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गर्मी की मार के बीच पशुपालकों के सामने बड़ा संकट

Published: May 24, 2022 05:52:21 pm

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Patrika Desk

दरअसल, सरकार को चारे के इस संकट से निजात पाने के लिए तात्कालिक और दूरगामी दोनों ही उपाय करने चाहिए। तात्कालिक उपायों के तहत पड़ोसी राज्यों में चारे के निकास पर लगी रोक को हटवाना चाहिए।

गर्मी की मार के बीच पशुपालकों के सामने बड़ा संकट

गर्मी की मार के बीच पशुपालकों के सामने बड़ा संकट

भीषण गर्मी के दौर में पशुपालकों के सामने नई मुसीबत खड़ी हो गई है। प्रदेश के अधिकांश हिस्सों में पशुओं के लिए चारे की कमी ने पशुपालकों को रोजगार बदलने तक को मजबूर कर दिया है। आम तौर पर गेहूं की फसल से पर्याप्त मात्रा में चारा मिलता रहा है, लेकिन पिछले कुछ वर्षों में पानी की कमी के कारण गेहूं का रकबा कम होता जा रहा है। इससे न सिर्फ गेहूं और जौ के भाव तेज हुए हैं, बल्कि चारा भी महंगा हुआ है। हरियाणा, पंजाब और मध्यप्रदेश से राजस्थान में चारे की आवक होती रही है। इस बार चारे की कमी को देखते हुए इन तीनों राज्यों ने अपने यहां से चारे के निकास और परिवहन पर रोक लगा दी है, जिससे राज्य में चारे के भाव आसमान छू रहे हैं। दूरदराज के राज्यों से चारा मंगवाया जाए, तो डीजल-पेट्रोल की कीमतों का असर साफ नअर आता है। परिवहन लागत बढऩे से दूर से आने वाला चारा काफी महंगा पड़ता है।
दरअसल, सरकार को चारे के इस संकट से निजात पाने के लिए तात्कालिक और दूरगामी दोनों ही उपाय करने चाहिए। तात्कालिक उपायों के तहत पड़ोसी राज्यों में चारे के निकास पर लगी रोक को हटवाना चाहिए। ऐसा नहीं है कि चारे की समस्या कोई पहली बार हुई है। हर बार गर्मियों में चारे का संकट पैदा होता है। सरकार चूंकि दूरगामी उपायों पर काम नहीं करती, इसलिए यह समस्या साल दर साल विकराल होने लगी है। चारे के संकट से पार पाने के लिए फसल चक्रों में हुए बदलाव पर भी ध्यान देना होगा। ऐसे में एक मात्र उपाय यह है कि परम्परागत फसलों जैसे बाजरा, ज्वार और मक्का को प्रोत्साहन दिया जाए। पानी वाले इलाकों में सरसों और तारामीरा की खेती पर भी पाबंदी लगाई जा सकती है, क्योंकि सरसों और तारामीरा दोनों ही फसलें किसानों को तो मुनाफा देती हंै, लेकिन इनसे चारा नहीं मिलता।
बीकानेर संभाग में नहरी तंत्र को भी ठीक करने की जरूरत है। दूध पाउडर के आयात को भी नियंत्रित करने की आवश्यकता है, ताकि किसानों को दूध का उचित मूल्य मिल सके। राजस्थान की अर्थव्यवस्था में पशुपालन महत्त्वपूर्ण स्थान रखता है, लिहाजा राज्य सरकार को इस दिशा में ठोस कदम उठाने चाहिए। दुधारू पशुओं के लिए ही जब चारे की किल्लत है तो आवारा पशुओं की हालत कितनी खराब होगी, इसका सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है। (ह.सिं.ब.)
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