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साहसिक निर्णय

वैसे तो राजस्थान, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ तीनों ही राज्यों में कांग्रेस की सरकारों ने पिछले वर्ष एक ही दिन शपथ ग्रहण की थी लेकिन कुण्डलियां सबकी भिन्न-भिन्न बनीं। लोकतंत्र जन आधारित शासन व्यवस्था है। अत: शासन से यह अपेक्षा रहती है कि वह देश के विकास के साथ-साथ जन समस्याओं का निवारण करता जाएगा।

Dec 17, 2019 / 10:07 am

Gulab Kothari

Ashok Gehlot Kamal Nath Bhupesh Baghel

गुलाब कोठारी

वैसे तो राजस्थान, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ तीनों ही राज्यों में कांग्रेस की सरकारों ने पिछले वर्ष एक ही दिन शपथ ग्रहण की थी लेकिन कुण्डलियां सबकी भिन्न-भिन्न बनीं। लोकतंत्र जन आधारित शासन व्यवस्था है। अत: शासन से यह अपेक्षा रहती है कि वह देश के विकास के साथ-साथ जन समस्याओं का निवारण करता जाएगा। किसी सरकार से यदि जनता को वांछित लाभ नहीं मिल पाए तो वह अपने अधिकारों का प्रयोग करते हुए शासन में बदलाव लाने का प्रयास करती रही है। जनता यह मानकर चलती है कि यदि वह सरकार को बदल देती है तो वह नई सरकार के अपकृत्यों से जुड़े लोगों के खिलाफ कार्रवाई करेगी। मीडिया पिछली सरकार के सभी घोटालों एवं कारनामों को पूरे कार्यकाल में उठाता रहता है। अत: परिणाम केवल नई सरकार की इच्छा शक्ति पर ही निर्भर करते हैं। पिछले कुछ सालों में यह देखा जा रहा है कि कोई भी सरकार पिछली सरकार के अपराधों-भ्रष्टाचारों की फाइलें नहीं खोलती हैं। इसका अर्थ है कि दल चाहे कोई भी हो, भीतर सब एक ही दल-दल में फंसे हुए हैं। तब सत्ताधारियों से कुछ आशा करना व्यर्थ होगा। उनको धिक्कारना भी व्यर्थ होगा क्योंकि वे तो नगाड़े बन चुके हैं। कितना भी मारो, उनका अपना ही संगीत सुनाई देता है। यदि पिछले दस वर्षों के पत्रिका के अंक भी निकालकर देखे जाएं तो कम से कम राजस्थान, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ के इतने आपराधिक मामले प्रकाशित हुए हैं जिनमें सरकार के या लोकतंत्र के तीनों पायों के मुखौटे वर्णित हैं। ऐसे कुकृत्यों में सबसे बड़ी शर्म की बात तो यह रही है कि लिप्त व्यक्तियों में नेता और अधिकारी अधिक जान पड़ते हैं। और ऐसे प्रभावशाली व्यक्तियों पर कभी आंच नहीं आती। कई ऐसे मुद्दे भी सामने आए थे जिनमें बड़ी-बड़ी जांचें बिठाई गईं, न्यायिक जांचें भी बिठाई गईं किन्तु परिणाम नदारद रहे। उन मामलों में लिप्त बड़े-बड़े लोगों के नाम चर्चाओं में भी चलते रहे किन्तु बाद में दफन हो गए।

मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री कमलनाथ ने पिछले एक वर्ष में हर घर को सस्ती बिजली, किसानों की कर्जमाफी, और शुद्ध के लिए युद्ध के साथ औद्योगिक विकास के वादों पर तो काम किया ही, लेकिन उन्होंने एक साहस पूर्ण कदम उठाया है प्रदेश को माफिया मुक्त बनाने का। भू-माफिया के साथ, रेत माफिया, कोल माफिया, खनन माफिया और ड्रग माफिया के खिलाफ राज्य में जोर शोर से अभियान चल रहा है। कमलनाथ ने इंदौर से शुरू करके जबलपुर, ग्वालियर और भोपाल के माफिया जगत पर बड़ा प्रहार किया है। इंदौर के जीतू सोनी, अकेले का कद पहली बार लोगों की समझ में आया। हनीटै्रप में बीस से अधिक प्रभावी राजनेता और इतने ही वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारियों के नाम सामने आए हैं। सुना है कि इनमें से कुछ के तो वीडियो भी वायरल होने लग गए। अकेले इंदौर में सोनी जैसे आधा दर्जन बड़े माफिया हैं। शेष शहर भी कमोबेश इसी प्रकार त्रस्त है। जनता कौतुहल भरी आंखों से सरकार की ओर देख रही है। कमलनाथ के लिए इन सारे नामों को सार्वजनिक करके सजा दिलवाने का प्रयास बड़ी इच्छाशक्ति की अपेक्षा रखता है। क्योंकि पहले भी भोपाल में शहला मसूद काण्ड जैसे सारे मामले दब चुके हैं।

इसमें दो राय नहीं कि राजस्थान में भी किसानों की कर्ज माफी, बेरोजगारी भत्ता, गरीब सवर्णों के आरक्षण में अचल संपत्ति का प्रावधान खत्म करने, नि:शुल्क दवा योजना का दायरा बढ़ाने व मोहल्ला क्लीनिक जैसे जनकल्याण के काम पिछले साल भर में शुरू हुए हैं। ये सब रफ्तार पकड़ेंगे तब जाकर नतीजे सामने आएंगे। अलबत्ता, पिछली भाजपा सरकार पर भ्रष्टाचार व गड़बडिय़ों को लेकर विपक्ष में रहते हुए कांग्रेस जो आरोप लगाती थी उनको लेकर सरकार अब तक कोई ठोस खुलासा या कार्रवाई नहीं कर पाई है। भ्रष्ट तंत्र और माफिया पर मध्यप्रदेश की तरह ही शिकंजा कसने की जरूरत है। वैसे मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने मंत्रिमंडल की पहली बैठक में जब से कांग्रेस पार्टी के जनघोषणा पत्र को नीतिगत दस्तावेज बनाने का फैसला किया है, तब से लोगों की उम्मीदें बढ़ीं हैं। राजस्थान की जनता इस फैसले को जल्दी से जल्दी परवान चढ़ता देखना चाहती है।

छत्तीसगढ़ में भूपेश बघेल सरकार की सबसे बड़ी उपलब्धि में किसानों का कर्ज माफ करना और 400 यूनिट तक के बिजली बिल को आधा करना शामिल है। प्रदेश की ग्रामीण अर्थव्यवस्था को गति देने वाली नरवा, गरवा, घुरवा और बाड़ी योजनाओं की तारीफ नीति आयोग तक ने की है।

लेकिन जरूरत इनके क्रियान्वयन पर नजर रखने की है। पिछली भाजपा सरकार के कार्यकाल की जांच हुुई तो कई विभागों में बड़े भ्रष्टाचार की पोल भी खुली, मामले तक दर्ज हुए। छत्तीसगढ़ की नौकरशाही में भय तब ही पैदा होगा जब जिम्मेदारों को जेल भेजा जाएगा। हां, माओवाद पर नकेल कसने की बघेल सरकार के सम्मुख बड़ी चुनौती है। क्योंकि पहले और आज के हालात में कोई ज्यादा अंतर नहीं है।

प्रश्न लोकतंत्र की सार्थकता का है। जहां रक्षक ही भक्षक बन गए। उनके चंगुल से जनता को मुक्त कराने का प्रश्न है। राजनीति की चौसर पर कुछ नामों को लेकर केन्द्र से टकराव भी हो सकता है। किन्तु कमलनाथ जितने आगे बढ़ चुके हैं उन्हें अन्तिम परिणाम तक अपने निर्णय पर डटे रहना चाहिए। भावी परिणाम इसका उत्तर स्वयं दे देंगे। केन्द्र की एक कार्रवाई तो वे चुनाव पूर्व देख चुके हैं। जिस तरह से केन्द्र मध्यप्रदेश पर आंखें लगाए बैठा है तब 1984 के दंगों की फाइल भी खुल सकती है। चर्चा तो हवा में है ही। सावधानी इतनी ही रहनी चाहिए कि, निर्णय राजनीति से ऊपर उठकर होने चाहिएं। वैसे तो अपराधी का न दल होता है, न धर्म।

हर प्रदेश के हर मुख्यमंत्री को चाहे वह किसी भी दल का क्यों न हो, समाज के ऐसे नासूर का इलाज करना ही चाहिए। नहीं तो यह संदेश स्पष्ट ही है कि, उनकी सरकारें भी उस भ्रष्टाचार से निकलने को राजी नहीं हैं। तब जनता के पास विकल्प क्या है? कितने प्रभावी लोगों के खिलाफ मुकदमे न्यायालयों में वर्षों से लम्बित हैं। यदि चुनाव से जुड़े मुकदमे भी पांच साल में तय नहीं होते तब बाकी मुद्दों की तो बात ही क्या करें? जिन मामलों में मध्यप्रदेश सरकार ने कार्रवाई की है, उनके पीछे भी कहीं ना कहीं बड़े राजनेता रहे हैं। किन्तु ‘बिल्ली के गले में घंटी’ कौन बांधे? मुख्यमंत्री कमलनाथ ने जो नजीर सामने रखी है, उसी तरह की कार्रवाईयों के लिए हर प्रदेश की जनता अपने-अपने मुख्यमंत्रियों पर दबाव डाले और उस शुभ दिन का इंतजार करे जब उनके यहां भी ‘विनाशाय च दुष्कृताम्’ की गूंज सुनाई पडऩे लगे।

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