कि वे सौभाग्यशाली रहे कि मौत के मुंह में जाने से बच गए। लेकिन, शराब पीकर गाड़ी चलाने से हुई दुर्घटना के वे भुक्तभोगी हैं।
आज भी उन्हें दर्दनिवारक गोलियां खानी पड़ती हैं। हरमन ने कहा कि दुर्घटना का शिकार हुआ व्यक्ति ही ऐसे हालात नहीं झेलता बल्कि उससे जुड़े लोग यानी उसके परिवार के सदस्य भी परेशानी झेलते हैं। उनकी याचिका पर पंजाब-हरियाणा उच्च न्यायालय ने फैसला दिया कि राजमार्गों के दोनों तरफ निश्चित दूरी तक शराब नहीं बेची जाएगी।
पंजाब और हरियाणा सरकार को इससे राजस्व की भारी हानि होती और इसीलिए राज्य सरकारों ने सर्वोच्च न्यायालय में अपील की। सर्वोच्च न्यायालय ने एक ही प्रकृति की विभिन्न राज्यों की याचिकाओं को सम्मिलित कर सुनवाई शुरू की।
न्यायालय ने भिन्न-भिन्न राज्यों की याचिकाओं के तर्क सुने और राज्य सरकारों के तर्कों पर भी ध्यान दिया। मुख्य न्यायाधीश जे.एस. खेहर, न्यायाधीश एल.एन. राव और न्यायाधीश चंद्रचूढ़ की पीठ ने 15 दिसंबर 2016 को फैसला दिया कि राष्ट्रीय और राजकीय राजमार्गों के दोनों ओर 500 मीटर की दूरी तक शराब नहीं बेची जा सकेगी।
यह आदेश 1 अप्रेल 2017 से लागू माना जाएगा। इसके बाद प्रश्न उठने खड़े हुए कि क्या पबों और रेस्तराओं पर भी इस पाबंदी का असर होगा? जिनके लाइसेंस पहली अप्रेल से आगे तक के लिए जारी किए गए हैं, उनका क्या होगा?
विभिन्न राज्य सरकारों ने न्यायालय के इस फैसले के विरुद्ध पुनर्विचार याचिका दायर की। राज्य सरकारों की ओर से वकीलों ने राज्यों को होने वाली राजस्व की हानि के बारे में भी न्यायालय को जानकारी दी। अटॉर्नी जनरल मुकुल रोहतगी ने भी राज्यों की ओर से पैरवी की।
राज्य सरकारों की ओर से शराब की दुकानों को तो बंद करने की बात की गई लेकिन पबों, रेस्तराओं को इस आदेश से मुक्त रखने की अपील भी की गई। यह भी कहा गया कि बहुत से राज्यों में राजमार्ग शहर के बीच से होकर भी गुजरते हैं और उसके दोनों ओर पब और रेस्तरां पहले से बने हुए हैं लेकिन न्यायालय ने इस तरह की कोई दलील स्वीकार नहीं की।
सर्वोच्च न्यायालय ने माना कि राजमार्गों पर उपलब्ध शराब पीकर वाहन चलाने के दौरान दुर्घटना होती है तो दुर्घटनाग्रस्त व्यक्ति ही नहीं उसके परिवार को भी नुकसान उठाना पड़ता है। न्यायालय ने राज्यों के सभी तर्कों को खारिज करते हुए राजमार्गों के दोनों ओर 500 मीटर तक शराब की दुकानें ही नहीं, पब और रेस्तरां भी नहीं होंगे।
न्यायालय ने यह भी कहा कि 20 हजार तक की आबादी वाले क्षेत्रों से गुजरने वाले राजमार्गों के दोनों ओर 220 मीटर तक शराब की बिक्री नहीं होगी। भौगोलिक परिस्थितियों के मद्देनजर हिमाचल प्रदेश में भी 220 मीटर तक की दूरी की सीमा तय की गई।
सिक्किम और मेघालय को अलग रखते हुए पूरे देश में इस आदेश को लागू करने की बात कही गई है। न्यायालय ने 1 अप्रेल से फैसले को लागू करने की बात कहते हुए यह भी कहा कि जिनके लाइसेंस इसके बाद समाप्त हो रहे हैं, उनके लिए 30 सितंबर 2017 तक का समय रहेगा।
निस्संदेह सर्वोच्च न्यायालय का यह फैसला जनहित में लिया गया अच्छा और साहसी फैसला है लेकिन इसी फैसले में इसके क्रियान्वयन को लेकर भी फैसला देना चाहिए था। हम सभी को पता है कि जिस दिन ड्राई डे यानी सूखा दिवस होता है, उसी दिन शराब काफी अधिक ऊंचे दाम देकर भी बिकती है। गुजरात और बिहार में शराबबंदी लागू हैं लेकिन वहां भी काफी शराब बिकती है।
न्यायालय को चाहिए था कि फैसले के क्रियान्वयवन के लिए वह उच्च अधिकारियों को भी जिम्मेदार बनाती। यदि किसी भी सूरत में राजमार्गों के किनारे शराब बिक्री होती पाई जाए तो इसके लिए जिले के सर्वोच्च प्रशासनिक अधिकारी और पुलिस अधिकारी को भी जिम्मेदार बनाया जाना चाहिए। इसके बिना सर्वोच्च न्यायालय का यह फैसला क्रियान्वित होना कठिन लगता है।