7 दिसंबर 2025,

रविवार

Patrika LogoSwitch to English
home_icon

मेरी खबर

icon

प्लस

video_icon

शॉर्ट्स

epaper_icon

ई-पेपर

बिहार चुनाव: महिला और युवा वोटर्स पर दारोमदार

उमेश चतुर्वेदी, वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार

4 min read
Google source verification

क्या एक बार फिर महिला मतदाताओं का रुख ही बिहार की अगली सियासी तस्वीर का फैसला करने जा रहा है? क्या मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ जैसा यहां भी दोहराया जाना है? अतीत के अनुभव और सत्ताधारी गठबंधन के दांव तो उसी ओर इशारा कर रहे हैं। वैसे इसमें युवाओं, विशेषकर पहली बार वोटर बने नौजवानों की भी अहम भूमिका रहने जा रही है। हालांकि मतदाताओं के रुख की हकीकत 14 नवंबर को मतगणना के बाद ही सामने आ पाएगी।बिहार के चुनाव में महिलाओं और युवाओं के महत्त्व का अंदाजा दोनों प्रमुख गठबंधनों को है। सत्ताधारी गठबंधन ने महिलाओं को लुभाने में बाजी मार ली है। राज्य में करीब साढ़े तीन करोड़ महिला वोटर हैं। मुख्यमंत्री महिला रोजगार योजना के तहत राज्य के महिला मतदाताओं के करीब 22 फीसद को दस-दस हजार रुपए की रकम दी जा चुकी है। इस योजना के तहत राज्य की एक करोड़ 21 लाख महिलाओं को इस योजना का फायदा दिया जाना है। बेशक भारतीय जनता पार्टी विपक्ष शासित राज्यों में ऐसी ही सहयोग देने वाली योजनाओं का कभी रेवड़ी बताकर विरोध करती रही हो, लेकिन अब वह भी ऐसी योजनाओं में भागीदारी कर रही है। छत्तीसगढ़ की जीत में महतारी वंदन योजना और मध्य प्रदेश की जीत में लाडली बहना योजना की भूमिका को शायद ही कोई दल नकार पा रहा है। मध्य प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने जब दस जून 2023 को जबलपुर में लाडली बहना योजना की शुरुआत की थी, तब माना जा रहा था कि उनकी सरकार मध्य प्रदेश में अलोकप्रिय हो चुकी है। लेकिन चुनावी नतीजों ने इस धारणा को बदल दिया। छत्तीसगढ़ में पिछले विधानसभा चुनाव से पहले शायद ही किसी ने अंदाजा लगाया था कि भूपेश बघेल सरकार को हार का स्वाद चखना होगा। लेकिन ऐसा हुआ। माना गया कि सियासी तस्वीर बदलने में बीजेपी की महतारी बंदन योजना का बड़ा हाथ रहा। महाराष्ट्र में बीजेपी गठबंधन की जीत में भी अन्य कारकों के साथ लाड़की बहिन योजना और झारखंड की हेमंत सोरेन सरकार की वापसी में मुख्यमंत्री मैया सम्मान योजना की अहम भूमिका रही है। पिछले कुछ चुनावों से महिलाओं ने मतदान में पुरुषों के पीछे चलने की अवधारणा को ना सिर्फ खंडित किया है, बल्कि बढ़-चढ़कर मतदान में हिस्सा भी ले रही हैं। बिहार में पिछले विधानसभा चुनाव के दौरान जहां 59.69 प्रतिशत महिला मतदाताओं ने मतदान किया था, वहीं पुरुषों का प्रतिशत महज 54.45 प्रतिशत ही था। बिहार जैसे कम महिला साक्षरता वाले राज्य में ऐसी राजनीतिक जागरूकता को सलाम किया जाना चाहिए। 2011 की जनगणना के अनुसार राज्य में महिला साक्षरता दर करीब 51 प्रतिशत ही है। 2010 के विधानसभा चुनावों से ही बिहार में महिलाएं केंद्र में हैं। तब जहां 51.12 प्रतिशत पुरुष मतदाताओं ने ही अपने अधिकार का इस्तेमाल किया था, वहीं महिलाओं ने इससे कहीं ज्यादा यानी 54.49 प्रतिशत हिस्सेदारी की थी। इसी तरह 2015 के विधानसभा चुनाव में भी 53.32 फीसद पुरुषों से आगे 60.48 फीसद महिलाओं ने वोट डाले थे। बिहार में इस बार करीब साढ़े तीन करोड़ महिला मतदाता हैं। जबकि पुरुष मतदाताओं की संख्या 3.92 करोड़ हैं। पलायन का दंश झेल रहे बिहार में वास्तव में पुरुष मतदाता कम हैं। मतदाता सूची में दर्ज नाम वाले भी वोटर परदेस में रोजी-रोटी कमाने को मजबूर हैं। महिलाओं की मांग पर नीतीश कुमार ने राज्य में शराबबंदी लागू की थी। आलोचनाओं के बावजूद अगर नीतीश इस योजना को जारी रखे हुए हैं तो इसका मतलब यह भी है कि उनका महिला वोटरों पर भरोसा तेजस्वी की तुलना में बहुत ज्यादा है। बिहार में इस बार 14 लाख ऐसे नए वोटर जुड़े हैं, जो पहली बार वोट डालेंगे। विधानसभावार आंकड़ों के लिहाज से देखें तो हर विधानसभा में पहली बार वोट डालने वालों की संख्या औसतन 5761 होती है। विधानसभा में जीत-हार का आंकड़ा बेहद नजदीकी होता है। जाहिर है कि इन नए मतदाताओं पर भी जीत-हार का आंकड़ा निर्भर होगा। यही वजह है कि विपक्षी गठबंधन के मुख्यमंत्री पद के दावेदार तेजस्वी यादव बार-बार युवाओं की बेरोजगारी का मुद्दा उठा रहे हैं। इतना ही नहीं, वे अपनी सरकार बनने की हालत में बड़ी संख्या में रोजगार उपलब्ध कराने का दावा भी कर रहे हैं। पलायन भी ऐसा मुद्दा है, जो युवाओं के मर्म को छूता है। यही वजह है कि इसे विपक्षी खेमे की ओर से मुद्दा बनाने की जबरदस्त कोशिश हो रही है। बिहार में रोजगार की कमी के चलते यहां के लोग महाराष्ट्र, गुजरात, दिल्ली, हरियाणा और पंजाब का रुख करने को मजबूर हैं। प्रशांत किशोर मतदान में युवाओं की ताकत को समझते हैं, शायद यही वजह है कि वे बार-बार इस मुद्दे को उठा रहे हैं। यह बात और है कि बिहार की राजनीति भी दबी जुबान से ही सही, इन मुद्दों के साथ खड़ी होने की तैयारी में है। चुनाव आयोग ने बिहार से ही अपने विशेष गहन पुनरीक्षण अभियान यानी एसआइआर की शुरुआत की है। कांग्रेस समेत समूचा विपक्ष इस पुनरीक्षण पर सवाल उठा रहा है। वोट चोरी की धारणा को इस अभियान के बहाने राहुल गांधी ने नया रुख दिया है। विपक्षी खेमे की कोशिश है कि इस मसले को जिंदा रखा जाए। उसे लगता है कि एक बार इसे छोड़ दिया गया तो वोट चोरी की धारणा ही धीरे-धीरे सवालों के घेरे में आती जाएगी। इसलिए विपक्षी खेमे की कोशिश है कि एसआइआर को बेकार बताकर इस पर सवालिया निशान खड़े करना है। विपक्ष की कोशिश महिलाओं के सम्मान के बहाने नीतीश सरकार को घेरते हुए लोगों का समर्थन हासिल करने की है। जबकि सत्ता पक्ष इसे विपक्ष का दुष्प्रचार बताकर उसे किनारे रखने के प्रयास में जुटा हुआ है।