सवाल तो जयपुर मेट्रो के सीएमडी निहालचंद गोयल से भी होने चाहिए। उन्हें मालूम था कि पुरातत्व विभाग के पास नक्शे नहीं हैं तो उन्होंने उसकी एनओसी क्यों मान ली? तटस्थ एजेंसी से परकोटे के भीतरी शहर की मजबूती जंचवाने की बजाय अपने लोगों से यह काम क्यों करा लिया? क्या समय सीमा समाप्त हो रही थी, फंड लैप्स हो रहा था या कोई और कारण थे? किसके आदेश से पुरासंपदा से छेड़छाड़ करवाई गई। अब कहा जा रहा है कि पुरातत्व सरंक्षण के लिए वास्तुविद्, पुरातत्वविद् और संरक्षणविद् की टीम से सर्वे करवाया जाएगा। क्या गोयल साहब यह बतलाएंगे कि सर्वे कब शुरू होगा ? टीम के नुमाइंदे कौन-कौन होंगे ? कितना समय लगेगा? इनके सर्वे की प्रमाणिकता कौन तय करेगा ? क्या सर्वे होने तक काम बंद रहेगा या चलता रहेगा ? यदि सर्वे तक काम बंद रहेगा तो क्या बाजार पुन: खोल दिए जाएंगे ? यदि नहीं तो यहां के व्यापारियों को हुए नुकसान और जनता को हुई परेशानियों की भरपाई कौन करेगा ?
परकोटे में मेट्रो का काम शुरू करने की हड़बड़ी की जांच सरकार को करवानी चाहिए। यदि नई सर्वे टीम ने परकोटे को मेट्रो के अनुपयुक्त बताया तो क्या चांदपोल और चौपड़ों का पुराना वैभव लौट पाएगा ? इतिहास गवाह है कि पूर्व शासक रामसिंह और माधोसिंह द्वितीय ने कोलकाता में ट्राम चलाने वाले अंग्रेज इंजीनियर स्वीटन जैकब का जयपुर में ट्राम चलाने का प्रस्ताव ठुकरा दिया था। उन्हें पुरखों की विरासत से प्यार था, लेकिन अफसोस उनके वंशज अब खामोश हैं। कारण तो वे ही जाने, लेकिन इतना तय है कि जिन्हें विरासत से लगाव होता है वे पुरखों की लगाई एक ईंट भी उखड़ते नहीं देख सकते। मेट्रो के दावों की बानगी दिल्ली के शाहबाद मोहम्मदपुर में सभी देख रहे हैं। मेट्रो की धड़धड़ाहट ने वहां 85 मकानों की नींव ही नहीं कंगूरे भी हिला दिए हैं। अब भी समय है एएसआई या यूनेस्को जैसी विश्व की किसी मानक संस्था से जांच करवाकर सरकार पुनर्विचार करे। वरना खोखले सर्वे, दावे और मनगढ़ंत एनओसी हमारी विरासत, अमूल्य धरोहरों को तस्वीरों तक ही सीमित ना कर दे। अब तक की खामियों के दोषी लोगों के खिलाफ जांच जरूर हो। सजा भी दिलाई जाए। तभी शायद चौपड़ों को चैन मिले।