ज्यादा पुरानी बात नहीं है जब असम व मिजोरम के सुरक्षा बलों के बीच हुई झड़प में ६ जानें चली गई थीं। तब दोनों राज्यों ने भी सीमा विवाद सुलझाने के लिए कमेटियों का गठन किया था। देखा जाए तो राज्यों के बीच आपसी सीमा विवाद का मर्ज पुराना है। इन विवादों ने हिंसक रूप भी देखे हैं। कई बार इन्हें सुलझाने की कोशिश भी हुई, पर बाद में ये प्रयास नाकाम होते दिखे हैं। एक तथ्य यह भी है कि पहाड़ी व दुर्गम इलाकों में सीमांकन का काम काफी मुश्किल भरा होता है। ऐसे में आए दिन राज्यों के बीच सीमा विवाद होता रहता है। ये विवाद न केवल राज्यों के बीच समस्याएं पैदा करते हैं, बल्कि उनके विकास में भी बाधक हैं। पिछले साल दिसंबर में केंद्र सरकार ने संसद में बताया था कि देश में कुल आठ ऐसे मामले हैं, जहां पर सीमाओं और जमीन पर दावों के कारण राज्यों के बीच विवाद हैं। ये आंध्र-ओडिशा, महाराष्ट्र-कर्नाटक, हरियाणा-हिमाचल, लद्दाख-हिमाचल, असम-अरुणाचल, असम-नगालैंड, असम-मेघालय और असम-मिजोरम से जुड़े हैं। जाहिर तौर पर ज्यादातर सीमा विवाद पूर्वोत्तर राज्यों में असम से संबंधित हैं। सीमा विवाद के कारण राज्यों में आपसी मनमुटाव और खटास पैदा होना स्वाभाविक है। राज्यों के बीच आपसी सौहार्द बनाने के लिए सीमा विवाद का प्रभावी समाधान करना जरूरी है, क्योंकि जितना लंबा विवाद चलेगा, उतना ही नुकसानदेह होता जाएगा।
यह बात भी सही है कि पूर्वोत्तर राज्यों से जुड़े सीमा विवाद के कई मामलों का स्थायी समाधान भी हुआ है। केन्द्र सरकार ने इस दिशा में पहल कर राज्यों को ऐसे विवादों को खत्म करने के लिए राजी भी किया है। इसके बावजूद जहां विवाद बने हुए हैं वहां राज्यों को एक जाजम पर बैठ कर विवाद के कारणों की तह में भी जाना होगा। उम्मीद की जानी चाहिए कि असम-मेघालय के बीच सीमा विवाद को हल करने की दिशा में भी तेजी आएगी।