ब्लू व्हेल नामक ऑन लाइन खेल ने किशोर बच्चों के अभिभावकों की नींद उड़ा दी है। दुनिया भर में दो सौ से अधिक बच्चे इस खेल के तिलिस्म में फंसकर आत्महत्या कर चुके हैं। शुरुआत में पश्चिमी देशों और महानगरों तक सीमित रहने वाले इस खतरनाक खेल के खूनी पंजे भारत के मध्यमवर्गीय और छोटे शहरों के किशोरों तक भी पहुंच चुके हैं। ब्लू व्हेल गेम को विकसित करने वाले को रूसी पुलिस ने गिरफ्तार जरूर कर लिया लेकिन इससे पहले ही इस ‘जहरीली मछली’ का जहर बच्चों के जीवन में फैल चुका है।
इस खेल से जुड़े गिरोह के निशाने पर वे बच्चे अधिक होते हैं जिनके जीवन में कहीं कुछ अवसादमूलक प्रवृत्तियों का स्पर्श होता है। उन्हें टास्क के नाम पर कोई ऐसी हरकत करने को कहते हैं जो उनके जीवन के सूरज को विषैला डंक मार देती है। बच्चों को यह सारा खेल गुप्त रखने की हिदायत होती है। यही कारण है कि प्रपंच रचने वालों तक पहुंचना आसान नहीं होता। दर*****ल किशोर मन कई बार दुस्साहसों की ओर भी आकर्षित होता है। सामाजिक जीवन में अकेलापन या उपेक्षा झेल रहे किशोर कुछ सनसनीखेज करने की इच्छा से दुस्साहसपूर्ण अपराधिक प्रवृत्तियों से जुड़ जीवन की अमृतमयी संभावनाओं का जहरीला अंत कर बैठते हैं।
ऐसे में परिवार के बच्चों की मानसिकता को जानना जितना आवश्यक है उतना ही आवश्यक है उन्हें यह समझाना कि सफलताओं के शिखर का रास्ता *****फलताओं की गुफाओं से होकर ही गुजरता है। बच्चों की इंटरनेट गतिविधियों पर भी मित्रतापूर्ण निगाह रखना आवश्यक है। आवश्यक यह है कि बच्चे के व्यवहार में यदि कोई नकारात्मक परिवर्तन दिख रहा हो तो उसके कारण को जाना जाए। क्योंकि ऐसे प्रपंचों के जाल में उलझा किशोर अक्सर अकेलेपन की अंधेरी गुफा में रहना पसंद करता है। उन्हें संभावनाओं के प्रक्षेपास्त्रों से सामना करने को कहें क्योंकि विध्वंस जब-जब भी मुखर हुआ है उसे सृजन के हाथों पराजित ही होना पड़ा है।