भाजपा ने जैसा वादा किया था कि वह कांग्रेस से अलग किस्म की पार्टी बनकर दिखाएगी, वैसा कुछ नहीं हुआ। पार्टी ने स्वयं को ऐसा स्वरूप देने की कोशिश भी नहीं की। यदि हमारी रक्षा तैयारियां कमजोर बताने वाली रिपोर्टों को सही माना जाए तो सरकार के इस दावे में भी संदेह ही है कि इस क्षेत्र में अकर्मण्यता और ‘पंगु नीतियों’ से छुटकारा मिल चुका है। भाजपा ने कुछ पार्टियों से बेमेल गठबंधन किए हैं। जम्मू कश्मीर में पीडीपी व पूर्वोत्तर में कुछ ऐसी पार्टियों के साथ, जिन्हें भाजपा स्वयं ‘अलग तरह की’ पार्टी मानती थी।
शिवसेना के बारे में भी संशय है कि वह भाजपा की पक्षधर है या विरोधी। भाजपा जब असमान विचारधारा वाली पार्टियों से साथ गठबंधन कर सकती है तो यह टीडीपी के साथ तालमेल बिठाने में क्यों नाकाम रही? भाजपा ने लोकसभा उपचुनाव में हार के लिए अति आत्मविश्वास, विपक्ष के अपवित्र गठबंधन और पार्टी की सोशल इंजीनियरिंग की विफलता को जिम्मेदार ठहराया है। लेकिन यह मानने को तैयार नहीं है कि वादे पूरे न होने का गुस्सा जनता ने चुनावों में निकाला है। कृषि, रोजगार और निवेश में नकारात्मक माहौल जगजाहिर है। पार्टी को नरम रुख अपनाते हुए विपरीत विचारधाराओं का भी स्वागत करना चाहिए। प्रतिद्वंद्वियों पर शब्दबाण ताने रहने वाले नेताओं के बजाए विनम्र नेता अधिक लोकप्रिय होते हैं।