पुस्तक में भारतीय शास्त्रीय कथक नृत्य के इतिहास और इसके विकास को प्रस्तुत किया गया है। वैदिक प्राचीन काल से लेकर आधुनिक काल तक कथक नृत्य के विभिन्न रूपों का तथ्यात्मक विवरण दिया गया है।
पुस्तक में भारतीय शास्त्रीय कथक नृत्य के इतिहास और इसके विकास को प्रस्तुत किया गया है। वैदिक प्राचीन काल से लेकर आधुनिक काल तक कथक नृत्य के विभिन्न रूपों का तथ्यात्मक विवरण दिया गया है। पुस्तक में उल्लेख है कि प्राचीन काल में इस नृत्य का नाम कथक नहीं था बल्कि इसे दूसरे नामों से जाना जाता था। राजस्थान के कथक घरानों का जिक्र है जिन्होंने पीढ़ी दर पीढ़ी इस नृत्य को राजस्थान सहित देश-विदेश में एक खास पहचान और लोकप्रियता दिलाई। ऐसे लोगों का पुस्तक में वंशावली सहित परिचय दिया गया है।
तीन खंडों में विभाजित इस पुस्तक के प्रथम खंड में नृत्य कला का उद्भव, विभिन्न ग्रंथों में कथक नृत्य की तलाश, मध्यकालीन संगीत नृत्य परंपरा, संतों की भक्ति साधना का नृत्य पर प्रभाव, भारतीय शास्त्रीय नृत्यों की परंपरा, नृत्य साहित्य, राजस्थान के नरेशों का योगदान, महिला नृत्यांगनाओं का योगदान, कथक परिवारों की जातियां तथा गांव सहित 38 अध्यायों के माध्यम से कथक के विभिन्न पहलुओं का गहराई से विश£ेषण किया गया है।
पुस्तक के दूसरे और तीसरे खंड में राजस्थान के कथक कलाकारों और उनके परिवारों का परिचय, लखनऊ की संगीत नृत्य परंपरा आदि का उल्लेख किया गया है।
पुस्तक : कथक नृत्य-तथ्य और विश्लेषण
लेखक : प्रतापसिंह चौधरी
प्रकाशक : ऋचा प्रकाशन, जयपुर
पृष्ठ : 376
मूल्य : 700