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अक्षम्य…!

Published: Sep 07, 2016 04:53:00 pm

Submitted by:

balram singh

ये तो वही हुआ! बिना जांच मरीज का इलाज कर दो, मर जाए तो खुद ही पोस्टमार्टम कर दो और विरोध हो तो मृत देह की छिछालेदार करने को जांच बैठा दो। चिकित्सा जगत में ऐसी लापरवाहियों के तमाम वाकए देखे जा सकते हैं, लेकिन क्या कोई किसी शहर के साथ ऐसा कर सकता है? […]

Jaipur Metro Crane Falls

Jaipur Metro Crane Falls

ये तो वही हुआ! बिना जांच मरीज का इलाज कर दो, मर जाए तो खुद ही पोस्टमार्टम कर दो और विरोध हो तो मृत देह की छिछालेदार करने को जांच बैठा दो। चिकित्सा जगत में ऐसी लापरवाहियों के तमाम वाकए देखे जा सकते हैं, लेकिन क्या कोई किसी शहर के साथ ऐसा कर सकता है? हां। मेट्रो के लोग सवाई जयसिंह के करीब तीन सौ साल पहले बसाए गए गुलाबी नगर का कुछ ऐसा ही हाल करने पर तुले हैं। ताज्जुब है सरकार चुपचाप शहर को बर्बाद होते देख रही है। उस शहर को जिसकी एक-एक ईंट अपने में एक इतिहास है। न जाने किसकी जिद इसे जमीदोंज करने पर तुली है। परकोटे के भीतर मेट्रो चलाने की शासन-प्रशासन को इतनी क्या जल्दी थी कि आनन-फानन में तथ्यों को ताक पर रख काम शुरू कर दिया गया। अधिकारी, सरकार और जनता को झूठे दावों से बरगलाने में लगे हैं। इसकी बानगी देखिए, पहले पुरातत्व विभाग ने चांदपोल के नक्शे व अन्य जानकारियों के बगैर अनापत्ति प्रमाण-पत्र दे दिया। सवाल किए गए तो यह कहकर पल्ला झाड़ लिया कि नक्शे पुराने विभाग के पास होंगे। मेट्रो के विशेषज्ञों ने नींव की जांच कर ली है। क्या निदेशक हृदयेश कुमार या उपनिदेशक वीरेन्द्र कविया बताएंगे कि पुराना विभाग कौन सा है? मेट्रो विशेषज्ञों की किस रिपोर्ट पर उन्होंने एनओसी दे दी? जांच के मापदंड क्या थे ? क्यों नहीं एएसआई (आर्कोलोजिकल सर्वे ऑफ इंडिया) विशेषज्ञों से नींव की पड़ताल कराई गई? मान लें चांदपोल दरवाजे के नक्शे उनके पास नहीं थे, तो फिर दोनों चौपड़, सरगासूली, हवामहल, रामचंद्र मंदिर के नक्शे उनके पास हैंï? यदि हैं तो उन्हें सार्वजनिक करें और बताएं कि इन स्थानों पर मेट्रो के लिए खुदाई की एनओसी किस आधार पर दी गई? यह तो सरासर आपराधिक कृत्य की श्रेणी में आता है। बिना नक्शे, जरूरी पड़ताल के पुरामहत्व की धरोहरों पर जेसीबी-बुलडोजर कैसे चल गए। सरकार को मामला दर्ज कराकर इनके खिलाफ जांच बैठानी चाहिए। इसकी भी जांच हो कि जिस मेट्रो निगम को सुरंग खोदनी थी उसे ही भीतरी निर्माण की मजबूती जांचने का काम कैसे दे दिया। दोषियों को बख्शा नहीं जा सकता। 
सवाल तो जयपुर मेट्रो के सीएमडी निहालचंद गोयल से भी होने चाहिए। उन्हें मालूम था कि पुरातत्व विभाग के पास नक्शे नहीं हैं तो उन्होंने उसकी एनओसी क्यों मान ली? तटस्थ एजेंसी से परकोटे के भीतरी शहर की मजबूती जंचवाने की बजाय अपने लोगों से यह काम क्यों करा लिया? क्या समय सीमा समाप्त हो रही थी, फंड लैप्स हो रहा था या कोई और कारण थे? किसके आदेश से पुरासंपदा से छेड़छाड़ करवाई गई। अब कहा जा रहा है कि पुरातत्व सरंक्षण के लिए वास्तुविद्, पुरातत्वविद् और संरक्षणविद् की टीम से सर्वे करवाया जाएगा। क्या गोयल साहब यह बतलाएंगे कि सर्वे कब शुरू होगा ? टीम के नुमाइंदे कौन-कौन होंगे ? कितना समय लगेगा? इनके सर्वे की प्रमाणिकता कौन तय करेगा ? क्या सर्वे होने तक काम बंद रहेगा या चलता रहेगा ? यदि सर्वे तक काम बंद रहेगा तो क्या बाजार पुन: खोल दिए जाएंगे ? यदि नहीं तो यहां के व्यापारियों को हुए नुकसान और जनता को हुई परेशानियों की भरपाई कौन करेगा ? 
परकोटे में मेट्रो का काम शुरू करने की हड़बड़ी की जांच सरकार को करवानी चाहिए। यदि नई सर्वे टीम ने परकोटे को मेट्रो के अनुपयुक्त बताया तो क्या चांदपोल और चौपड़ों का पुराना वैभव लौट पाएगा ? इतिहास गवाह है कि पूर्व शासक रामसिंह और माधोसिंह द्वितीय ने कोलकाता में ट्राम चलाने वाले अंग्रेज इंजीनियर स्वीटन जैकब का जयपुर में ट्राम चलाने का प्रस्ताव ठुकरा दिया था। उन्हें पुरखों की विरासत से प्यार था, लेकिन अफसोस उनके वंशज अब खामोश हैं। कारण तो वे ही जाने, लेकिन इतना तय है कि जिन्हें विरासत से लगाव होता है वे पुरखों की लगाई एक ईंट भी उखड़ते नहीं देख सकते। मेट्रो के दावों की बानगी दिल्ली के शाहबाद मोहम्मदपुर में सभी देख रहे हैं। मेट्रो की धड़धड़ाहट ने वहां 85 मकानों की नींव ही नहीं कंगूरे भी हिला दिए हैं। अब भी समय है एएसआई या यूनेस्को जैसी विश्व की किसी मानक संस्था से जांच करवाकर सरकार पुनर्विचार करे। वरना खोखले सर्वे, दावे और मनगढ़ंत एनओसी हमारी विरासत, अमूल्य धरोहरों को तस्वीरों तक ही सीमित ना कर दे। अब तक की खामियों के दोषी लोगों के खिलाफ जांच जरूर हो। सजा भी दिलाई जाए। तभी शायद चौपड़ों को चैन मिले। 
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